24 – June 2011
अमरनाथ यात्रा – 5 “खीर भवानी” (Kheer Bhawani)
कल बहुत ज्यादा थके होने के कारण सुबह आँख ही 8.00 बजे खुली, वो भी तब जब पं हेम दत्त जी ने दरवाजा खटखटाया l जब वह कमरे में प्रविष्ट हुए तो वह नहा-धोकर बिलकुल तैयार थे l उनसे ही पता चला बाकि लोग भी बस तैयार ही हैं l हमने भी जल्दी ही बिस्तर छोड़ा, फिर भी निकलते-2 एक घंटा लग ही गया l चाय पीकर जब बाहर निकले तो सभी लोग अपना-2 सामान गाड़ी में रख रहे थे, सभी ने जय भोले कह कर एक दुसरे का अभिवादन किया l जब से हम इस यात्रा पर निकले थे, तभी से सब लोग जय भोले के नाम से ही अभिवादन कर रहे थे l हालाँकि थकान अभी भी सब के चेहरे से झलक रही थी, फिर भी हमने 9.00 बजे प्रस्थान कर ही लिया l देवेंदर जी ने बताया कि हम पहले खीर भवानी मंदिर जांएगे, वहां माथा टेक कर ही आगे का सफ़र करेंगे l अभी तक सभी निराहार ही थे, तो तय हुआ माता के दर्शन करने के बाद ही खाना खाएंगे l हम मुख्य मार्ग से न जाकर डल झील के साथ-2 ही हो लिए l इस सड़क को old gandarbal road कहते हैं l इस सड़क के बाँई और डल lake है और दांई ओर पहले श्रीनगर का बाज़ार, Kashmir golf course, Drachh Bagh, Royal Spring Golf Course, Tulip Garden, Shalimar है l हम इसका अवलोकन चलती हुई गाड़ी से ही कर रहे थे l लगभग 6-7 km. के बाद Nasim Bagh से कुछ पहले झील ख़त्म हो गई, मगर गाड़ी की रफ्तार बदस्तूर जारी थी l सड़क बहुत ही बढ़िया और एक दम सपाट है l 8-9 km. चलने के बाद हम एक मस्जिद के पास से गुजरते हुए श्रीनगर लेह highway पर आ गये l कुछ दूर ही चले थे कि देवेंदर जी ने इशारा किया वो सामने एक मस्जिद है, “शायद Jamia Masjid” l वहां से गाड़ी दाहिने तरफ ले लो l शीशे में देखा बाकि की दोनों गाड़ियाँ कहीं नजर नहीं आ रही थी, तो अपनी गाड़ी एक किनारे पर खड़ी कर दी l लगभग 5 मिनट के बाद जब सभी आ गये तो हम साथ ही निकल लिए l हम जिस सड़क पर थे, वह आगे जाकर गली नुमा हो गई l यह एक छोटा सा क़स्बा है, इसका नाम तुलमुला ‘Tulmulla’ है, यह गंदरबल जिला के अंतर्गत आता है l दोनों किनारों पर आबादी तथा दुकाने थी l शायद एक जगह हम रास्ता भी भूले, मगर स्थानीय लोगों ने मदद की l यहाँ पर अधिकतर मुस्लिम आबादी ही लग रही थी, बीच में कुछ और लोग आबाद हो शायद l मगर लोगों का व्यवहार दोस्ताना था l वैसे भी ये जो अलगाव वाद है न, ये सिर्फ कुछ कमीने स्वम्भू नेताओं की देन है l कश्मीर में वैसे भी पर्यटकों को परेशान नहीं किया जाता, क्योंकि सिमित खेती के अलावा पर्यटन से ही लोगों को रोजगार मिलता है l हम रास्ता वहां भूले जहाँ एक बिलकुल तंग गली से अन्दर जाना था, यही गली नुमा सड़क मंदिर परिसर को जोड़ती है l मंदिर से बाहर आने के लिए भी यही रास्ता है l और बाहर आकर सीधे ही उस रास्ते से आगे जाना होता है, जिस रास्ते पर हम चल कर आ रहे थे l मतलब ये T point है l गली में भीड़ बहुत थी कई बार गाड़ी आगे पीछे करनी पड़ी, तब जाकर कहीं मंदिर की parking में पुहंचे lखीर भवानी मंदिर में भीड़ जरुर थी, पर काफी शान्ति थी l गेट के पास ही कुछ दुकाने हैं, जहाँ से सभी ने प्रसाद की टोकरियाँ ली l (हमे छोड़ कर, हम अक्सर प्रसाद नहीं चढाते, बल्कि जो कुछ श्रधा हो उसकी एक रसीद जरुर कटवाते हैं, ताकि उसका इस्तेमाल कहीं न कहीं कुछ निर्माण में या रख-रखाव में काम आये) सामने एक बहुत बड़ा शेड बना हुआ है, जिसमे एक तरफ कुछ पुजारी लोग लोगों से चढ़ावा ले कर अपना काम कर रहे थे ,तो दूसरी तरफ एक