BhimaKali Mandir Sarahan H.P. “भीमाकाली मन्दिर सराहन (रामपुर)
हिमाचल प्रदेश समस्त देवी देवताओं आवास स्थान है. दुनिया भर के जिज्ञासु लोगों की एक इच्छा होती है, कि कभी उन्हें इस खुबसूरत धरती पर पैर रखने का मौका मिले और वो इस देव भूमि के दर्शन कर खुद को भाग्यशाली समझे. ऐसी ही एक खुबसूरत जगह है सराहन और वहाँ विद्यमान माँ भीमाकाली का मन्दिर, जो एक अनूठी बौध और पहाड़ी शैली में निर्मित है. भीमकाली मन्दिर दिल्ली से 520 km, chandigarh से 273 km, shimla से 165 km, रामपुर बुशहर से 37 km. दूर भारत-तिब्बत सड़क पर ज्यूरी नमक गाँव से 17 km. दांई ओर, समुद्र तल से लगभग 7100 फुट पर स्थित है.
माँ भीमाकाली, बुशहर राजवंश की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित है. बुशहर रियासत की प्राचीन राजधानी सराहन ही हुआ करती थी. शायद कठिन भोगोलिक परिस्थितिओं को देखते हुए बाद में राजा राम सिंह ने रामपुर को बुशहर की राजधानी के रूप में विकसित किया और अंतिम राजा के रूप में श्री वीरभद्र सिंह जी ने इसका प्रतिनिधित्व किया. वह आज हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री है, और हिमाचल के लोग उन्हें आज भी राजा साहब कह कर बुलाना पसंद करते हैं. सराहन के बारे में एक पौराणिक कथा के अनुसार यह स्थान कभी शोणितपुर कहलाता था. और यहाँ का सम्राट बाणासुर था, जो राजा बलि का पुत्र था. वह भगवान् भोले शंकर का परम भक्त था. “ त्रेता युग में रावण और बाणासुर के बीच में काफी संघर्ष होता रहा है, उस वक़्त बाणासुर ही एक अकेला ऐसा योधा था, जिससे रावण कभी जीत नहीं सका”.
माँ भीमाकाली के बारे में बहुत से लोगों से सुना था. और हमारी भी इच्छा थी कि एक बार माता के दर्शन किये जाएँ. जब किन्नर कैलाश जाने प्रोग्राम बना तो हमने तय किया कि जाते हुए सबसे पहले सराहन ही जायंगे और माँ भीमकाली को शीश नवां कर ही आगे बढ़ा जाएगा.
लकड़ी द्वारा निर्मित मन्दिर और स्लेट की छत
क्रमानुसार तीन प्रवेशद्वार
मन्दिर का मुख्य प्रांगण जो काफी बड़ा है
चाँदी के दरवाजे जो आदरणीय राजा पदम् सिंह जी ने मन्दिर में लगवाए थे सन 1927 में
1 अगस्त 2014 को सुबह 5.30 बजे हम चार लोग मैं, मेरी जीवन संगिनी मधु कँवर, भरत सिंह व् उनकी धर्मपत्नी अपने घर kasauli से किन्नर कैलाश की यात्रा के लिए निकल पड़े. और सामने जो लक्ष्य था वो था सराहन 9.30 बजे हमने कुमारसेन में उसी ढाबे पर गाड़ी रोकी, जहाँ हम श्रीखंड महादेव जाते व् आते हुए खाना खाने के लिए रुके थे. भरत सिंह की पत्नी ने नाश्ता नहीं किया, क्योंकि उनको गाड़ी में उल्टियाँ हो रही थी. हमने अपने फेवरिट खाने (पराँठे) का आनन्द लिया और 10.30 बजे प्रस्थान कर गए. 12 बजते-2 हम रामपुर बुशहर पार गये थे.
