Mata Brijeshvari Devi Tample Kangra HP ( माता ब्रिजेश्वरी देवी मन्दिर कांगड़ा
ब्रिजेश्वरी माता मन्दिर कांगड़ा को नगरकोट वाली माता भी कहते है l क्योंकि यह मन्दिर नगरकोट नामक कस्बे में स्थित है l यह मन्दिर भारत की 51 शक्तिपीठ तथा उतर भारत की मुख्य 9 शक्ति स्थलों में मुख्य है l हिन्दू पुराण साहित्य के अनुसार यहाँ माता सती के स्तन समाए थे l यहाँ पहुंचना कोई खास मुश्किल नहीं है l सड़क मार्ग द्वारा यहाँ आसानी से पहुंचा जा सकता है l यह शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला के नगरकोट में स्थित है l दिल्ली से 471 km, चंडीगढ़ से 227 km, shimla से 215 km तथा चामुण्डा देवी से 16 km की दुरी पर और समुद्र तल से 2,350 फुट पर स्थित है l रेल द्वारा कांगड़ा रेलवे स्टेशन तक जा सकते है l नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल (Kangra) जो मन्दिर से मात्र 11 km की दुरी पर है l इसके बाद बस या टेक्सी द्वारा आसानी से मन्दिर तक जाया जा सकता है l
मूल मन्दिर का निर्माण पाण्डवों द्वारा वनवास के दौरान किया गया था l कहते हैं एक रात माँ दुर्गा ने युधिष्ठिर को सपने में दर्शन दिए, और कहा कि मेरा मन्दिर नगरकोट में निर्मित करो, तो तुम सब महफूज रहोगे, वर्ना संकट का सामना करना पड़ सकता है l बताया जाता है कि उसी रात पाण्डवों ने माता का मन्दिर निर्मित कर दिया l मगर बाद के वर्षों में इसे मुगलों ने कई बार बुरी तरह लूटा तथा इसे नुक्सान पहुँचाया l सन 1009 में महमूद गजनी ने तथा सन 1360 में मुहम्मद तुगलक ने इसे जी भर के लूटा, और मन्दिर को तहस-नहस कर डाला तथा सैंकड़ो टन सोना चाँदी लूट कर ले गये l मगर आज इनके खानदान में कोई कुता भी नहीं बचा है, तो किसके लिए किया ये कुकर्म l उसके बाद राजा संसार चन्द ने इस मन्दिर का पुन: निर्माण करवाया l उसके बाद अकबर के मंत्री राजा टोडरमल ने इसे भव्य रूप प्रदान करने की कोशिश की l परन्तु 4 अप्रैल 1905 में आये खतरनाक भूकम्प ने इसका नमो-निशान मिटा दिया l सिर्फ एक छोटा मन्दिर जो माँ तारा को समर्पित है, वही इस त्रासदी में खड़ा रहा और आज भी इस विनाश का साक्षी भी है l उस भूकम्प में कांगड़ा में 19 हजार लोग काल का ग्रास बने थे l
यह है माँ तारा का मन्दिर जो भूकम्प की तबाही के बाद भी सलामत रहा जबकि बाकी का सारा मन्दिर भूकम्प के बाद नया बना है
अब वर्तमान में जो मन्दिर समूह हम देखते है, वह चारों ओर से पत्थरों की एक ऊँची दिवार से घिरा हुआ किले की मानिंद है l इस के अन्दर बहुत सारे मन्दिर है और इन्ही के मध्य माँ ब्रिजेश्वरी, पिण्डी के रूप में विद्यमान है l मकर सक्रांति जो लोहड़ी के दुसरे दिन पड़ती है, यहाँ एक मेले का आयोजन होता है, उस दिन माँ ब्रिजेश्वरी की पिण्डी को शुद्ध मखन का लेप लगया जाता है l क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब महिषासुर से माता का संग्राम हुआ था, तब माँ को भी काफी जख्म लगे थे l उन जख्मों पर मख्खन का मरहम लगाया था, और वो दिन मकर सक्रांति का था l उस आदिकाल से ही यह परम्परा चली आ रही है, जो आज तक कायम है.
इस यात्रा के साथी
माँ शेरांवाली के वाहन बब्बर शेर यह पीतल से बने हुए हैं
दोनों चित्र मुख्य मन्दिर के हैं
वैसे तो मैं 1993 में भी माता के दर्शन कर चूका था, मगर जब हम मणिमहेश की यात्रा से वापिस आ रहे थे, तो एक बार फिर माता के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ l और हमने सपत्निक अपनी दर्शन पिपासा को शान्त किया l हालाँकि मणिमहेश की यात्रा की काफी थकान भरी थी, फिर भी गाड़ी पार्कींग में लगाई और शहर की तंग गलियों से होते हुए 1.15 बजे मन्दिर तक पहुँच ही गये l जब तक आप मन्दिर के प्रवेश द्वार तक पहुँच नहीं जाते, मन्दिर होने का आभास ही नहीं होता l मन्दिर के चारों ओर इतना निर्माण हो चूका है, कि मन्दिर का प्रवेश द्वार भी मुश्किल से ही पता चलता है l बल्कि इस बार तो मन्दिर के अन्दर जाने के लिए दुकानदार से पूछना पड़ा l जबकि हम वही खड़े थे, मगर लग ही नहीं रहा था, कि यही मन्दिर का द्वार है l हाँ जैसे ही अन्दर प्रवेश किया तब उस भव्य मन्दिर का अहसास हुआ l आज मन्दिर में अधिक भीड़ नहीं थी, जबकि आज जन्माष्टमी थी, मुख्य द्वार के साथ ही दांई और शहनाई और ढोल द्वारा दो आदमी लोगों का मनोरंजन कर, एक भक्तिपूर्ण माहोल बनाए हुए थे l शहनाई की धुन बहुत ही अच्छी लग रही थी l हमने कुछ देर उसका रसास्वादन किया और उन कलाकार भक्तों को कुछ पैसे भी दिए l फिर line में खड़े हो गये और माता ब्रिजेश्वरी के चरणों की ओर धीर-धीरे सरकते रहे l बिल्कुल सामने संगमरमर के पत्थरों का एक चबूतरा बना हुआ है, जिस पर धर्म-सिला लिखा है l उस के अन्दर माँ के चार शेर (जो पीतल अथवा अष्टधातु के हैं) माँ की पहरेदारी कर रहे है l उन शेरों से आगे निकल कर हमने माँ को नमन किया l मन्दिर की परिक्रमा कर वह मन्दिर भी देखा जो 1905 के भूकम्प का साक्षी रहा है l
कुछ और दर्शनीय स्थलों की दुरी दर्शाता बोर्ड
ये इसलिए कि मैं भी कर्म में ही विश्वास रखता हूँ
अभी सिर्फ 2.30 बजे थे तो हमने रुख कर दिया ज्वालाजी जी की ओर.
चकोतरे को ध्यान से देखते हुए मधु कँवर
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