श्रीखंड महादेव यात्रा - 12 "ShriKhand Mahadev Part-12"
श्री खंड से वापिसी
ओम प्रकाश जी व् अन्य लोग पूजा अर्चना करने लग गए. मै अभी भी कुछ ठीक महसूस नहीं कर रहा था l इसलिए मैंने और मधु ने जल्दी से वापिस निचे उतरना शुरू कर दिया l और करीब एक की.मी. उतरने के बाद बाकी साथियों का इन्तजार करने लगे l यहाँ आकर मैं अब ठीक महसूस कर रहा था l उपर की तरफ जाना जितना मुश्किल था, निचे उतरना उससे भी अधिक कठिन है l निचे उतरने के लिए अब एक नई तरकीब लगाई, जहाँ भी ग्लेशियर आता, हम निचे बैठ जाते और घिसटते हुए ऐसे आते जैसे बच्चे पार्क में घिसटते हैं l ये तरकीब अच्छी कारगर हो रही थी l बस एक ही सावधानी की जरुरत थी, कहीं आगे वाले से न टकराएँ, वर्ना परिणाम घातक हो सकता था l 20 मिनट के इन्जार के बाद हमारी टीम के बाकी सदस्य भी आ पहुंचे l अब सभी बहुत खुश थे, चलो जी, यात्रा सम्पन हुई l वापिसी में भी नैन सरोवर में रुक कर नैनाभिराम दृश्य का आनन्द लिया, और 7 बजे पार्वती बाग़ पहुँच गये l कुछ देर इधर-उधर घूमते रहे, जब अँधेरा होने लगा तो टेंट में चले गए l हमने जो टेंट सुबह बुक किया था, वह चार लोगों के रहने लायक था, मगर हम पांच थे l किसी तरह सबने खुद को थोड़ी सी जगह में फिट किया l पर अब एक नई मुसीबत आ गई, एक तो घुप अँधेरा, और ऊपर से भयंकर ठण्ड, शायद -10 डिग्री होगा l क्योंकि कम्बल से बाहर जो भी अंग निकलता, एक मिनट में ही सुन्न होने लगता था l कुछ देर में तम्बू वाले की बीवी खाना खाने के लिए आवाज लगा रही थी l हमने उसे कहा कि यहीं खाना दे दो, अन्यथा हम भूखे ही सो जायेंगे l वह भलीमानस, हमें दाल-चावल की थाली टेंट में ही दे गई l खाना खा कर थालियाँ बाहर सरका दी l मजेदार बात यह रही, किसी ने भी पानी नहीं पिया l क्योंकि पानी इतना ठण्डा था, कि देख कर ही रोंगटे खड़े हो रहे थे l आधी रात को ऐसा लगा, मानो सारे कम्बल भीगे हुए है, और टेंट की छत से भी पानी टपक रहा है l शायद ये हम लोगों की साँसों के कारण हो रहा था. ठण्ड बहुत थी, जबकि जगह कम थी, किसी ने भी पूरी रात करवट तक न बदली l
पार्वती बाग से घर वापिसी
फोन में पांच बजे का अलार्म बजते ही सभी उठ गए, बाहर हल्की रौशनी हो चुकी थी l चूँकि मैं शाम को टेंट में सबसे पहले घुसा था, तो सबसे आखिर में ही बाहर निकल पाया l खुले में ही नित्यकर्म से निवृत हुए, ब्रश किया, एक-२ कप चाय पी कर वापिसी का रास्ता नापना शुरू कर दिया l आज के दिन अधिकतर निचे उतरने का ही रास्ता था l बस एक की.मी. की खतरनाक चढाई थी, भीम तलाई से काली घाटी तक l खैर अब जो भी था, जाना तो था ही l पहाड़ों की यात्रा पर जाते हुए मैं हमेशा अपने बैग में एक जोड़ी सेंडल जरुर रखता हूँ, क्योंकि जूतों के साथ निचे उतरने में बहुत परेशानी होती है l एक बार अमरनाथ यात्रा पर भुगत चूका हूँ l एक बजे हम लोग वापिस थाचडू पहुँच चुके थे l यहाँ पर गर्म-२ जलेबी के साथ खाना मिल रहा था l मैंने जलेबी तो नहीं खाई, खाना खाने जरुर बैठ गया l अभी मैंने खाना शुरू नहीं किया था, कि मेरे पास सेवा दल का वही आदमी आया, जिसने कल हमारे साथ श्रीखण्ड महादेव के दर्शन किये थे l वह बोला कि अन्दर आ कर गुरु जी से मिल लोl मैंने उसे रुखा सा जवाब दिया, कि मैं किसी गुरु अथवा बाबा से मिलना पसंद नहीं करता l शायद मेरी ये बात अन्दर बैठे गुरु जी ने भी सुन ली थी l हमने