Rewalsar ; mandi h p (रिवालसर मंडी हि प्र)
हिमाचल प्रदेश में वैसे तो बहुत सारी सुंदर झीलें है, कुछ मानव निर्मित व् कुछ प्रकृति द्वारा निर्मित है I ऐसी ही एक गौरवशाली झील है रिवाल्सर I यहाँ पहुँचने के लिए मण्डी शहर से 25 km. या नेरचौक से 45 km. सफ़र, बस से या कार द्वारा किया जाता है I राजधानी शिमला से इसकी दुरी 145 km. तथा चंडीगढ़ से 194 km. है l ऊँचे-2 पहाड़ों तथा घने पेड़ों से घिरी हुई रिवालसर झील समुद्र तट से 4425 फुट पर स्थित है l झील के चारों ओर विभिन्न धर्मों जैसे हिन्दू धर्म, बौध धर्म तथा सिख धर्म के अनेकों पूजनीय स्थल है I
इसका नाम रिवालसर कैसे पड़ा ये तो नहीं मालूम, मगर एक कहानी है इस झील की उत्पति के विषय में l
पद्मसम्भव : द्वितीय बौध के रूप में मान्यता प्राप्त बौध गुरु पद्मसम्भव ने आठवीं शताब्दी में यहाँ अपना ध्यान केंद्र स्थापित किया था l जब वह यहाँ साधना कर रहे थे तो उनके अनेकों शिष्य थे, जिनमें एक कन्या ‘मन्दरवा’ भी थी l जो मण्डी के राजा की पुत्री थी l बाद में पद्मसम्भव ने आसक्त हो कर मन्दरवा से विवाह रचा लिया l इस घटना से राजा बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने पद्मसम्भव को जिदा जलाने का हुकुम दे दिया l तथा मन्दरवा को एक अन्धे कुंएं में कैद कर दिया गया l मगर पद्मसम्भव ने अपने तप के बल से अग्नि की ज्वालाओं को पानी में बदल दिया l जिससे यहाँ एक झील बन गई, जिसमे कुछ कमल के फूल भी उग आए तथा पद्मसम्भव ने अपने आप को कमल के फूल पर स्थापित कर दिया l इस चमत्कार को देख राजा ने पद्मसम्भव को माफ़ कर दिया l तथा मन्दरवा को भी सजा मुक्त कर, खुद भी बौध धर्म की दीक्षा ग्रहण की l उसके बाद ही पद्मसम्भव ने तिब्बत में पहले बौध मठ की स्थापना की l दुनिया भर से हर वर्ष हजारों की संख्या में यहाँ बौध अनुयायी तप व् साधना करने आते हैं यहाँ पर सैंकड़ो बच्चे भी दीक्षा लेते हुए देखे जा सकते हैं l रिवालसर झील के बाँए किनारे पर गुरु पद्मसम्भव की 123 फूट ऊँची मूर्ति आकर्षण का केंद्र है और पुरे रिवालसर में उसे कहीं से भी देखा जा सकता है l
हम जिस होटल में रुके थे वह भी एक तिब्बती महाशय ही चला रहे थे l उसके आस-पास तीन बौध मोनेस्ट्री है l ऐसी ही एक मोनेस्ट्री में हमारी गाड़ी भी पार्क करवाई गयी, जो पद्मसम्भव की 123 फूट की मूर्ति के बिल्कुल निचे है l यहाँ बहुत से तिब्बती बच्चों से भी सामना हुआ जो रिंड-मुंड हो कर घूम रहे थे l पद्मसंभव की 123 फुट ऊँची
इसी मोनेस्ट्री की parking में गाड़ी पार्क की थी
शुद्ध मक्खन से भरे 40 दिए
जहाँ भी बौध रहते हैं ये छोटे-2 झंडे अक्सर दिखते हैं
एक तिब्बतन कैफ़े
चट्टानों पर तिब्बती भाषा में कुछ लिखा हुआ
