Kamaksha Devi Temple कामाख्या देवी मंदिर हि प्र
कामाख्या देवी मंदिर, आसाम की राजधानी दिसपुर के पास गुवहाटी से 17 km दूर नीलांचल पर्वत पर है. कामख्या देवी को 51 शक्तिपीठ में मुख्य रूप से मान्यता प्राप्त है.
मगर आज हम बात कर रहे हैं, कामाख्या मन्दिर जो हि प्र के मंडी जिला के करसोग में स्थापित है. यहाँ पहुँचने के कई रास्ते हैं, जैसे शिमला से 110 km, सुंदर नगर से 100 km और रामपुर बुशहर से 85 km. हर जगह से बस चलती है. लम्बी दुरी वाली बस करसोग बस अड्डे पर छोड़ देगी, वहां से लोकल रूट की बस काओ गाँव तक पहुंचा देगी. करसोग से काओ गाँव या मंदिर की दुरी 6 km है. इस मंदिर की स्थापना अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने की थी. मगर कुछ लोगों का मत है, कि इसकी स्थापना परशुराम जी ने की थी. अब कोई लिखित इतिहास तो है नहीं. जनश्रुति के आधार पर ही चीजों को समझने की कोशिश करनी पड़ती है. बस उदेश्य तो सिर्फ पूजा अर्चना करना था. मगर समय के साथ-2 मान्यताएँ बदलती गई. किसी ने अपनी श्रधा के चलते मंदिर को भव्यता प्रदान की, तो किसी ने स्वार्थ वश पूजा पद्धति तय की. खैर इस मुद्दे को ज्यादा नहीं छेड़ते है, क्योंकि बहस शुरू हो जाएगी तर्क-वितर्क दिए जांएगे जिसका हल कभी कुछ निकलता नहीं है. मैं ऐसे ही बिना सोचे विचारे कुछ नहीं कह रहा हूँ, एक विरोधाभास देखिए मंदिर के बाहर एक बोर्ड लगा है.
“कोई भी चमड़े की वस्तु मंदिर में नहीं जाएगी जैसे पर्स, बेल्ट यहाँ तक कि जुराब भी नहीं”
मगर हर वर्ष एक खास उत्सव के दौरान यहाँ भैंसे की बलि दी जाती थी, और उसका सिर माँ को अर्पण किया जाता है. क्या भैसे में चमड़ा नहीं होता.
हिदुस्तान में सदियों पुरानी प्रथा चली आ रही है, पशु बलि देने की. नर बलि के विषय में भी अक्सर पढने-सुनने को मिल ही जाता है. हिमाचल के अधिकतर मंदिरों में ये प्रथा है मगर 2014 में माननीय उच्च न्यालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए, हर तरह की पशु बलि पर रोक लगा दी है. इसी कारण यहाँ भी इस बार भैंसे की बलि नहीं दी गई. जबकि कुछ लोगों ने कोशिश की थी, मगर प्रशासन की वजह से वे लोग कामयाब नहीं हो पाए. इस कारण लोग भी दो धडों में बंट गए कुछ बलि के पक्ष में थे, और कुछ ने विरोध कर प्रशासन को सूचित कर दिया. जिस से इस प्रथा का अंत होता नज़र आ रहा है.
मगर अभी भी एक यक्ष प्रशन खड़ा है, कि एक विशेष धर्म में इस पर पाबन्दी कब लगेगी. क्या धर्म के नाम पर जीव हत्या जायज है, या उनके लिए हिंदुस्तान ने कोई कानून बाहर से इम्पोर्ट किया है. क्या हिंदुस्तान में वोटों की राजनीती से ऊपर उठ कर कोई ऐसा कदम उठा सकेगा ?
कामाख्या मन्दिर के कुछ बढ़िया चित्र
माता की पौराणिक मूर्ति
मैं और मधु कँवर आशीर्वाद लेते हुए
देवदार के पुरे के पुरे पेड़ के शहतीरों से बना मंदिर का परिक्रमा मार्ग
कसौली से तो हम चार ही सदस्य निकले थे यात्रा के लिए. करसोग से 12- 13 लोग और मिल गए. यहाँ मेरे एक फेसबुक मित्र है डा. राकेश प्रताप, यह काफिला उनके परिवार, रिश्तेदार और कुछ मित्रों का था. हलकी बूंदा-बाँदी के चलते हमारा ये काफिला 5.30 बजे शाम को काओ गाँव में स्थापित कामाख्या देवी के श्री चरणों में था. जैसे ही मन्दिर के सामने गाड़ी रोकी एक बोर्ड पर नजर गई. जिस पर लिखा था मंदिर के अन्दर किसी भी प्रकार की चमड़े से निर्मित वस्तु मान्य नहीं है, यहाँ तक कि जुराबें भी नहीं ले जा सकते. हमने अपना सारा सामान गाड़ी में ही छोड़ा, और मैं तो एक हाथ में कैमरा और दुसरे हाथ से पैंट को ऊपर घसीटता हुआ ही मन्दिर में प्रवेश कर रहा था. खैर धार्मिक स्थानों में शुद्धता का ध्यान रखा ही जाना चाहिए.
पौराणिक मंदिरों में मुझे जो चीज सबसे अधिक प्रभावित करती है, वो है वास्तु शिल्प, डिज़ाइन और नक्काशी. जो आज के आधुनिक शिल्प में नहीं है. शायद ऐसा मेरी अभियन्ता वाली योग्यता की वजह से होता होगा. मंदिर में हम लोगों के सिवा कोई ज्यादा लोग नहीं थे, मंदिर के पुजारी हमारी प्रतीक्षा में थे. दर्शन हो जाने के बाद उन्होंने हमें जल-पान भी करवाया. मुझे कुछ देर बाद माजरा समझ में आया कि यह सब सेवा डा. साहब की वजह से हो रही है. हम सभी लोगों ने दर्शन किए, अन्दर व बाहर काफी सारे फोटो लिए चाय पीते हुए एक दुसरे का परिचय लिया. एक और अच्छी बात, यहाँ फोटो लेने की मनाही नहीं है बस आप पवित्रता का ख्याल रखें और जी भर के फोटोग्राफी करें.
मेरे साथ यहाँ एक छोटी सी घटना हो गई जो, मेरी ही गलती की वजह से हुआ. जिसने सारी रात परेशान भी किया. हुआ ये कि मंदिर के फर्श पर मधु मख्खी थी, जो मंदिर में अक्सर प्रशाद के आसपास मंडराती रहती है, भीड़ की वजह से मैं निचे नहीं देख पाया और उस पर पैर रख दिया, प्रतिक्रिया में उसने पैर की तली में डंक मार दिया. अब हम किसी को कुचलने का प्रयास करेंगे तो दण्ड तो अवश्य भोगना पड़ेगा.
करेंगे तो दण्ड तो अवश्य भोगना पड़ेगा.
मैं और डा. राकेश प्रताप उनके बच्चों के संग
माँ के चरणों में मेरा परिवार
वाद्य यन्त्र जिनका ख़ास अवसरों पर प्रयोग होता है
एक घंटा मंदिर परिसर में गुजार कर, हम उसी रास्ते पर वापिस चल दिए. अब आगे पड़ाव था ममेल गाँव जहाँ हमें ममलेश्वर महादेव के दर्शन करने थे.
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