Barot; mandi h p (बरोट; मंडी हि. प्र.)
बरोट हिमाचल प्रदेश का वो स्थान है, जो दो कारणों से मशहूर है l एक शानन हाइड्रो बिजली सयंत्र और दूसरा हिमाचल मत्स्य विभाग का ट्राउट मछली बीज फार्म l बरोट पर्यटन के हिसाब से बहुत सुंदर जगह है l यह उहल नदी के किनारे समुद्र ताल से 5966 फुट पर स्थित है l मंडी से इसकी दुरी 65 km. व् जोगिंदरनगर से 39 km. है l दोनों ही जगह से पहले घटासनी नामक जगह तक जाना पड़ता है, वहाँ से 25 km. की दुरी झटीन्गरी, फियून ग्लू, पशाकोट और टिक्कन होते हुए तय की जाती है l टिक्कन से सड़क मार्ग उहल नदी के साथ-2 चलता है और यहीं से ढलान दार सीढ़ी नुमा खेतों की शुरुआत होती है, जो देखने में तो बहुत सुंदर लगते हैं, मगर इनमे काम करना काफी कठिन होता है l
यहाँ से दांयें
चौहार घाटी शुरू
मेहनती हिमाचली बाला
27 जून 2015 शनिवार जब हम मंडी से सुबह 10.00 बजे निकले तो हमारे पास मत्स्य विभाग के रेस्ट हाउस की बुकिंग थी l मंडी पठानकोट मार्ग पर लगभग 30 km. चलने के बाद एक जगह है घटासनी, जहाँ से हमें दांई ओर वाली सड़क से होते हुए बरोट जाना था l जैसे ही हम मुख्य मार्ग को छोड़ कर ऊपर चढ़े तो प्रकृति के सुंदर नजारे शुरू हो गये और कैमरा भी व्यस्त हो गया l ये हरी-भरी घाटियाँ अहसास करा रही थी कि हम चौहार वैली में प्रवेश कर चुके हैं l आगे चलते हुए दर्शन हुए देव पशाकोट मन्दिर के l साथ याद आया “देव पशाकोट” ( यह नाम बहुत सी टैक्सी व् ट्रक पर लिखा होता है )
देव पशाकोट
सड़क पर अधिकतर कारें पंजाब नम्बर वाली नजर आ रही थी, तो ये पक्का था कि बरोट सुंदर देखने लायक जगह होगी l 12.00 बजे हम लोग बरोट में प्रवेश कर चुके थे, सबसे पहले रेस्ट हाउस में दस्तक दी, अभी लोग चैक आउट कर ही रहे थे l चोकीदार रमेश से मुलाकात की तो उसने बताया की अभी साफ़-सफाई में वक़्त लगेगा, आप लोग 2.00 बजे के बाद आयें l बुकिंग पक्की जान हम भी घुमने निकल पड़े l सामने ही शानन पॉवर प्रोजेक्ट देख कर गाड़ी उसी ओर घुमा दी l उहल नदी को पार कर गाड़ी पार्क कर दी और गर्मा-गर्म कॉफ़ी पीने के बाद पैदल ही बाँई ओर के रास्ते पर कदम बढ़ा दिए l क्योंकि इसके आगे गाड़ी नहीं जा सकती थी l आगे जाकर देखा काफी भीड़ थी और कुछ शोर भी हो रहा था l नजदीक जा कर पता चला कुछ लोग मुख्य रेजरवायर तक जाने की जिद कर रहे थे, जबकि चोकीदार का तर्क था कि आगे नहीं जा सकते l क्योंकि पानी गहरा है व् दुर्घटना का खतरा हो सकता है l हमने बहस व् भीड़ का हिस्सा न बनने का मन बनाया तथा यहाँ के बारे में जानकारी इकठ्ठा की l लम्बा डग नदी और उहल नदी का पानी एक जगह एकत्रित कर भूमिगत डक्ट द्वारा रेजरवायर तक लाया गया है l और वहां से सुरंग द्वारा जोगिंदरनगर नगर ले जाकर टरबाइन पर छोड़ा गया है l
खुबसूरत बरोट
शानन बिजली परियोजना का प्रारम्भ सन 1924 में जोगिंदरनगर के राजा कर्ण सेन और ब्रिटिश अभियन्ता कर्नल B.C. Batty के collaboration के साथ शुरू हुआ l आठ वर्ष के अथक प्रयास के बाद 1932 में यह बन कर उत्पादन करने लगा l यह भारत का पहला हाइड्रो बिजली सयंत्र था l यह सयंत्र पंजाब सरकार के अधीन काम करता है l क्योंकि उस समय हिमालय का यह भाग पंजाब के अन्तर्गत था l और 99 साल तक यह पंजाब के अधीन ही रहने वाला है l 1931 के बाद शानन परियोजना हिमाचल सरकार को मिलनी तय है l मगर अब पंजाब सरकार इसके रख-रखाव में कोताही बरत रही है जिस कारण यहाँ अव्यवस्था का आलम है l
