Chamunda Devi Tample Kangra H.P. ( चामुण्डा देवी मन्दिर)
हिमाचल प्रदेश को देव भूमि कहा जाता है यहाँ हजारों की संख्या में मन्दिर स्थापित है l इन्ही मंदिरों में एक मन्दिर माता चामुण्डा का भी है l यह मन्दिर कांगड़ा जिला के पद्दर कस्बे में बनेर नदी के किनारे पर स्थित है l यहाँ जाने के लिए दिल्ली से 372 km, चंडीगढ़ से 247 km और shimla से 218 km. का सफर तय करना पड़ता है l वायु मार्ग से gagal airport और वहाँ से बस या टेक्सी द्वारा 28 km दूर चामुंडा जी मन्दिर पहुंचा जा सकता है l चामुण्डा देवी मन्दिर सिर्फ धार्मिक स्थान ही नहीं बल्कि यह पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रख्यात है l इस मन्दिर को वैभवशाली बनाने में mohan mekine ltd. Breweries के मालिक Brig. Kapil Mohan का विशेष योगदान है l मन्दिर के आस-पास किया गया निर्माण इन्ही की सेवा का फल है l इसका शिलान्यास 13 दिसम्बर 1980 को श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा किया गयाlमन्दिर के सामने मैं हनुमान जी के चरणों में
मन्दिर का विहंगम दृश्य
इस सन्दर्भ में एक कहानी है, सच या झूठ का दावा नहीं कर सकता l मगर लोगों की जुबान पर ऐसा है l और बचपन में हमने भी खूब सुना था l चामुण्डा घाट का शिलन्यास पहले जून 1980 में होना निश्चित हुआ था और इंदिरा जी ही इसका उद्घाटन करने वाली थी l मगर किसी कारण वश उन्होंने इस में शिरकत करने से इन्कार कर दिया l इसके ठीक तीन दिन बाद 23 जून 1980 को उनके बेटे संजय गाँधी की मृत्यु एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में हो गयी l लोगों का मत यही है कि माँ चामुण्डा की नाराजगी के कारण ऐसा हुआ l और इसका अहसास इंदिरा जी को भी हो गया था l बात में कितना सच है ये शोध का विषय है l
बहुत से लोग चामुण्डा माता का मूल स्थान आदि हिमानी चामुण्डा को मानते है l इसे शक्ति पीठ नहीं माना जाता l चामुण्डा देवी शक्तिपीठ का दर्जा मथुरा में स्थापित चामुण्डा मन्दिर को दिया जाता है l जहाँ माता सती के चरण गिरे थे l
मन्दिर के बाहर एक शिलालेख है, जिसमे वर्णन किया गया है कि भारत वर्ष के उतर में जालंधर पीठ के अंतर्गत चामुण्डा नन्दिकेश्वर धाम पौराणिक काल से ही शिव-शक्ति का अद्भुत सिध्वार्दायी स्थान रहा है l यह स्थान जालन्धर पीठ के इतिहास में उत्तरी द्वारपाल के रूप में जाना जाता है l यहाँ जालन्धर राक्षस और महादेव के मध्य युद्ध के दौरान भगवती चामुण्डा को अधिष्ठात्री देवी का पद प्राप्त हुआ था l जिससे यह क्षेत्र रूद्र चामुण्डा के रुप में भी विख्यात है l जब देवासुर संग्राम हुआ था, तो देवी कोशिकी ने अपनी भृकुटी से चण्डिका उत्पन की l और चन्ड - मुन्ड का वध कर उनके सिर काट कर देवी कोशिकी के पास ले कर आई l इस से प्रसन्न हो कर देवी कोशिकी ने वरदान दिया कि तुमने चन्ड और मुन्ड का नाश किया है,इस लिए आज से तुम चामुण्डा के रूप से जाने जाओगीl
चामुण्डा माता को माँ काली का रूप माना जाता है l इसके पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है कि किसी समय शुम्भ-निशुम्भ नामक दो राक्षसों का राज इस धरती पर हुआ करता था l तीनो लोकों के उनका आतंक फैला हुआ था l देवताओं के पास जब कोई रास्ता न बचा तो उन्होंने माँ दुर्गा से प्रार्थना कर तीनों लोकों को मुक्त कराने की गुहार लगाई l तत्पश्चात माता ने कोशिकी देवी के रूप में एक सुंदर नारी का अवतार लिया l जब इस अति सुंदर नारी के चर्चे शुम्भ-निशुम्भ तक पहुंचे तो उन्होंने अपने दूतों को देवी कोशिकी के पास विवाह के प्रस्ताव के साथ भेजा l दूत ने सुन्दरी कौशकी से कहा कि शुम्भ-निशुम्भ तीनो लोकों में सबसे शक्तिशाली है, और आप तीनों लोकों की सबसे सुंदर महिला हो, अत: ऐसी सुंदर स्त्री को उनकी पत्नी होना चाहिए l देवी कोशिकी ने सन्देश भिजवाया, कि वह उसी से शादी करेगी जो उसे युद्ध में हराएगा l यह सन्देश सुन कर शुम्भ-निशुम्भ बहुत क्रोधित हुए l उन्होंने चन्ड और मुन्ड नामक दो शक्तिशाली राक्षसों को उस सुन्दरी को उठा कर लाने को भेजा l चन्ड - मुन्ड को देख कर देवी ने काली रूप धारण किया l और दोनों राक्षसों का सेना सहित संहार कर दिया l इसी कारण देवी कोशिकी का नाम चामुण्डा प्रसिद्ध हुआ l जितनी भी सेना मारी गई सबका अंतिम संस्कार चामुण्डा घाट पर हुआ l आज भी मन्दिर के सामने एक श्मशान घाट है l आस पास जितने भी लोगों की मौत होती है, उनका अंतिम संस्कार यही होता है l इस विश्वास से कि माँ चामुण्डा इनकी आत्मा को मोक्ष प्रदान करेगीl
यह सारा निर्माण M M B के श्री कपिल मोहन जी द्वारा करवाया गया है
माता चामुण्डा की मूर्ति को गर्भ गृह में ढक कर रखा जाता है l मन्दिर में पीछे की ओर एक गुफा है, जिसके अन्दर प्राकृतिक शिवलिंग है l मन्दिर के बाहर एक सुंदर तालाब है, जिसके बीचों बीच भगवान् शंकर की एक आकर्षक प्रतिमा है l कुछ और प्रितामायें भी श्री कपिल मोहन द्वारा निर्मित करवाई गई हैl
मैं एक बार पहले भी 1993 में माँ चामुण्डा के दर्शन कर चूका हूँ l मगर इस बार जब हम मणिमहेश के दर्शन कर वापिस लौट रहे थे, तो एक बार फिर दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ l साथ में आज जनमाष्टमी का भी दिन था l हम सुबह 9 बजे नूरपुर से चले थे l दिन के 11.00 बजे हम मन्दिर के प्रांगण में थे l अभी भीड़ नहीं थी, पार्किंग में भी काफी जगह खाली थी l क्योंकि दूर से आने वाली बसें और गाड़ियाँ 12 बजे तक ही पहुँचती है, उसके बाद भीड़ बहुत हो जाती है l हमने एक घन्टे तक भ्रमण किया कुछ फोटो ली कुछ पुरानी यात्रा की यादें ताजा कीl
जोगिद्र सिंह, हेम दत जी व् उनकी पत्नी और मधु कँवर
हम दोनों
पं. हेम दत्त जी अपनी पत्नी के साथ
और आखिर में एक पुराना चित्र मेरी एल्बम से जो 1993 का है
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