आराम से खाना खाया l अभी चलने की सोच ही रहे थे की वही आदमी जिसका अब मैं नाम भूल चूका हूँ, हमारे पास आया और बोला कि गुरु जी आपसे मिलना चाहते है l अब हमने भी ज्यादा अकड़ दिखानी ठीक नहीं समझी, बैग निचे रखे और तम्बू में चले गए l वहाँ एक शख्स भगवा कुरते में लम्बी दाढ़ी और सर पर हिमाचली टोपी पहने बैठे थे l मुझे देखते ही बोले भाई साहब मैं कोई बाबा नहीं हूँ, एक सधारण आदमी हूँ , हमीरपुर के एक छोटे से गाँव में कपडे की दूकान चलाता हूँ l हमने अपनी दूकान में भोले शंकर का एक हिस्सा डाल रखा है, साल भर में जो भी मुनाफा होता है, उसी से थाचडू और मणिमहेश में भंडारा आयोजित करते है l इन्होने अपना नाम गौतम है l गौतम जी ने यह भी बताया कि वो सांप के काटे का इलाज भी करते है l और वो भी फोन पर l मगर दुर्भाग्य से मैंने वो नम्बर खो दिया l अब मुझे याद आया, मैंने कई बार अखबार में इस बारे में पढ़ा था l गौतम जी ज्योतिष विद्या का भी अच्छा ज्ञान रखते हैं l हमने गौतम जी से काफी सारी बातें की l और विदा ले कर अपना सफर जारी कर दिया l
6 बजे तक हम जाँव वापिस पहुँच चुके थे l समय काफी था, अत: गाड़ी स्टार्ट की और दौड़ पड़े घर की ओर l क्योंकि अब इतनी कठिन यात्रा के बाद अपने महलों की सुख-सुविधाएँ याद आ रही थी l अभी चार की.मी. ही आगे आये थे, कि एक दुर्घटना हो गई l अचानक बहुत जोरदार धमाका हुआ, समझ ही नहीं आया क्या हुआ l मैंने सोचा शायद गाड़ी का टायर फट गया है l मैंने गाडी रोकी तो सभी निचे उतर कर देखने लगे आखिर हुआ क्या है l मगर टायर तो सलामत थे l हमारी गाड़ी के ठीक पीछे एक जीप आ रही थी, जिसमे पीछे भी काफी आदमी खड़े हो कर सफ़र कर रहे थे l उनमे से किसी ने बताया कि गाड़ी पर ऊपर पहाड़ से एक पत्थर गिरा है l जब छत पर देखा तो 5 इन्च ब्यास का एक छेद हो चूका था l जब जीप के सभी लोगों को पता लगा तो वो भी घबरा गए और बोले कि जल्दी निकलो l कहीं कुछ और पत्थर न गिर पड़े l पिकअप गाड़ी का ड्राईवर बोला अगर आपकी जगह हमारी गाडी होती, तो क्या होता l मगर भोले नाथ की कृपा से सब कुशल थे, गाडी तो ठीक हो सकती है l
निरमंड तक आते-२ अँधेरा हो गया था, और गाडी बिना रुके अपनी मंजिल की ओर भाग रही थी l 8.30 बजे हम उसी ढाबे पर कुमारसेन आ कर खाना खाने के इरादे से रुके l मैंने कहा मैं खाना नहीं खाऊंगा, बाकी लोग खा लो l पत्नी जी बोली अगर आप नहीं खाओगे तो मैं भी नहीं खाऊगी l ओम प्रकाश, कंचन और शिवानी ने खाना खाया l हमने सिर्फ चाय पी, और फिर गाड़ी स्टार्ट l रात 11.40 पर शिवानी को शिमला में ड्राप किया, और 1.25 पर रात्रि अपने घर पर कसौली में थे l
आखिर में एक सबसे मजेदार बात शेयर करना चाहूँगा, कि जो कपडे हम घर से पहन कर गए थे, वो वापिस घर आ कर ही बदले l तथा घर से नहा कर गए थे, और घर आ कर नहाना हुआ l कारण रहा अत्यधिक ठण्ड और समय तथा सुविधाओं का आभाव l
“जय श्रीखण्ड महादेव”
श्रीखण्ड के बिल्कुल दांई चोटी पर कुछ पक्षी जैसा नजर आ रहा है
अब निचे उतरने की बारी
बर्फ पिघलते ही जीवन के अंकुर फूट पड़ते हैं
बादलों के मध्य में कार्तिकेय शिखर के दर्शन
निचे उतरना भी आसान नहीं है
हर कदम सम्भाल के (मधु निचे आते हुए)
अभी पार्वती बाग़ दूर है
नैन सरोवर का विहंगमावलोकन
नैन सरोवर में आखिरी विश्राम
जय श्रीखण्ड महादेव
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