लोमश ऋषि : रिवालसर का पुराना नाम हृदयलेश था ( हृद – तालाब, आलय – स्थान, लेश – राजा) ”झीलों का राजा” l कहते है जब लोमश ऋषि हिमालय पर्वत पर तपस्या कर रहे थे, तो एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें धरती पर एक सुंदर तालाब नजर आया, जिसके चारों और खूब घने वृक्ष थे और अप्सराएँ तालाब में जलक्रीडा कर रही थी l अत्यन्त निर्मल जल देख कर लोमश ऋषि ने इस स्थान को अपना साधना स्थल बनाने का विचार किया l शुद्ध निर्मल जल से स्नान करने के बाद जब ऋषि आराम कर रहे थे तो उनकी आंख लग गई l स्वपन में ऋषि ने एक यक्ष को देखा, जो शारीर पर भस्म लगाए हाथ में रुद्राक्ष की माला लिए था l उसने ऋषि को यहीं तप करने का अनुरोध किया l ऋषि लोमश ने यक्ष का अनुरोध स्वीकार कर, तालाब की पश्चिमी दिशा में तप करना आरम्भ किया l कठिन तपस्या से प्रसन्न हो कर भोलेनाथ ने माता पार्वती सहित ऋषि को दर्शन दिए l तथा पृथ्वी के अन्त तक जीवित रहने और मन की गति से चलने का वरदान भी दिया l यह देख कर त्रिदेव सहित सभी देवी-देवता भी यहाँ प्रकट हो गये l इस सुंदर स्थान को देख कर ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा गणपति व् सूर्य ने यहाँ निवास करने का निश्चय किया और पाँच टीलों के रूप में परिवर्तित हो कर झील में तैरने लगे l इसी कारण रिवालसर को पञ्च-पूरी भी कहते हैं l मगर कहा जाता है कि ये टिल्ले सबको नजर नहीं आते l सिर्फ पुण्य आत्मा को ही इसके दर्शन होते हैं l अब हम तो ठहरे आम सांसारिक आदमी, सिर्फ झील का एक चक्कर लगाया और पूण्य कमा लिया l कहते हैं झील की परिक्रमा करने से पञ्च देवों सहित समस्त देवी देवताओं की प्रदक्षिणा का पूण्य मिलता है l
यह हमारा भाग्य था कि इस बार हम परिवार सहित घूम रहे थे l 28 जून 2015 को लोमश ऋषि के साथ-2 हमने शिव-शंकर और लक्ष्मी-नारायण जी के दर्शन एक साथ किये, ये तीनो मंदिर साथ-२ ही स्थापित है l
रिवाल्सर झील
खाने की तलाश में मछलियाँ
शिव-मंदिर
लक्ष्मी नारायण - मंदिर
लोमश बाबा
गुरु गोबिन्द सिंह : गुरुओं की महान परम्परा स्थापित करने वाले गुरु गोबिन्द सिंह जी के पवित्र चरण भी इस धरा पर पड़े थे l हिमालय प्रवास के दौरान गुरु जी ने सन 1738 में यहाँ कदम रखे l यहाँ के सुंदर निर्मल वातावरण को देख यहाँ कुछ समय साधना में बिताया और बौध गुरु पद्मसम्भव से भी आशीर्वाद लिया कि वह मुग़ल साम्राज्य का अन्त कर सकें l बाद के वर्षों में मण्डी के राजा जोगिन्द्र सेन ने यहाँ गुरुद्वारा बनवाया l यहाँ ये उलेखनीय कि राजा जोगिन्द्र सेन ने ही जोगिन्द्र नगर बसाया और इन्ही जोगिन्द्र सेन के प्रबल प्रयास के कारण बरोट में भारत का पहला हाइड्रो पॉवर सयंत्र सन 1932 में बन कर तैयार हुआ l
समयाभाव के कारण हम गुरु घर के दर्शन नहीं कर सके, जिसका हमें तब तक अफ़सोस रहेगा जब तक दौबारा गुरु चरणों में शीश नहीं नवाते l
गुरुघर
हमने प्रवेश मण्डी की और से किया था और अब वापिसी नेरचौक से होते हुए होनी थी l
