22 – 30 June 2011
अमरनाथ यात्रा - 1 “Amarnath yatra part – 1”
परिचय तथा परिस्थित :
कहते हैं अगर अमरनाथ के दर्शन नहीं किये तो जिन्दगी में कुछ किया ही नहीं l अमरनाथ, हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थान है l हर वर्ष लाखों लोग इसके दर्शनों को आते हैं और स्वम्भू हिमानी शिवलिंग के दर्शन कर खुद को धन्य मानते हैं l स्वत: निर्मित बर्फ शिवलिंग को भक्तगण बाबा बर्फानी भी कहते हैं l यह बाबा बर्फानी 12,760 फूट की ऊँचाई पर एक गुफा में कुछ ही दिनों के लिए अवतरित होते है, और फिर क्षीण हो जाते हैं l लगभग 60 फूट लम्बी, 50 फूट चौड़ी और 35 फुट ऊँची यह गुफा, जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर से 110 km. की दुरी पर स्थित है l (बालटाल सड़क द्वारा 94 km., 2 km. दोमेल, और फिर 14 km. पैदल) काशी विशावनाथ के बाद सबसे लोकप्रिय और आस्था का केंद्र अमरेश्वर महादेव (अमरनाथ ) ही है l पुरे विशव में इसे अमरनाथ यात्रा के नाम से ही जाना जाता है l क्योंकि इसी स्थान पर शिव ने पार्वती को अमरत्व की कथा सुनाई थी, मगर भगवान की लीला से माँ पार्वती वह कथा पूरी न सुन सकी lअमरनाथ यात्रा कब करें :
इस पवित्र स्थान की यात्रा अधिकारिक तौर पे आषाढ़ महीने की पूर्णिमा ( June 1st week ) से शुरू होती है और रक्षा बंधन ( July Last week ) वाले दिन सम्पूर्ण मानी जाती है l मगर उससे पहले ही अप्रैल में पंजाब के कुछ श्रद्धालु अपने जोखिम पर हिम शिवलिंग के दर्शन कर ही लेते हैं और अक्सर पंजाब केसरी अख़बार में स्वम्भू हिम शिवलिंग की जानकारी पढने को मिल जाती है lइस यात्रा का आगाज एक चांदी की छड़ी से शुरू होता है l श्रीनगर दशनामी अखाड़े के साधू-संत इस छड़ी को श्रीनगर से पहलगाम होते हुए आषाढ़ की पूर्णिमा को गुफा में स्थापित करते हैं l तथा रक्षा बंधन के दिन इस छड़ी को वापिस श्रीनगर के लिए रवाना कर देते हैं l अंग्रेजी महीने के हिसाब से यह जून के पहले हफ्ते में शुरू होती है और जुलाई के अंतिम सप्ताह में सम्पूर्ण होती है l
अब मैं बताता हूँ कि इस हिमानी शिवलिंग का निर्माण कैसे होता है l गुफा के अंदर कई स्थानों पर बर्फ का पानी टपकता रहता है l यही पानी की बूंदें ठोस रूप धारण कर लेती हैं, और 18 फुट तक ऊँची लम्वत गोल आकार में परिवर्तित हो जाती है l जो एक चमत्कार ही है l विशव में ऐसा कहीं नहीं होता जबकि ऐसी बर्फानी गुफाएं और भी कई जगह है l
अमरनाथ यात्रा मार्ग :
