महामाया मंदिर : पांगना "Mahamaya Tample Pangna "
महामाया मंदिर पांगना, चिंडी से सुंदरनगर सड़क पर शिमला से 90 km व् चिंडी से 13 km की दुरी पर स्थित है. मंदिर बनने से पहले यहाँ एक किला था. जिसमे तीन बेह्ड़े “प्रांगण” हुआ करते थे. पांगना सुकेत रियासत की पुरानी राजधानी थी. सुकेत रियासत काफी बड़े भू-भाग में फैली हुई थी. पांगना किले का निर्माण 1211 ईस्वी में राजा वीर सेन द्वारा हुआ था, ऐसा कहा जाता है. उसके बाद किस-2 ने शासन किया कोई प्रमाण नहीं मिल पाया. फिर एक घटना के बाद यह किला मंदिर में तबदील हो गया जो अब इस रूप में दुनिया के सामने है.24 जून 2015 दिन बुधवार को दो बजे हम लोग ( 'मैं यानि' कुंवर कुलदीप सिंह, मधु कँवर मेरी भार्या प्रिंस व् यशदीप "हमारे राज-कुंवर") चिंडी से पांगना जाने वाली सड़क पर बाँई ओर मुड़े तथा कुछ छोटे-2 गाँव से होते हुए तीन बजे पांगना बाज़ार में पहुँच गए.मौसम में काफी गर्मी थी हम गाड़ी में AC लगा कर सफ़र कर रहे थे. मगर ये क्या हल्की-2 बूंदाबांदी शुरू हो गई. गाड़ी एक तरफ पार्क कर बाहर आ कर तीन-चार लोगों से पूछा, कि पांगना का किला कहाँ है. लोगों के हाव-भाव देख कर हैरानी हुई, यहाँ किले के बारे में किसी को पता नहीं था. तब एक बुजुर्ग से लगने वाले आदमी से पूछा, तो उसने बताया कि किला तो अब नहीं है, अलबता वहाँ ऊपर मंदिर जरुर है. जिसे महामाया मंदिर के नाम से जाना जाता है. अब तक हमें ये तो पता था, कि किले में एक मंदिर है. मगर मंदिर का नाम नहीं पता था. बाज़ार से बाँई और वाली सड़क सुंदर नगर को जाती है. और दाहिनी ओर वाली सड़क जो आगे कहीं गाँव में जा रही है. उसी सड़क पर एक km ऊपर जा कर महामाया मंदिर है. अभी हम मंदिर से सौ गज पीछे ही थे, कि बूंदाबांदी ने भारी बारिश का रूप धारण कर लिया. जैसे ही सड़क के आखिर में पहुंचे तो देखा यहाँ PWD का दफ्तर है. हमने गाड़ी बाहर पार्क की और बारिश से बचने के लिए ऑफिस के बरामदे में खड़े हो गए. तभी हमें देख कर एक बाबू महोदय बाहर आए, हमने उन्हें प्रणाम कर अपना परिचय दिया, और किले के बारे में जानकारी चाही. तब उन्होंने जो कहानी बयाँ की वह इस प्रकार है.
सुकेत के तत्कालीन राजा (नाम मालूम नहीं हो सका) जो इस किले के अंतिम शासक भी बने. एक दिन अपने दरबार में बैठे थे, कि तभी उनके मुख्यमंत्री ने सूचित किया, कि राजकुमारी बाहर कुछ लडको के साथ खेल रही है. राजा को काफी गुस्सा आया, क्योंकि उस जमाने में राज परिवार की लड़कियों को लडको के साथ खेलने की मनाही थी. राजा ने राजकुमारी को बुला कर पूछताछ की उस कन्या ने काफी समझाने की कोशिश की, कि वह लड़के नहीं थे, बल्कि उसने अपनी कुछ सहेलियों को लड़कों के कपडे पहनाये थे, खेलने के लिए. मगर वह बच्ची ये साबित न कर पाई और राजा ने अपने दरबारियों के दबाव में आकर उस नन्ही कन्या को मृतुदंड दे दिया. अपनी मृत्यु निश्चित जान कर राजकुमारी ने आग्रह किया, कि उस के मृत शारीर को जलाया न जाए, बल्कि उसकी देह को वहीँ आंगन में दबा दिया जाए, और छ: महीने बाद कब्र खोद कर देखा जाये. अगर शव गल-सढ़ जाए तो समझो, वह झूठ कह रही थी. और अगर शव सही-सलामत अवस्था में मिले तो वह सच्ची थी, व् किसी साजिश का शिकार हुई समझा जाए. ऐसा ही किया गया. जब छ: महीने बाद कब्र खोदी गई तो शव बिल्कुल सही हालत में पाया गया. अब राजा को अपने किये का अफ़सोस हुआ, मगर अब कुछ किया भी तो नहीं जा सकता था. राजा ने वह महल त्याग दिया और उसके एक हिस्से में जहाँ राजकुमारी का शव दफ़न था मंदिर का रूप दे दिया. कन्या की हत्या के अपराधबोध से ग्रसित हो उसे नाम दिया गया “हत्या माता” का. यही बाद में महामाया के नाम से विखियात हुआ. आज के समय में पूरा महल गायब हो चूका है, सिर्फ एक वही हिस्सा कायम है, जिसे मंदिर का नाम दिया गया था. किले के दो प्रांगणों में अब सरकार का कब्ज़ा है और वहां PWD के सहायक अभियंता का दफ्तर है.
हमने बारिश में ही छतरी ले कर महामाया के दर्शन किये. बारिश इतनी तेज थी कि हम सभी बुरी तरह भीग गए, और जून के महीने में भी ठण्ड से कांपने लगे. जल्दी-2 दौड़ कर गाड़ी तक पहुंचे और वापिसी की राह ली.
सतलुज के किनारे पर गर्म पानी था , और अब ठण्डा पानी आने वाला है
अब कुछ चित्र मंदिर के
पहले हत्या माता, अब महामाया
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