1.30 बजे हम उहल नदी के उस तरफ का हिस्सा घूम कर बाज़ार में आ गये l यहाँ आकर खाना खाया और मत्स्य पालन केंद्र देखने चले आये l मगर यहाँ सब कुछ वीरान-वीरान सा था l शायद आज कल यहाँ काम बंद था l इस विषय में किसी से कोई बात करते, मगर कोई यहाँ था ही नहीं l कुछ समझ आया कुछ नहीं आया l इसके साथ ही थोडा ऊपर एक बहुत सुंदर सा लकड़ी का घर बना हुआ है, जिसका नाम है काष्ट कुटीर l यह पूरा कुटीर लकड़ी द्वारा निर्मित है l और वो भी पुरे के पुरे पेड़ को मध्य से काट कर उसके शहतीर बनाये गए है l उन्हें एक दुसरे पर तरतीब से रख कर दीवार की शक्ल दी गई है l तथा छत नालीदार चद्दर की है l अभी समय काफी था, तो सोचा कहीं और घूम कर आते है l ऊपर की ओर एक सडक जाती हुई नज़र आई, तो हमने भी गाड़ी उसी सड़क पर डाल दी l सड़क के बाँई ओर लम्बा डग नदी साथ बह रही थी l हम धारा की विपरीत दिशा में चल रहे थेl कोई चार किलोमीटर आगे एक पुल के पास जा कर रुके l यहीं पर एक पंजाब नम्बर की टाटा सफारी खड़ी थी l हम कुछ फोटो शूट कर रहे थे, तो अचानक नदी की तरफ नजर पड़ी, वहां चार लोग नदी में कांटा डाल कर मछली पकड़ रहे थे l हम वहाँ से फिर आगे बढ़ गये, अब तक हम सात किलोमीटर चल कर लोहारडी नामक जगह पर खड़े थे l इसके आगे एक तंग सा पुल था l यहाँ कुछ लोगों से बातचीत की तो मालूम हुआ, अब इसके आगे सड़क मार्ग नहीं है l यह आखिरी गाँव है जो सड़क से जुड़ा है l इसके बाद आगे के लोग पैदल ही आते जाते हैं l यहां से पैदल ही बिल्लिंग भी जा सकते हैं, ये वही बिल्लिंग है जो पैराग्लाइडिंग के लिए मशहूर है l यहाँ से छोटा व् बड़ा भंगाल भी जाया जा सकता है l जिसको हिमाचल प्रदेश के अति दुर्गम क्षेत्र तथा अनूठे रीती-रिवाजों की वजह से पहचाना जाता है l जब आगे सड़क ही नहीं थी, तो हम वापिस चल दिए l समय देखा तो 4.30 हो रहे थे, सोचा रेस्ट हाउस चलते हैं, कुछ आराम करने के बाद थोडा और घूम लेंगे l रेस्ट हाउस पहंचे तो यहाँ राजनीती हम पर भारी पड़ गयी l चौकीदार ने बताया आपकी बुकिंग रद्द कर दी गई है, क्योंकि मन्त्री महोदय के परिवार वाले तशरीफ़ ला रहे हैं l अब वापिस मंडी आने के सिवा कोई रास्ता नहीं था l एक और बुरी खबर ने हमें हिला दिया, घर से फोन पर सूचना मिली कि हमारे छोटे भाई प्रदीप बीमार है, और उन्हें चंडीगढ़ Max hospital में दाखिल किया गया है l अब तो रुकने का मतलब ही नहीं था l गाड़ी स्टार्ट की 6.30 बजे मंडी में प्रवेश कर गए l अभी अँधेरा होने में समय था तो हमने सोचा रात को रिवालसर रुक लेते है, कल वहाँ से सीधे चंडीगढ़ चले जांएगे l
दोनों राज कुंवर, हम और प्रकृति
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
काष्ठ कुटीर
ट्राउट फिश फार्म
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कांटा
छोटी जगह-छोटा भवन- बड़ा स्कूल
बर्फीली घाटी में बसा बड़ा भंगाल
पहरावे का अंतर - वैसे दोनों ही पहाड़ने है
बरोट वैली बहुत ही सुंदर जगह है l यहाँ से कुल्लू के लिए ट्रैक रूट है, उसी रास्ते में वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी पड़ती है, जहाँ घोरल, काला भालू, मोनाल और पहाड़ी तेंदुआ भी काफी तादात में पाया जाता है l
अगर हिमाचल घूम रहे हों तो एक बार जरुर बरोट जाएँ प्रकृति निराश नहीं करेगी
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