Janjehli untouched beauty mandi hp (अनछुई सुन्दरता जन्जैहली)
जन्जैहली; एक ऐसी खुबसूरत जगह है, जहाँ हर प्रकृति प्रेमी अपने जीवन में एक बार जरुर जाना चाहेगा. ‘वैसे ही जैसे हर पर्यटक एक बार गोवा देखने की इच्छा रखता है’ हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला में जन्जैहली वही स्थान रखती है, जो दुनिया भर में स्विजरलैंड का, कश्मीर में गुलमर्ग और सोनमर्ग का है. अगर आप में से किसी ने खजियार देखा है, तो एक बार जन्जैहली अवश्य जांएं ऐसे कई खजियार आपको यहाँ देखने को मिलेंगे. जन्जैहली एक छोटा सा गाँव है, मगर इसके आस-पास बहुत से दर्शनीय स्थान, मन्दिर, trecking pass और झीलें हैं. एक तरफ सीढ़ीनुमा ढलानदार खेत हैं, जिनमे आलू, बंद गोभी और मटर की लहलाती फसलें मन मोह लेती है. तो दूसरी ओर सेब नाशपाती और अखरोट के पौधे हैं, जो स्थानीय लोगों की आर्थिक समृधि का स्रोत हैं. मौसम की प्रतिकूलता, शहर व् मुख्य सड़कों से दुरी के कारण यहाँ जीवन यापन इतना सरल नहीं है. मगर फिर भी शहरों के मुकाबले यहाँ खुशहाली, तंदरुस्ती और संतुष्टि कहीं अधिक है.
जन्जैहली तक पहुँचने के दो प्रमुख रास्ते हैं. एक चंडीगढ़ से वाया शिमला, और दूसरा चंडीगढ़ से वाया बिलासपुर घाघस, चैल चौक से होते हुए. चूँकि हम करसोग में थे तो हमें यही से जाना था. करसोग से भी दो रास्ते हैं. अगर मौसम अनुकूल हो तो एक शार्टकट है, सनारली रायगढ़ भूलह होते हुए 30 km. वरना दूसरा छतरी होते हुए 91 km. जब 25 जून 2015 को हम सुबह 6.00 बजे करसोग से चलने की तैयारी कर रहे थे, तो बारिश भी जोर-शोर से हो रही थी, बल्कि रात से ही चालू थी. मौसम यात्रा करने के काबिल नहीं था, फिर भी करसोग बाजार से बाहर निकल कर सनारली में (सनारली से ही शार्टकट है यहाँ से सिर्फ 18 km है शिकारी) दो-चार लोगों से शिकारी जाने की बाबत पूछा, तो सबने सलाह दी कि या तो आज के दिन का प्रोग्राम टाल दो, या फिर छतरी होते हुए जाओ. अब सीधा और छोटा रास्ता तो सिर्फ 20 km था. जबकि छतरी, जन्जैहली होते हुए 106 km. अब पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं था. बेशक बारिश मूसलाधार थी, पर इरादे चट्टान से भी मजबूत थे. सो बिना वक़्त गंवाए छतरी वाली राह पकड़ ली. 8.00 बजे हम केलोधार नामक जगह पर थे. कुछ क्षुधा तंग करने लगी थी यहाँ एक ढाबा दिखाई पड़ा, जहाँ एक लड़की परांठे बना रही थी. हमने गाड़ी में से ही पूछा क्या ब्रेकफास्ट मिलेगा. तो पहले उसने अपने पिता से पूछा और हाँ कर दी. हमने डट कर दहीं के साथ आलू के परांठे खाए, तब आगे के बारे में सोचा. क्योंकि अपना उसूल है कि खुद का पेट और गाड़ी की टंकी हमेशा फुल करो, तब सफ़र पे निकलो. जिन जगहों को पार कर हम जन्जैहली पहुंचे, उन स्थानों के नाम इस प्रकार है, करसोग से सनारली, केलोधार, कतान्डा, नेहरा, सेरी-झाकड़, बरयोगी, छतरी, पैन्दापनी, रुछाड, मगरुनाला, कटनालू और जन्जैहली.