हम लोग शाम के 8.30 बजे रिवाल्सर पहुंचे, हल्का अँधेरा होना शुरू हो गया था l प्रवेश करते ही सामने पार्किंग दिखी तो गाड़ी वहीँ पार्क करके होटल ढूंढने निकल पड़े l मगर दो तीन होटल देखने पर कमरे नहीं मिले, जो मिल रहे थे वह अच्छे नहीं लगे l अब रात गुजारने की चिंता होना लाजिमी था l तभी किसी ने बताया कि थोडा आगे एक और होटल है जिसे एक तिब्बती महाशय चलाते हैं l वहां जाने पर हमें दो कमरे मिल ही गये l यदपि कमरे बहुत बढ़िया नहीं थे, फिर भी रात गुजारने के लिहाज से ठीक ही था l 2000 रु में बात पक्की हुई l अब समस्या थी गाड़ी कहाँ पार्क करें, तो होटल वालों ने parking के लिए एक मोनिस्ट्री में जगह का इंतजाम किया l संकरी गलियों से होते हुए गाड़ी को मोनिस्ट्री के गेट के अन्दर पार्क किया l यहाँ बोध धर्म की दीक्षा का केंद्र था l हम काफी थक भी चुके थे जल्दी से अपना सामान कमरे में रखा खाना खाते 10.00 बज गये l
सुबह हम 8.00 बजे तैयार हो कर घुमने निकले तो अच्छी चमकदार धूप खिली हुई थी l जैसे ही झील के पास पहुंचे बच्चे बड़ी-2 मछलियाँ देख कर खुश हो गये l वहीँ बहुत से लोग आटे की गोलियां बेच रहे थे, बच्चों ने भी खूब सारी आटे की गोलियां मछलियों को खिलाई l जिस तरफ लोगों की भीड़ होती है सारी मछलियाँ उसी ओर इकट्ठी हो जाती है l जैसे ही खाने की कोई वस्तु झील में गिरती है, तो वाह लपक कर चट कर जाती है l मछलियों को चारे की ओर लपकते देखना भी एक अलग ही अनुभूति है l
थोडा आगे बढ़ने पर दांई ओर रिवाल्सर का जग प्रसिद्ध गुरुद्वारा है, जिसके विषय में मैं ऊपर लिख चूका हूँ l हमने बाहर से ही शीश नवाया और आगे बढ़ गये l लगभग 300 मीटर आगे बाँई और झील के किनारे बहुत सी रंग-बिरंगी झंडियाँ लगी हुई है l जहाँ भी बौध लोग बसते हैं, हर उस जगह ऐसे नजारे अवश्य ही देखने को मिलते है l
यहाँ से थोडा आगे बढ़ने पर दाहिने तरफ क्रमश शिव मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर और आखिर में लोमश ऋषि का मंदिर है l किसी भी मंदिर में कोई पुजारी नहीं था, सिर्फ लोमश मंदिर में ही पुजारी थे l कोई भीड़ नहीं, कभी-कभार ही कोई इस तरफ आ रहा था l मंदिर के अन्दर एक तरफ लोमश बाबा की बैठी हुई अवस्था में स्थापित एक मूर्ति है l दूसरी ओर एक बड़ा सा पीतल का दीपक अनवरत जल रहा है l हमने लोमश बाबा का आशीर्वाद लिया तथा मंदिर के पीछे वाले रास्ते से मोनेस्ट्री की तरफ आ गये, जहाँ हमारी गाड़ी खड़ी थी l मगर गेट बंद था, चोकीदार ने बताया कि गेट तभी खुलेगा जब कोई होटल से आयेगा l अत: पहले होटल जाना पड़ा वहां से एक लड़का हमारे साथ आया तब गाड़ी निकली l इस तरह हम वहां से 11.30 बजे निकले और 4.30 बजे वापिस कसौली पहुँच गये l
अगर पर्यटन और यात्रा का मिलाजुला आनन्द लेना चाहें तो एक बार अवश्य मण्डी जिला के ततापानी, मूल महुनाग, पांगना, करसोग, शिकारी देवी, कमरुनाग, पराशर झील, बरोट मण्डी और रिवालसर का प्रोग्राम बनायें अपनी कार द्वारा पाँच दिन व् बस द्वारा सात दिन लगते हैं l
वापिसी का रास्ता
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