Hateshwari Mata Temple Hatkoti H.P. (हाटेश्वरी माता मन्दिर हाटकोटी हि.प्र.)
परिचय तथा परिस्थिति : जैसा कि विदित है, कि हिमाचल प्रदेश में जितने भी प्राचीन मन्दिर है, उनमे से अधिकतर का निर्माण महाभारत काल खण्ड के दौरान ही हुआ है l और ये निर्माण पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के समय में किये है l ऐसा ही एक और मन्दिर है, माता हाटेश्वरी देवी का l माता के नाम पर ही इस स्थान का नामकरण हाटकोटी प्रसिद्ध है l माता हाटेश्वरी का मूल स्थान ऊपर पहाड़ों में घने जंगल के मध्य खरशाली नामक जगह पर है l (देखने के लिए klick करें हाटेश्वरी माता मूल मन्दिर) विभिन्न स्थानों से दुरी इस प्रकार है delhi से 420 km. chandigarh से 220 km. shimla से 96 km l तथा समुद्र तल से 4700 फुट की ऊंचाई पर महिषासुर मर्दिनी का यह मन्दिर पब्बर नदी के दाहिने छोर पर स्थित है l बताया जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण 10 वीं शताब्दी के आस-पास हुआ था l इससे पूर्व माँ का निवास खरशाली में देवदार के घने जंगल के मध्य में एक झील के किनारे था l कहा जाता है कि बहुत पहले वहाँ गौ हत्या जैसा कुछ हुआ था, और माँ हाटेश्वरी एक बड़े टोकने (खाना बनाने का बंद गले का पीतल का बड़ा बर्तन) में वहाँ से प्रस्थान कर गई l जब कुछ जानकारों को इसकी खबर लगी, तो उन्होंने इसे पब्बर नदी के किनारे देखा, और उस बर्तन को नदी से बाहर निकल कर माता की स्थापना इसी स्थान पर कर दी l “ऐसा मैंने वहाँ लोगो से सुना है” उस टोकन को आज भी मन्दिर के बाहर जंजीरों में जकड़े हुए देखा जा सकता है l इसे जंजीर से इस लिए बाँधा गया है कि माँ हाटेश्वरी कहीं फिर न प्रस्थान कर जाए l इन जंजीरों को मन्त्रों द्वारा सुरक्षित किया गया है lमेरे छोटे भ्राता कँवर जगदीप सिंह वहाँ कई बार जा चुके है l उनको देख कर इस बार हमने भी वहाँ जाने की सोची, बच्चों को भी होस्टल से छुट्टी थी l तो 23 जून 2014 सोमवार को सुबह 7.30 बजे हमारा यात्रा रथ (स्कार्पियो) कसौली से चल पड़ा, हमारे परिवार को लेकर l जिसमें सवार थे, मैं कँवर कुलदीप सिंह, मेरी भार्या मधु कँवर, बड़े राजकुंवर prince सन्दीप सिंह और छोटे साहब कँवर यशदीप सिंह l हमारा पहला पडाव था, खड़ापत्थर l यहाँ हम 2.30 बजे पहुंचे, और हि.प्र. tourism के होटल गिरिगंगा में लंच किया l
खड़ापत्थर से 5 km पहले
बाजार का एक दृश्य
Lunch time ( The GiriGanga हिमाचल टूरिजम )
मैंने कुछ लोगों से पूछा कि इसे खड़ापत्थर क्यों कहते है, मगर किसी के पास कोई जवाब नहीं था l यह एक छोटा सा क़स्बा है, जहाँ चारो तरफ सेब के बगीचे है, और खूब घना देवदार का जंगल l यह स्थान ग्राम पंचायत पराली के अंतर्गत आता है l theog से रोहडू तक सड़क चौड़ा करने का काम पिछले कई वर्षों से चल रहा है, जिस कारण गाड़ी 15 km. की गति से ही चल पा रही थी l खाना खाते हुए हमने एक कर्मचारी से बात की तो उसने बताया कि आप लोग पट्सारी वाले रास्ते से जाओ, रास्ता थोडा संकरा जरुर है, मगर बढ़िया व् छोटा भी है l 300 मीटर आगे जा कर हमने बाँई ओर वाला वही रास्ता पकड़ा, और 3.30 बजे हम माता हाटेश्वरी के द्वार पर थे l
देवदार के घने जंगल के मध्य में सेब का बगीचा, बगीचे के बीच में आलीशान कोठी (अब स्वर्ग भी इससे सुंदर क्या होगा)
सेब से लदा सेब का पौधा बेशक इस बार सेब कम है
जुब्बल के सुन्डली गाँव में बना हैलीपैड
विभिन्न देशान्तरों की दुरी दर्शाता बोर्ड
मुख्य द्वार से अन्दर जाने पर सामने तीन भवन है l जिनमे दांई तरफ का भवन मुख्य मन्दिर है l इसके अन्दर माता हाटेश्वरी की काफी बड़ी मूर्ति है l जो शायद कांस्य या अष्ट धातु से बनी है l सारे भवन लकड़ी और पत्थर से निर्मित कलात्मक शिल्पकारी का अद्भुत नमूना है l सभी भवनों की छत स्लेट पत्थर द्वारा निर्मित है l मन्दिर के बिल्कुल बांये ओर बड़े-छोटे पत्थरों को तराश कर, छोटे-2 पांच कलात्मक मन्दिर बनाए गये है, जो बहुत ही अद्भुत व् अवस्मरणीय है l यहाँ एक यज्ञशाला भी है l और उसके साथ ही एक दोमंजिला अष्टभुजा भवन, श्रधालुओं के बैठने के लिए बनाया गया है l यहाँ बैठ कर आप पुरे मन्दिर को निहार सकते है l मन्दिर के साथ पड़ी खाली जमीन में एक सुंदर सा पार्क बनाया जा रहा है l इस पार्क का निर्माण हिमाचल प्रदेश पॉवर कारपोरेशन लि. द्वारा हो रहा है l अगर मन्दिर से सामने पब्बर नदी की ओर देखें, तो नदी के दुसरे छोर पर बिजली बनाने के लिए एक डैम का निर्माण हो रहा है, इसे सावरा-कुडडू के नाम से जाना जाएगा, और यहाँ 111 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा l कुछ वक़्त माँ के सानिघ्य में बिताया माँ को प्रणाम किया और अपनी यात्रा का रुख मोड़ दिया रोहडू, चड़गाँव होते हुए संदासू की ओरl
हाटकोटी तथा मन्दिर का विहंगम दृश्य
निर्माणाधीन बिजली सयंत्र सावरा कुडडू
दोमंजिला सुंदर विश्रामस्थल
बाकी की कहानी चित्रों की जुबानी
COMMENTS