टेढ़ा-मेढ़ा “षट्कोण” तालाब है, इसके मध्य में एक छोटा सा मंदिर है, जिसके अन्दर माँ खीर भवानी पिण्डी रूप में विराजमान है l जहाँ सभी लोग खड़े होकर दर्शन कर रहे थे, वहीँ पर लोग धूप-बती जला कर आराधना कर रहे थे l मेरी पत्नी madhu ने भी वहीँ धूप जलाया और माँ का धन्यवाद किया कि आज हमे माता के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ l बाकि के लोग चढ़ावे की लाइन में थे, मगर हम जल्दी ही बाहर आ गये l बाहर निकलते ही गेट पर खीर का प्रसाद वितरित हो रहा था, हमने भी एक-2 डोना लेकर प्रसाद ग्रहण किया l तब तक हमारे बाकि साथी भी आ चुके थे l शायद 40-45 मिनट लगे होंगे, अब हम अगले सफ़र के लिए तैयार थे l
खीर भवानी का उदभव और स्थापना की कहानी :
एक किवदंती के अनुसार जब श्री रामचंद्र ने श्रीलंका पर विजय प्राप्त की तो देखा कि वहां पर रावण ने बहुत से देवी-देवताओं को अपना बंधक बना रखा है l रावण के वध के पश्चात अब सभी आजाद थे l इन्हीं में एक थी देवी राघेन्या l उस देवी ने हनुमान से प्रार्थना की कि हे हनुमान, मुझे यहाँ से निकल कर कहीं दूर हिमालय में स्थापित कर दो l हनुमान की सहमती पा कर देवी ने पिण्डी रूप (पाषण शिला) धारण कर लिया l जब हनुमान इस पिण्डी रूप देवी को लेकर यहाँ से गुजर रहे थे, तो हनुमान ने एक जगह छोटा सा कई धाराओं में बहता एक झरना देखा l जहाँ ये पानी गिर रहा है, वहां एक कुण्ड (तालाब) सा बना हुआ है l इस सुंदर स्थान को देख कर हनुमान जी ने इसी तालाब के मध्य में देवी की पिण्डी को स्थापित कर दिया l इन धाराओं से जब पानी निचे गिरता है तो उसकी सफेद झाग दूध होने का आभास दर्शाती है l कहते हैं जब कोई आपदा आनी होती है तो यह पानी सफेद से काले रंग में परिवर्तित हो जाता है l अन्य पौराणिक मंदिरों की तरह बिना देखरेख के यह स्थान भी लुप्त हो गया था l कालान्तर में जब किसी ब्राह्मण को इसका भान हुआ तो उसने इसकी पुनर्स्थापना की l बाद में जब कश्मीर पटियाला रियासत के अधीन था तो महराजा प्रताप सिंह और बाद में महराजा हरि सिंह ने इसका निर्माण करवाया l यह सब इतिहास की बातें है, सच या झूठ इन्सान की अपनी समझ और बुधि का विषय है lयहाँ के माहौल से कभी भी ऐसा नहीं लगा हम मुस्लिम बहुल इलाके में हैं, हर कोई ‘जय माता की’ बोल कर अपना सामान बेच रहा था l शायद व्यापर का तकाजा भी हो सकता है l हमने दिन की शुरुआत एक अच्छे व् धार्मिक वातावरण से शुरू की थी और शाम तक भोले के चरणों (दोमेल) तक पहुँचने का पक्का इरादा था l माँ खीर भवानी को अंतिम प्रणाम किया और उसी तंग गली से बाहर मुख्य सड़क तक आ गये, जहाँ से अन्दर प्रवेश किया था l
माँ खीर भवानी पिण्डी रूप में विराजमान
खीर का प्रसाद लेने को कतार में लगे हमारे सहयात्री
मधु जी : खीर का भोग
देवेंदर शर्मा और उनका बेटा : माँ के दरबार में
देवेन्द्र,खुशिनंदन,पं हेम दत्त जी के साथ मैं : वापिसी की तैयारी
आस-पास के कुछ खुबसूरत चित्र
जय माँ खीर भवानी
1. अमरनाथ यात्रा भाग - 1 “Amarnath yatra part – 1”
2. अमरनाथ यात्रा भाग - 2 “ कसौली से मानेसर lake”
3.अमरनाथ यात्रा भाग-3 “मानेसर lake से श्रीनगर”
4. अमरनाथ यात्रा भाग –4 (AmarnathYatra-4) “श्रीनगर” (Srinagar)
5. अमरनाथ यात्रा – 5 “खीर भवानी” (Kheer Bhawani)
6. अमरनाथ यात्रा भाग –6 “ कंगन; गंदरबल”
7. अमरनाथ यात्रा भाग –7 (Sonamarg) “सोनमर्ग”
8. अमरनाथ यात्रा भाग -8 (Amarnath) “ दोमेल से गुफा और वापिस”
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