यही है वो ढाबा जहाँ हमने नाश्ता किया
ज्यूरी पहुंचकर सराहन का बोर्ड देख कर, दांई ओर एक पतली संकरी सड़क पर अपना यात्रा रथ “स्कार्पियो” घुमा दिया. जयुरी से सराहन की सड़क संकरी होने के साथ-2 काफी घुमावदार व् चढ़ाई वाली है लगभग छ कैंची मोड़ (hair pin bend) लाँघ कर दोनों तरफ सेब के बगीचों में से होते हुए, एक बजे हम मन्दिर के प्रांगन में थे. मन्दिर का बाहरी दृश्य ही मंत्रमुग्ध कर देने वाला है. यह मन्दिर बहुत बड़े भाग में फैला हुआ है. मुख्य मन्दिर तक जाने में बड़े-2 तीन आंगन पार करने पड़ते हैं. तीसरे और सबसे ऊँचे आंगन में पहुंचकर अभी मन्दिर को निहार ही रहे थे, कि सामने सुचना पट पर नज़र गई, जहाँ लिखा था कि मन्दिर में कोई भी चमड़े से बनी वस्तु, कैमरा और मोबाइल आदि नहीं ले जा सकते, और न ही नंगे सिर मन्दिर में प्रवेश की इजाजत है. वहीँ बाँई और काफी सारे लकड़ी के Lockers बने हुए थे, जिन पर ताले लटक रहे थे. यहाँ अपना सामान रखो, ताला लगाओ चाबी अपनी जेब में डालो और चिंतामुक्त हो कर दर्शन करो. locker देख कर मैं काफी प्रभावित हुआ, हमने बहुत सी यात्रायें की है, हर जगह सुचना लिखी होती है कैमरा मोबाईल मान्य नहीं है. मगर सामान को रखें कहाँ, या तो किसी दुकानदार के पास रखो और जब तक दर्शन करके वापिस न आओ, लाखों के सामान की चिंता में आधा खून सुख चूका होता है. या फिर बारी-2 दर्शन करो और दुगुना समय बर्बाद करो. हिंदुस्तान में कानून बना कर सुचना तो लगा देते हैं, मगर उसका विकल्प नहीं सुझाते. “यहाँ मुझे कुछ दिन पुरानी एक बात याद आ गई, जब हिमाचल में माननीय उच्च न्यालय ने सार्वजानिक स्थान पर धूम्रपान पर रोक लगाई, तो हर तरफ प्रशासन चाक-चौबंद हो गया. अब एक दिन हुआ ये कि shimla मॉल रोड पर एक न्यायधीश महोदय को एक अंग्रेज सिगरेट पिता नज़र आ गया, वह उसके पास गये और बताया कि आप इस तरह खुले में धूम्रपान नहीं कर सकते. उस अंग्रेज ने माफ़ी मांगी और सिगरेट बुझा कर फैंक दी. और उन महोदय की तरफ मुखातिब हो कर बोला श्रीमान जी गलती के लिए माफ़ी चाहता हूँ, मगर क्या आप कृपा कर के ये बताने का कष्ट करेंगे कि smoking jone कहाँ पर है. अब कानून बनाने वाले के पास कोई जवाब नहीं था”. (अगर मेरे इस कथन से किसी की भावना को ठेस पहुंची हो तो क्षमा चाहूँगा)
अब मन्दिर के अन्दर चलते हैं.
पहले हमने वहाँ रखी टोपी पहन कर कुछ चित्र लिए, अपना सामान locker में रखा और मन्दिर में प्रवेश किया. यहाँ मन्दिर की दो इमारते हैं. मुख्य पुराना मन्दिर बंद रहता है, और विशेष अवसरों पर ही खुलता है. साथ ही बाँई तरफ वाला मन्दिर चार मंजिल का है. मगर हर तल की ऊंचाई 7 फुट से अधिक नहीं है. लकड़ी की सीढ़ियों से होते हुए जब मुख्य द्वार पर पहुंचे तो वहाँ ताला लगा हुआ था. और 6-7 लोग पहले से ही खड़े थे. जिनमे एक नव विवाहित जोड़ा भी था, जो शादी के बाद माँ का आशीर्वाद लेने यहाँ आया था. उन में से ही किसी ने बताया कि पुजारी जी खाना खा कर बस आते ही होंगे, हम बात कर ही रहे थे कि पुजारी जी चाबी हाथ में लेकर हमारे सामने प्रकट हो गये, जाते-2 बोले कि जोड़े में दर्शन करें तो शुभ रहेगा. जब हमारा नम्बर आया तो (दो जिस्म एक जान) हम दोनों ने छोटे से दरवाजे में से झुक कर अन्दर प्रवेश किया, पुजारी जी ने हमारे बारे में पूछा, कि कहाँ से आये हो. जब उन्हें मालूम हुआ कि हम भी राजवंश से तालूक रखते है, तो उन्होंने हमें विशेष आदर व शाल देकर सम्मानित किया. हमने माँ भीमाकाली को नमन किया, पुजारी जी का धन्यवाद किया और मन्दिर की सीढ़िया उतर कर वापिस उसी प्रांगण में आ गये. मुख्य मन्दिर के दाहिनी तरफ निचे के प्रांगण में यज्ञशाला के साथ-2 नर सिंह, पाताल भैरव और लांकड़ा वीर के मन्दिर के दर्शन कर, तक़रीबन एक घंटा गुजारकर बाहर निकले. अब भगवती की पूजा हो चुकी थी तो बारी थी पेट पूजा की.बाज़ार में एक ढाबे पर खाना खाया. खाना बहुत अच्छा तो नहीं था पर पेट भरने के लिए ठीक ही था यात्रा में अक्सर ऐसा होता ही रहता है
इसे पढ़ें और गौर करें
इस मन्दिर का सबसे शानदार निर्माण
कुछ फोटू अपने भी हो जाए
बाज़ार से लिया गया चित्र
शायद यही है बुशहर के राजाओं का पुराना महल (जानकारी अधूरी है)
दुरी दर्शाता एक बोर्ड और सामने है SSB का कैम्प
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