Mamleshwar mahadev temple (ममलेश्वर महादेव मंदिर करसोग हि प्र)
ममलेश्वर महादेव मंदिर, यह 12 ज्योतिर्लिंग वाला ममलेश्वर नहीं है. यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के करसोग के एक छोटे से गाँव ममेल स्थित है. हिमाचल के बहुत सारे मंदिरों की भान्ति इसे भी महाभारत काल-खण्ड में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान निर्मित व् स्थापित किया था. himachal के अधिकतर मन्दिरों की भान्ति इसे भी पैगोड़ा शैली में बनाया गया है . जाहिर तौर पर यह मंदिर भवन महाभारत काल-खण्ड के नहीं है. इन्हें बाद के वर्षों में निर्मित किया गया है. यहाँ एक पुराना मन्दिर भी है, जो अक्सर बंद ही रहता है. देखने से ही लगता है कि यह निर्माण सदियों पहले हुआ है. पुरातत्व विभाग ने भी इसकी पुष्टि की है. ऐसा कहा जाता है कि यह दुनिया का पहला मंदिर है, जहाँ शिव व् पार्वती युगल रूप में विराजते है.
मूर्ति रूप में शिव-पार्वती
काँच के बक्से में रखा गेहूं का दाना
इस मन्दिर में एक ढोल है, जिसे महाभारत कालीन बताया जाता है. और ये भेखल नामक पौधे की लकड़ी से निर्मित है. विश्वास करना कठिन है, क्योंकि आज कल जो भेखल के पौधे मिलते है, मुश्किल से 2 इन्च ब्यास के होते है. क्या हजारों साल पहले भेखल का ब्यास 2 फूट था ! इसी प्रकार यहाँ एक कनक (गेहूँ) का दाना भी है, जिसका आकार एक मध्य आकार के आज के आम के बराबर है. क्या हजारों वर्ष पहले इतने बड़े दाने होते थे गेहूँ के ! तो फिर उसके पौधे का अकार क्या होगा ! ये सब आश्चर्यजनक है. एक और भी आश्चर्य है अखण्ड जलता हुआ धुना. (बहुत से मंदिरों में अखण्ड जोत व् अखण्ड धुनें जल रहे है) इसके बारे में एक कथा है, जो महाभारत में भी वर्णित है. जब पाण्डव अज्ञातवास के दौरान यहाँ पहुंचे तो इस जगह को सुरक्षित जान कर कुछ दिन यहीं गुजारने का विचार किया. एक दिन जब पाण्डव भोजन के लिए भिक्षा मांग रहे थे, तो एक घर से किसी स्त्री के रोंने की आवाज सुनाई पड़ी, कारण पूछने पर पता चला कि यहाँ एक राक्षस रहता है, जो लोगों को और उनके पशुओं को खा जाता है. मगर अब गाँव वासियों व् राक्षस में एक समझौता हुआ है कि प्रतिदिन एक घर से एक आदमी खाने-पीने के सामान के साथ खुद को उस राक्षस के सामने पेश होगा और उसका भोजन बनेगा. तो आज इस घर के आदमी की बारी है. रोना चिल्लाना इस लिए था, कि इस घर का एक ही पुरुष था, और वह भी अभी बालक ही था, उसके पश्चात् इस घर का कोई भी पालनहार नहीं बचेगा. इतना सुनने के बाद भीम सेन ने परिवार को दिलासा दिया, और कहा कि कल वह उस बालक की जगह खुद उस राक्षस के पास जायेगा. अगले दिन भीम और उस राक्षस के मध्य भयंकर युद्ध हुआ, वह दैत्य मारा गया. उसके मरते ही लोगों ने राहत की सांस ली और आनन्द उत्सव मनाया. एक जगह बहुत सारी लकड़ियाँ इकठ्ठी कर आग जलाई गई. यह आग आज भी धुनें के रूप में अनवरत जल रही है. पाण्डवों ने ही यहाँ शिवलिंग की स्थापना की. कुछ एक मान्यताओं के आधार पर यह भी कहा जाता है, कि परशुराम राम ने घाटी में 81 शिवलिंग की स्थापना की थी, उन में से एक शिवलिंग इस जगह भी स्थापित किया गया है.
ममलेश्वर मंदिर के कुछ चित्र
कामाख्या मन्दिर से हम लोग उसी रास्ते से वापिस आए जहाँ से गए थे. ममलेश्वर महादेव के दर्शन वापिसी में ही किये. लगभग 6.00 बजे हम लोग तीन गाड़ियों में ममेल पहुंचे. यहाँ भी मन्दिर के लोगों ने हमारा अच्छा स्वागत किया, कारण थे डा. राकेश प्रताप और उनका स्टाफ. डा. राकेश प्रताप करसोग ब्लॉक के BMO है, तो आदर तो मिलना ही था. और वैसे भी राकेश जी काफी मिलनसार इन्सान है, तथा उनके स्टाफ की तो जितनी प्रशंसा की जाये कम है. मंदिर की भव्यता और काष्ठ कला देख कर मन प्रसन्न हो गया. पुजारी जी ने बारी-2 हमें दिवार पे लटका हुआ भीम सेन का ढोल, काँच के बक्से में रखा गेहूँ का दाना तथा मंदिर की सब चीजो से अवगत करवाया. चरणामृत और प्रशाद दे कर आशीर्वाद दिया. मंदिर के दाहिनी तरफ के प्रांगण में, सड़क की ओर, एक चबूतरे पर एक मुख्य व् कई अन्य शिवलिंग स्थापित है. ये उन एक सौ शिवलिंग में से है जो यहाँ इस स्थान पर भूमिगत है. (ऐसा कहा माना जाता है की मंदिर क्षेत्र में एक सौ शिवलिंग भूमिगत है) मंदिर के अन्दर और बाहर पूरी शान्ति व् सकून है. किसी तरह की कोई अराजकता या लुट-खसूट नहीं है, जैसा की कई मंदिरों में दखने को मिलता है. पैसा सिर्फ दान पात्र में डालना होता है. अगर कोई भेंट या सोना-चाँदी अर्पण करते हैं, तो पुजारी उसकी रसीद देते हैं. हर सवाल का स्पष्ट उतर मिलता है. किसी भी यात्री ने रात को रुकना हो तो रहने की निशुल्क व्यवस्था है. इतने अच्छे लोगों, और भोलेनाथ का, प्रणाम सहित धन्यवाद किया.
मधु कँवर
लगभग एक घंटा मन्दिर में गुजर कर बाहर निकले. अगले दिन का हमारा प्रोग्राम शिकारी देवी जाने का था. डा. राकेश के स्टाफ वालों ने ताकीद की, कि आज बारिश बहुत हो चुकी है, तथा शिकारी देवी जाने का शार्टकट रास्ता खराब हो गया होगा, उस रास्ते से जाना खतरनाक है. फिर भी सुबह जाने से पहले एक बार रास्ते के बारे में आश्वस्त हो लें, वरना दुर्घटना का सामना करना पड़ सकता है. अब समय था कि हम डा. साहब और उनके सहयोगियों का धन्यवाद करे, तो उनसे भी विदा लेकर 7.30 बजे हम परिवार सहित होटल पहुँच गए. खाना खाया और लम्बी तान कर सो गए.
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