श्रीखंड महादेव यात्रा - 2 "ShriKhand Mahadev Part-2"
कसौली से कुमारसेन
यह बात है , 9 जुलाई 2012 की जब पंजाब केसरी अखबार में खबर पढ़ी कि, 15 जुलाई से श्री खण्ड महादेव की यात्रा शुरू हो रही है l मैंने उसी दिन शाम को साथ जाने वाले लोगों को यात्रा पर जाने की तारीख बताने के लिए फोन किया तो पता चला कि पण्डित जी नहीं जा पाएंगे, क्योंकि पिछले कल उनके भाई का स्वर्गवास हो गया था l बाकी लोगों की तरफ से तैयारी का आश्वासन मिल गया l हमने भी तैयारी शुरू कर दी और नेट पर यात्रा के बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास किया l नीरज जाट की कहानी पढ़ कर व् फोटो देख कर रोमांच के साथ-२ रोंगटे भी खड़े हो गये l अगले चार दिन इसी उधेड़-बून में बीत गए कि यात्रा कर भी पाएंगे या नहीं l पूरी रात भर फोटो में देखे गये पहाड़ और ग्लेशियर के डरावने सपने आते रहे l मगर मैंने इस विषय में किसी से कोई बात नहीं की, ताकि बाकि लोग कहीं पहले ही हिम्मत न हार बैठे l यहाँ तक कि मधु जी को भी नहीं बताया lआखिर 13 जुलाई का दिन ख़त्म हुआ, शाम को 8 बजे ख़ुशी नन्दन को पहला फोन किया, कि सुबह 5 बजे निकलना है, तो उधर से बड़ा मासूम सा जवाब मिला कि वो नहीं जा पायेगा l उसके बाद ओम प्रकाश जी को फोन लगाया तो एक जोश भरी आवाज आई, ‘पैकिंग हो रही है, बताएं कितने बजे निकलना है l मैंने बताया कि निकलना तो सुबह 5 बजे है, मगर तीन लोगों का कार्यक्रम केंसिल हो गया है, और अब हम तीन ही यात्री बचे है l थोड़ी देर में फोन वापिस आया और ओम प्रकाश जी ने पूछा कि क्या हम उनकी भतीजी व् भांजी को साथ ले चलें, वो काफी उत्सुक हैं l मैंने फ़ौरन हाँ कर दी और अपनी भार्या मधु कँवर को बताया कि यात्रा का नया जत्था तैयार है l
और इस प्रकार 14 जुलाई सुबह 7.00 बजे हमारा यात्री जत्था कसौली से श्री खण्ड महादेव की यात्रा पर निकल पड़ा l अब यात्रियों से परिचय करवा दूँ, कँवर कुलदीप सिंह यानि मैं, मधु कँवर मेरी पत्नी ‘जिनके बिना कोई यात्रा पूरी नहीं हो सकती’ ओम प्रकाश जी ‘मित्र’ उनकी भतीजी कंचन और उनकी भांजी शिवानी जिसे हमने शिमला से लेना था l 10.00 बजे हमारा रथ ‘स्कोर्पियो’ शिमला ‘टनल -103’ पर पहुंचा l 10 मिनट का इंतजार करना पड़ा, शिवानी के आते ही अगला सफ़र शुरू l
शिमला से छराबड़ा, कुफरी, ठियोग और नारकंडा होते हुए तक़रीबन 1.00 बजे हम लोग कुमारसन (Kumarsan) पहुंचे l बाँई और एक ढाबा नजर आया तो गाड़ी रोक कर खाने का आर्डर किया l जब तक खाना तैयार होता तब तक कुछ फोटो शूट किये l कुमारसेन मेरे लिए कोई नई जगह नहीं थी l मैं 1985-86 में दो साल तक कोटगढ़ में रहा हूँ, तो यहाँ के हर स्थान से भली भांति परिचित हूँ l हम जहाँ रुके थे, उसके सामने दांई ओर कोटगढ़ है और बाँई ओर निचे की तरफ किंगल है l किंगल वह स्थान है, जब सर्दियों में बर्फ के कारण कुफरी-नारकंडा वाला मार्ग बंद हो जाता है, तो धामी-बसंतपुर होते हुए किंगल ही पहुँचते हैं l यह सड़क थोड़ी छोटी संकरी है, इस कारण यहाँ से गैर जरुरी आवाजाही कम ही होती है l अभी खाना तैयार हो ही रहा था कि एक बोलेरो गाड़ी आ कर ढाबे पर रुकी, जो शायद हिमाचल के हमीरपुर जिला की थी l जिसमे से 7-8 नौजवान लड़के उतरे, जो शकल से यात्री लग रहे थे l उन्होंने भी खाने का आर्डर दिया, और हमारे सामने वाले टेबल पर बैठ गये l उनकी बातचीत से लग रहा था कि वह श्रीखंड हो कर आये हैं l मैंने उत्सुकतावश पूछ लिया भाई साहब श्रीखण्ड की यात्रा करके आ रहे हो क्या, कैसा अनुभव रहा और यात्रा कैसी रही l जवाब मिला बहुत मजेदार था, तथा मौसम साफ़ रहने के कारण दर्शन भी अच्छे हुए l मैंने उन्हें बताया कि हम भी दर्शन करने जा रहे है, पर सुना है कि यात्रा काफी कठिन है, आप लोगों का अनुभव कैसा रहा l क्या आप लोग हमे भी यात्रा के विषय में कुछ विस्तार से बता सकते हैं l हमारी बात का जवाब देने की बजाय उन्होंने हमें ऊपर से निचे तक देखा, और आपस में हंसने लगे l उनका ऐसा व्यवहार देख कर उसके बाद हमने उनसे कोई बात नहीं की l मगर वह हमें देख कर आपस में बाते करते रहे और मुस्कुराते रहे l हमने अपना खाना ख़त्म किया और अपना सफ़र शुरू कर दिया l उन नौजवान यात्रियों की व्यंग्यात्मक हंसी ने मुझे अन्दर सचेत व् दृढ़निश्चय कर दिया l अब मानसिक तौर पर हम सभी इतना दृढ़ हो चुके थे, कि चित्रों में देखा विशाल हिमालय अब कोई छोटा-मोटा सा पहाड़ अनुभव हो रहा था l शाम होने से पहले हमे हर हाल में श्रीखंड महादेव यात्रा के पहले पड़ाव सिंहगार्ड तक पहुंचना ही था l
सभी खुश चेहरे
एक फोटो मेरी भी हो जाए
मतिआना के पास एक फोटो सेशन
कुमारसेन में,ढाबे पर
छोटी पहाड़ी की ओट में मेरे पीछे किंगल
COMMENTS