परिचय तथा परिस्थिति :
बेशक आप घुमक्कड़ है, या नहीं है l क्या आप किसी छोटी trek पर जाना चाहते हैं जो एक ही दिन में आसानी से हो जाए, तो सबसे बढ़िया जगह है करोल पर्वत l जिसे अक्सर करोल का टिब्बा कहा जाता है l पहाड़ों में टिब्बा का अर्थ ‘बड़ा पहाड़’ होता है l चंडीगढ़ या इसके आसपास के लोग एक दिन में इस यात्रा का आनंद ले सकते हैं l chandigarh से सोलन कि दुरी 67 km. है l वहां से चम्बाघाट तीन km., और फिर चम्बाघाट से 6 km. पैदल trek l करोल पर्वत की चोटी की ऊँचाई लगभग 7350 फूट है l सोलन तक बस ट्रेन या खुद कि निजी गाड़ी से भी आया जा सकता है l वैसे अब चम्बाघाट से वाया बसाल एक सड़क का निर्माण भी हो गया गया है, जो जराश गाँव तक बन गई है l आने वाले समय में यह गुफा तक भी जा सकती है l एक सड़क का निर्माण कंडाघाट से करोल के लिए भी हो रहा है l करीब 3-4 साल हो गए है इस सड़क को बनते हुए, यह करोल कब पहुंचेगी भगवान ही जाने l चम्बाघाट से करोल गुफा की दुरी 4 km. है l वहां से पहाड़ कि चोटी तक जाने के लिए 2 km. की खड़ी चढ़ाई और चढ़नी पड़ती है l करोल पर्वत की चोटी पर माँ काली का एक प्राचीन मंदिर है, जिसे करोल माता के नाम से भी जाना जाता है l बसाल व बेर गाँव के लोग माँ काली की पूजा अपनी कुलदेवी के रूप में करते हैं l अषाढ़ माह की 2 या 3 तारीख को यहाँ पर सार्वजानिक पूजा का आयोजन एक मेले के रूप में होता है l जिसमे लगभग सभी स्थानीय लोग शिरकत करते हैं l नई फसल के अनाज से करोल माता को भोग लगाया जाता है, व् माँ की आराधना की जाती है l सभी आगंतुकों के लिए भंडारे का भी आयोजन होता है lपुरे का पूरा पहाड़ चील, देवदार फर व बान के पेड़ों से भरा हुआ है, बीच-बीच में काफ़ल और बुरांस के पेड़ भी है l जब भी पहाड़ों में बर्फबारी होती है, तो यहाँ पर भी बर्फ खूब गिरती है l सोलन में तो अब आबादी बहुत हो गई है, इसलिए बर्फ के बस दूर-दर्शन ही होते हैं l
चम्बाघाट से करोल टिब्बा के टॉप तक जाने के दो पैदल रास्ते हैं l जराश गाँव तक तो एक ही रास्ता है, उसके बाद एक सीधी चढ़ाई वाला रास्ता करोल माता तक जाता है l और दूसरा करोल गुफा से होता हुआ चोटी पर पहुंचाता है l अधिकतर लोग पहले गुफा तक जाते हैं, वहां दर्शन करने के बाद करोल टिब्बा पर करोल माता के दर्शन करते हैं l कुछ पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार करोल की गुफा हिमाचल की सबसे पुरानी और बड़ी गुफा है l जिसका दूसरा सिरा पिंजौर में खुलता है l इस गुफा को पांडवों ने लाक्षाग्रह से भागते समय इस्तेमाल किया था l अब इसका निर्माण पांडवों ने किया था, या यह पहले से ही विद्यमान थी, इसके के कोई साक्ष्य नहीं है l एक मत यह भी है कि सबसे पहले इस गुफा में भगवान भोलेनाथ ने तपस्या की थी l ऐसा भी मत है कि इस गुफा के अन्दर एक विशाल झील विद्यमान है l मगर इसका कोई प्रमाण नहीं है, क्योंकि आज तक इसे कोई भी एक्सप्लोर नहीं कर पाया है l करोल कि चोटी पर जो माँ काली, करोल माता के रूप में विराजमान है , यह भी शायद पांडवों द्वारा ही प्रस्थापित की गई है l अक्सर यह देखने में आया है जहाँ-2 भी पांडव अज्ञातवास व वनवास के समय गये हैं, वहां-2 उन्होंने माँ भवानी के विभिन रूपों की या शिवलिंगों की स्थापना की है l हिमाचल में तो बहुतायत में ऐसे मन्दिर मिलते हैं, जिनका सम्बन्ध पांडवों के वनवास से जोड़ा जाता है l मगर करोल टिब्बा की गुफा का सम्बन्ध उससे भी पहले का है, जब शकुनी ने पांडवों को लाक्षाग्रह में जिन्दा जलाने का नाकाम प्रयास किया था l ऐसा कहा जाता है तब सभी पांडव इसी गुफा से भागे थे l
गाँव बेरपानी: हमारी यात्रा का starting point
दोहरी फसल: अदरक और अरबी के साथ मूली की खेती , पीछे टमाटर नजर आ रहे हैं
जराश गाँव
दाडू :पहाड़ी अनार
मेरे रश्के कमर
ग्रुप फोटो : यशदीप द्वारा
भगवान श्री कृष्ण का चांदी का रथ
गुफा के बाहर भोलेनाथ और गुफा
नवनिर्मित लंगर भवन
5 हजार वर्ष पुराना बान का पेड़
करोल शिखर के रास्ते पर
करोल माता के सानिध्य में
बस एक फोटो का सवाल है बाबा
इक छतरी और हम दो
दूर कहीं जब दिन ढल जाए
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