Chintpurani Mandir : Una H.P.
माँ चिंतपूर्णी (Chintpurni Mandir)मंदिर हि. प्र. के उना जिला में शिवालिक पर्वत श्रृंखला के अंतर्गत सोलह-सिंघी पर्वत पर स्थित है, 51 शक्तिपीठ (51 Shaktipeeth) तथा उत्तर भारत की नौं मुख्य देवी-पीठ में एक महत्वपूर्ण देवी स्थल, जहाँ माता सती के चरणों का कुछ भाग गिरा था, इसे छिन्मस्तिका भी कहा जाता है. कुछ लोग इसे शक्तिपीठ का दर्जा प्रदान नहीं करते. पंजाब के साथ लगती सीमा के कारण यहाँ सबसे अधिक श्रद्धालु पंजाब के ही होते है, इस के अलावा आस-पास के काफी बड़े क्षेत्र के लोगों की मान्यता कुलदेवी के रूप में भी है. मंदिर की दुरी चंडीगढ़ से 177 कि.मी. है, तथा समुद्र तल से ऊंचाई 3150 फीट है. यहाँ पहुँचने का एक मात्र साधन सड़क ही है
दन्त कथा के अनुसार माई दास नामक एक, माता का परम भक्त था एक बार वह अपनी ससुराल जा रहा था. उसे रास्ते में उसे एक बट वृक्ष दिखा तो वह आराम करने के इरादे से उस वृक्ष की छाया में बैठ गया. और घनी ठण्डी छाँव में उसकी आँख लग गई, उसने स्वपन में देखा कि एक छोटी सी कन्या उसे कह रही है, कि इस वृक्ष के निचे मेरी पिंडी है, उसे निकालो और मेरी पूजा करो. माई दास घबरा कर उठ बैठा व् प्रार्थना करने लगा कि अगर सच में ऐसा है तो साक्षात् दर्शन दो. फिर चार भुजा धारी माँ ने उसे दर्शन दिए
नंगल से आगे जगह का नाम याद नहीं है
4 February 2014 दिन मंगलवार को वैसे तो हमारा तय प्रोग्राम नैना देवी मंदिर तक जाने का ही था, मगर हम 12 बजे दोपहर तक वहाँ से फारिग हो चुके थे. हमने तय किया कि क्यों न माँ चिंतपूर्णी के भी दर्शन कर लिए जाए. यात्रा में हम छ: लोग थे (मैं, मेरी धर्मपत्नी, दोनों बेटे prince और Yashdeep तथा साथ में पंडित. Hem Dutt जी ‘हमारे कुल पुरोहित’ व् उनकी पत्नी)
नैना देवी से निचे मुख्य सड़क पर आते ही अपने नेवीगेशन को कमांड दी चिंतपूर्णी जाने की. उसने भाखड़ा डैम के रास्ते पर जाने का संकेत दिया और हम भाखड़ा डैम के सुंदर नजारों को देखते हुए आगे बढ़ने लगे. भाखड़ा डैम पर गाड़ी की चैकिंग होती है. हम कहाँ से आए कहाँ जाना है पूरी जानकारी ड्राइवर का लाइसेंस नम्बर सहित दर्ज की जाती है. मगर यहाँ पर फोटो खींचने पर प्रतिबन्ध है.
भाखड़ा डैम के कुछ चित्र
डेढ़ बजे हमने नंगल शहर में प्रवेश कर लिया था. खाना खाने का समय भी हो चला था, तो सड़क के किनारे एक ढाबा देख कर गाड़ी रोकी और खाना खाया. खाना बहुत अच्छा नहीं था, नमक-मिर्च हमारे स्वादानुसार अधिक था. खाना खा कर जब शहर में दाखिल हुए तो देखा काफी भीड़ भरा शहर है. मगर हमारे नेविगटर ने हमें भटकने नहीं दिया. और हम शहर पार कर मुख्य मार्ग पर चलते हुए आखिर 3.30 बजे सांय चिंतपूर्णी माता के शहर में पहुँच ही गए. गाडी पार्किंग में लगाई क्योंकि अन्दर गाड़ी का प्रवेश वर्जित है. जब मैं 1993 में यहाँ आया था, तो गाड़ी अन्दर बाज़ार में मंदिर की सीढियों तक जाती थी, और बाज़ार इतना विस्तृत नहीं था, न ही इतनी भीड़ हुआ करती थी. खैर जो भी था वक़त और जरुरत के हिसाब से ठीक था. थोडा आगे जाने पर मंदिर के लिए दो रास्ते हैं, एक बाँई और से और दूसरा दांए से. यहाँ जुते उतार कर हमने दांयाँ रास्ता अपनाया और तंग गली में से होते हुए माँ के दरबार का रुख किया. रास्ते में अधिकतर दुकाने फूल-प्रशाद बेचने वालों की ही है. यहाँ पर ज्यादातर देशी घी में पका सूजी का हलवा खूब सारे मेवों के साथ बनता है, और उसकी सुगन्ध बहुत अच्छी लगती है. इस की सुगन्ध, भर पेट होने के बावजूद भी भूख का अहसास कराती है. हमने भी एक दूकान से प्रशाद लिया और मंदिर में प्रवेश कर गए मंदिर में ज्यादा भीड़ नहीं थी, मंदिर का प्रवेश द्वार सोने की परत में मढ़ा हुआ है, जो काफी आकर्षक है. यह मंदिर अब सरकारी नियंत्रण में है इस लिए यहाँ पण्डे पुजारियों का हमला नहीं होता.
सोने की पर्त से मढ़ा हुआ गर्भगृह का प्रवेशद्वार
जय माँ छिन्नमस्तिका
मेरा अनुभव है कि जहाँ पंडों और खादिमो का हजूम नहीं होता, वहां बड़ी शान्ति व् सकून मिलता है.
भीड़ अधिक नहीं थी बड़े आराम से दर्शन किये और वापिसी के लिए दूसरा रास्ता अपनाया, जो बाजार में से सीढियाँ उतर कर सड़क तक आता है. जहाँ ये सीढियाँ सड़क में मिलती है, वहाँ तक गाडी जा सकती है, मगर बाजार व् सड़कें तंग है. इस लिए प्रशासन गाडी अन्दर ले जाने की अनुमति नहीं देता है. अलबता स्थानीय लोग अपनी गाडी अन्दर तक ले जा सकते है. मुख्य बाजार से होते हुए हम उसी Y जंक्शन पर पहुँच गये, जहाँ हमने अपने जूते उतारे थे, जूते पहन कर 5 बजे तक हम अपनी गाड़ी के पास थे.
माँ के दर्शन को बाज़ार में से जाते हुए
पूजा-दर्शन के बाद बाहर निकलते हुए मेरा परिवार
बस अब वापिसी ही करनी थी हमने वापिसी का रास्ता आनन्द पुर साहिब होते हुए चुना. बेशक ये रास्ता थोडा लम्बा है, मगर बढ़िया होने के कारण समय कम ही लगता है. और साथ में थकान भी नहीं होती. आनन्द पुर साहिब पहुँचते-पहुँचते अँधेरा होना शुरू हो गया था. 7.30 बजे हम नालागढ़ पार कर के बद्दी में थे. यहाँ हमने चाय पी बच्चों ने कुछ खाया. चाय की दूकान के साथ ही एक सब्जी की दूकान देखकर श्रीमति जी को घर की याद हो आई, कि घर जा कर खाना भी बनाना है. तो कुछ सब्जी और फल ले लिए गए इस प्रकार 15 घन्टे 15 मिनट की यात्रा कर के हम 9.15 बजे कसौली अपने घर वापिस पहुच गये
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