अंतत श्रीनगर तक जाना ही पड़ता है l वायु मार्ग; दिल्ली से श्रीनगर, सड़क मार्ग; (श्रीनगर- कन्याकुमारी NH-44) और रेल मार्ग; जम्मू से श्रीनगर l अमरनाथ के लिए प्रमाणिक और पौराणिक मार्ग श्रीनगर से Pampore, Awantipora, होते हुए पहलगाम तक 88 km. l उसके बाद पैदल; चंदनवाड़ी, पिस्सू टॉप, शेषनाग, पंजतरनी और अमरेश्वर गुफा 47 km. है l इस मार्ग से यात्रा करने में 4 से 6 दिन लगते है l रास्ता बहुत सुंदर और सरल है l दूसरा रास्ता है श्रीनगर से Gandarbal, Kangan, Gund, Baltal और दोमेल तक ; 96 km. फिर दोमेल से 14 km. कठिन चढ़ाई और ग्लेशियर के ऊपर चलते हए अमेश्वर गुफा तक l अधिकतर लोग बालटाल वाला रास्ता ही चुनते हैं l क्योंकि यहाँ से एक ही दिन में वापिसी हो जाती है l अब एक तीसरा रास्ता भी है, बालटाल से हेलिकॉप्टर द्वारा पंचतरनी और वहां से 7 km. गुफा तक जिसमे कुछ ही घंटों में यात्री वापिस हो जाता है lअमरनाथ गुफा की खोज :
किवदंती के अनुसार वैसे तो इसकी खोज 7वीं शताब्दी में ही हो गई थी l मगर मुग़ल शासकों के आक्रमण के बाद इसे भुला दिया गया था l फिर 1869 में इसकी खोज एक मुस्लिम चरवाहे ने की l जिसका नाम बूटा मलिक था l कहते हैं कि वह अपनी भेड़-बकरियां चराते-2 इसके पास पहुँच गया था l तभी उसे इस निर्जन स्थान पर एक महात्मा के दर्शन हुए l उन महात्मा ने बूटा मलिक को हाथ सेकने के लिए एक कांगड़ी दी l (जलते हुए कोयले से भरी एक बांस की अंगीठी) जब रात को वह अपने डेरे में आया, तो देखा कि जलते हुए कोयले रत्नों में तब्दील हो चुके थे l इस चमत्कार को देख कर दुसरे दिन वह चरवाहा वापिस उसी जगह गया, और महात्मा को खोजता-2 गुफा तक जा पहुंचा l अब गुफा में एक और चमत्कार “हिमानी शिवलिंग” देखा तो, आश्चर्यचकित हो गया l उसके बाद वह अपनी भेड़ – बकरियों सहित वापिस आ गया और, उसने इस जगह के बारे में लोगों को बताया l इस प्रकार सन 1872 में स्थानीय लोगों और कुछ संतों के साथ गर्मी के मौसम में, अधिकारिक तौर पर यहाँ की यात्रा की गई l जिसमे बूटा मलिक भी साथ था l उस दौरान जो भी कुछ वहां दान दक्षिणा इकट्ठा हुई, वह बूटा मलिक को दे दी गई l ऐसा कहा जाता है कि आज भी जितना चढ़ावा यहाँ चढ़ता है, उसका कुछ भाग बूटा मलिक के वशजों को दिया जाता है l धीरे-2 यह स्थान लोकप्रिय होता गया और यात्री बढ़ते गये l स्वामी विवेकानंद ने भी 1898 में यहाँ की यात्रा की थी, और उन्होंने हिमानी शिवलिंग को साक्षात् शिव की उपमा दी थीअमरनाथ की उत्पति :
शिव महापुराण में वर्णन आता है, कि एक बार देव ऋषि नारद ने माँ पार्वती से पूछा, कि आपके पति देव, गले में नरमुंड की माला क्यों पहनते हैं l जब माता पार्वती ने यही बात भोलेनाथ से पूछी तो उन्होंने बताया कि सती ने जितने भी जन्म लिए हैं, उतने ही नरमुंड शिव ने अपने गले में धारण किये हुए हैं l ये सुन कर माता ने पूछा कि सिर्फ आप त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) ही अमर क्यों है l बाकि की सृष्टि नाशवान क्यों है l शिव जी बताया कि हम त्रिदेव इस ब्रह्मांड में जन्म और मृत्यु से परे है l यह एक लम्बी कहानी है l जो भी प्राणी इस कहानी को सुन लेटा है, वह भी अमर हो जाता है l अब पार्वती जिद करने लगी कि वह भी कहानी सुन कर अमर होना चाहती है l तथा जन्म-मरन