जंगलात विभाग की वर्षा शालिका
कतान्डा के पास भगवती का पूज्य स्थान (स्थानीय भाषा में भगपती)
साथ ही अगले मोड़ पर भगवती के भाई गमशीरा
हिमाचल की पहचान गद्दी
बरयोगी गाँव में पुल पार करते बच्चे
छतरी मोड़ (हर मोड़ पर) पर मंदिर, तभी तो नाम है देवभूमि
बारिश बिलकुल भी नहीं रुक रही थी. फिर भी हम सुहाने मौसम में सुहाने सफर का आनन्द लेते रहे. घनी धुन्ध की वजह से आस-पास की स्थिति और प्रकृति का अन्दाजा नहीं हो रहा था. छतरी तक तो हम ठीक ही चल रहे थे. मगर जब वहाँ से चढ़ाई शुरू हुई तो गाड़ी के साथ -2 हिम्मत भी फिसलते हुए ही चल रही थी. एक तो खड़ी चढ़ाई और फिसलन भरी सड़क, मूसलाधार बारिश और फोन का नेटवर्क भी गायब. मगरुनाला जा कर चढ़ाई ख़त्म हुई तो थोड़ी चैन की साँस ली, बस सिर्फ पांच मिनट तक ही. फिर एक नयी परीक्षा सामने थी. कई बार ऐसा भी होता है कि हम अपनी तरफ से तो अच्छा काम कर रहे होते है, मगर आने वाली मुसीबत का अंदाजा गलत हो जाता है. ऐसा ही हुआ यहाँ भी. PWD विभाग की JCB मशीन की वजह से. बारिश से सड़क पर कीचड़ ही कीचड़ फैला हुआ था, तो किसी समझदार आदमी ने मशीन भेज दी सफाई करनी के लिए. पहले तो बीच में या किनारों पर ही कीचड़ के ढेर थे, अब मशीन चलने की वजह से वो कीचड़ सारी सड़क पर फ़ैल चूका था. मगरुनाला से हम निचे कि तरफ उतर रहे थे, पहले गियर में भी गाड़ी कंट्रोल नहीं हो पा रही थी. ब्रेक लगाने का मतलब था, सीधी दुर्घटना. एक जगह तो गाड़ी पहाड़ से टकराते-2 बची. अभी एक km ही आगे आये थे, कि एक सरकारी बस जो हमारी ओर आ रही थी, बीच सड़क में खड़ी थी. उसके पहिये आगे चलने की बजाए एक ही जगह पर घूम रहे थे. बस भी ऐसी जगह खड़ी थी कि आदमी भी पैदल नहीं निकल सकता था. मेरे आगे और पीछे भी एक-एक गाड़ी थी. हमने उतर कर बस के चालक से आग्रह किया कि वह किसी तरह बस पीछे ले जाए. मगर चालक की हिम्मत नहीं हो रही थी. जैसे ही बस गियर में डालता, टायर घूम कर निचे-ऊपर चले जाते थे. बस का चालक निचे उतर गया और असमर्थता जाहिर करने लगा. मैंने उसे समझाया कि “भाई साहब आप गाड़ी को पहले क्लच के सहारे थोडा पीछे करो, जब टायर अपनी लीईईई में आ जाए, तब एक्स्लिरेटर का सहारा लो.” अब मेरा भी 21 साल का कुछ तो तजुर्बा है. यह बात चालक साहब की समझ में आ गई. इस प्रकार इस मुसीबत से छुटकारा हुआ. ऊपर जाने वाली अधिकतर गाड़ियाँ स्थानीय लोगों की ही थी. वहाँ से एक km आगे आने पर एक गाड़ी दिखी, नम्बर था हरियाणा का. “मैंने पूछ्या भई कढ़े जा रहे हो तो भाई बोल्या नारकंडा जाणा से” उसने बताया हम गुडगाँव से आये है, शिकारी गए थे, मगर गाड़ी नहीं चढ़ सकी. अब नारकंडा जाना है, किसी ने ये रास्ता बताया है कि यहाँ से नजदीक रहेगा. मैंने उसे समझाया और वापिस किया तथा उसे बताया कि या तो रोहांडा होते हुए, वाया ततापानी निकल जाओ, या फिर चैल चौक होते हुए वाया घागस, वैसे रोहांडा से नजदीक रहेगा. भाई ने बात मान ली. आशा है सुखी रहा होगा.
टायर के निशान और बस, खुद ही सारी कहानी बयाँ कर रहे हैं
ये है अनछुई सुन्दरता
भूलह
अब कहाँ 30 km और कहाँ 91 km और वो भी मुसीबतों भरा. खैर अब पक्की सड़क आ चुकी थी. बरखा रानी के भी रुकने के असार नज़र आने लग गए थे. कुछ ही देर में जन्जैहली पहुँच गए. अब कुछ जानी-पहचानी सी जगह नज़र आ रही थी. क्योंकि 2010 में यहाँ का दौरा हो चूका था. फिर भी हमने दोबारा वही स्थान देखे, फर्क सिर्फ इतना था कि इस बार बच्चे भी साथ थे. पहले जन्जैहली से भूलह जहाँ से शिकारी देवी जाते है, फिर पाण्डव शिला. पाण्डव शिला एक गोल चट्टान है जो एक अन्य चट्टान के ऊपर ऐसी धुरी पर खड़ी है, कि एक हाथ के हल्के से दबाव से ही हिलने लगती है. जनश्रुति के अनुसार यह पत्थर भीम (पाण्डव) के हुक्के की चिलम में रखा जाने वाला पत्थर है, जो तम्बाकू को रोकने के लिए होता है. यहाँ आने वाला हर आदमी इस के ऊपर एक कंक्कर फैंकता है, अगर वह कंक्कर चट्टान के ऊपर टिक गया तो मनोकामना अवश्य पूरी होगी ऐसी मान्यता है. उसके बाद थुनाग जो जंजैहली घाटी की तहसील है, हम यहाँ 2010 में एक रात के लिए रुके थे, जब यहाँ के तहसीलदार मेरे मित्र अनिल शर्मा थे. थुनाग से एक पैदल रास्ता कमरुनाग के लिए भी जाता है. और शिकारी जाने के लिए भी यहाँ से पैदल रास्ता है. हमने पुरानी यादों को तजा करते हुए कुछ नये चित्र खींचे, और इस खुबसूरत जगह को अलविदा कह रोहांडा के लिए प्रस्थान किया.
पाण्डव शिला
यात्रा पर निकला देवी रथ
बगस्याड में शिव मन्दिर
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