के बंधन से मुक्त होना चाहती है l आखिर शिव जी को त्रिया हठ के आगे झुकना ही पड़ा l इस कहानी को कोई और न सुन सके, इस लिए एक सुरक्षिर स्थान की खोज में शिव और पार्वती हिमालय का भ्रमण करते हुए पहलगाम पहंचे l शिव जी ने नंदी बैल को यहीं रुकने को कहा l इस जगह का नाम पहले बैलग्राम था, जो अब पहलगाम हो गया है l कुछ और आगे जाने पर अपने मस्तक से चाँद को उतारकर यहीं रुकने को कहा l आज यह स्थान चंदनवाड़ी के नाम से जाना जाता है l थोडा और आगे जा कर अपने शरीर से बाकि के जंतुओं को भी उतार दिया l जिनमे पिस्सू भी थे l आज वही स्थान पिस्सू टॉप कहलाता है l सबसे आखिर में गले में धारण सर्प को भी छोड़ दिया l जिस स्थान पर सर्प को छोड़ा वह स्थान शेषनाग कहलाता है l अब शिव और पार्वती के सिवा कोई भी प्राणी या जिव-जंतु शेष नहीं था l इन सब से निवृत हो कर जब किसी सुरक्षित जगह की तलाश कर रहे थे, तो एक जगह पानी की पांच धाराएँ बहती नजर आई, तो इसी स्थान पर गंगा को भी छोड़ दिया l आज यह जगह पंचतरनी कहलाई जाती है l यह स्थान भी सुरक्षित नहीं था l क्योंकि पानी में भी जीवन हो सकता था l इसी प्रकार आगे बढ़ते हुए सामने एक गुफा नजर आई, जो सुरक्षा की दृष्टि से और हर प्रकार के प्राण से मुक्त नजर आ रही थी l यहाँ प्राण वायु भी न के समान थी l दोनों गुफा में प्रवेश कर गये l और शिव जी ने अमर कथा सुनानी शुरू कर दी l बहुत समय तक पार्वती हाँ-हूँ करते हुए कथा को सुनती रही l शिव जी कथा सुनाते रहे l जब कथा समाप्त हुई तो शिव ने देखा कि पार्वती तो सो चुकी है l फिर भी हूँ-हूँ की आवाज आ रही है l जब नजर दौडाई तो देखा एक सफ़ेद कबूतरों का जोड़ा बैठा है l यह देख कर भोलेनाथ क्रोधित हो कर उन्हें मारने का उपक्रम करने लगे l यह देख कर कबूतरों ने कहा हे प्रभु अगर आप हमें मार दोगे तो अमरकथा का महत्व ही ख़त्म हो जायेगा l यह सुन कर शिव जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया, कहा कि आज से तुम यहीं इस गुफा में शिव-पार्वती के प्रतीक बन कर वास करोगे lप्रशासकीय पहल :
लोगों की बढती हई संख्या को देख कर सन 2000 में अमरनाथ श्रायन बोर्ड की स्थापना की गई l मगर स्थानीय सरकार की हिन्दू विरोधी नीतिओं के चलते कुछ न कुछ परेशानियाँ चलती ही रहती है l तथा नये-2 फरमान जारी होते रहते हैं बहुत से भक्त जो यात्रियों के लिए भंडारे लगाते है, उन पर तरह-2 के कानून थोप कर परेशान किया जाता है l ऐसे ही वर्ष 2011 में भी यात्रा की अवधि को दो महीने से घटा कर 14 दिन कर दिया गया था lजवाहर सुरंग के उस तरफ - palio नामक जगह पर हमारे सहयात्री
खुबसूरत धान का कटोरा
बगलीहार बांध का खुबसूरत दृश्य
डल झील : श्रीनगर
CRPF के जवान हमारी रक्षा के लिए तत्पर
खीर भवानी मंदिर
कंगन
सिंध नदी के किनारे पर हम दोनों
अद्भुत : सोनमर्ग
दोमेल : बालटाल से यात्रा का शुभारम्भ
COMMENTS