श्रीखंड महादेव यात्रा - 4 "ShriKhand Mahadev Part-4"
जाँव से सिंहगार्ड :
हम लोग 4.30 बजे जाँव पहुँच गए थे, मगर गाड़ी पार्किंग के लिए जगह ही नहीं मिल रही थी l आधा घंटा लग गया गाड़ी को पार्क करने में, क्योंकि चार-पांच दिन तक गाड़ी सड़क के किनारे भोलेनाथ के ही भरोसे पर रहनी थी lहमने सिर्फ अपना-2 जरूरी सामान लिया बाकि सब गाड़ी में रहने दिया l इस प्रकार हम पांचों लोग “ मैं, मधु कँवर, ओम प्रकाश, कंचन और शिवानी” 5.00 बजे जाओं से सिंहगार्ड के लिए चल पड़े l जहाँ पर हमने गाड़ी पार्क की थी, उससे 200 मीटर आगे जाकर सड़क के दांई और एक भंडारा लगा हुआ था, वहीँ से एक रास्ता निचे की ओर जा रहा था l कुछ लोग उसी रास्ते पर जा रहे थे, तो हम भी उनके पीछे-2 हो लिए l आगे एक छोटा सा नाला था l इसपर एक पक्का पुल बना हुआ था हम ने इसे पार किया l आगे यह रास्ता गाँव, खेत तथा बगीचों के बीच से होते हुए गुजर रहा था l लगभग 500 मीटर के बाद रास्ता एक नाले के नजदीक से गुजरने लगता है l नाले में पानी का बहाव काफी तेज था l जिस पगडण्डी पर हम चल रहे थे, वह भी बड़ी-2 चट्टानों से अटी पड़ी थी l आगे जाकर रास्ता खेतों के मध्य से होकर गुजरता है l खेत में आलू, बीन की फसल और सेब तथा खुमानी के पौधे भरपूर हरियाली फैला रहे थे l सेब के फलों पर अभी हल्की-2 लाली थी, मतलब अभी सेब कच्चे थे l हाँ खुमानी के पेड़ खूब पीले फलों से लदे थे l हमारे यहाँ ‘सोलन’ में खुमानी जून के महीने में ही ख़त्म हो जाती है, और उसका आकार भी बड़ा होता है l हम इस के पौधे नर्सरी से खरीद कर उगाते हैं l मगर यहाँ जो खुमानी होती है, वह जंगली होती है l यानी खुद उग जाती है l इसका खाने में कम उपयोग किया जाता है, बल्कि इसकी गुठली का तेल निकला जाता है l इसका तेल शरीर के जोड़ों और मांसपेशियों की दर्द के लिए अचूक औषधि है l इस तेल की कीमत 1000 रूपये से अधिक ही होती है l
शाम के 6.00 बजे तक हम सिंहगार्ड पहुँच गए l यहाँ पर हमीरपुर वालों का जलेबी और पकोड़े का लंगर चल रहा था l अपने-२ बैग निचे उतार कर रखे, और गरमा-गर्म चाय के साथ पकोड़े और जलेबी का आनन्द लिया l इसी दौरान एक आदमी हमारे पास आया, वह श्री खण्ड सेवा समिति का सदस्य था l उसने हमें बताया कि सामने जो कमरा है, वहां जा कर सभी यात्रियों को अपना-2 पंजीकरण करवाना होगा l भला हमे क्या एतराज था l रजिस्टर में देखने पर पता चला कि हमारे से पहले 173 लोगों के नाम दर्ज हो चुके थे l अगले पांच नाम हमने भर दिए, जिसमे नाम पूरा पता मोबाइल न. और घर का वह फोन नंबर जिस पर किसी दुर्घटना की स्थिति में प्रशासन सम्पर्क कर सके l यह एक अच्छी व्यवस्था है, अगर हमारे साथ कुछ अनहोनी हो जाये तो घर पर सम्पर्क करने में काफी वक्त जाया हो सकता है l अधिकारिक तौर पर आज ही यात्रा शुरू हुई थी l नाम तो याद नहीं रहा, मगर हमने उस आदमी से यात्रा की काफी जानकारी प्राप्त की l उस स्वयंसेवी के अनुसार अगला पड़ाव थाचडू था, और वहां पहुँचने में 6-7 घंटे का समय लगता है l रास्ता काफी कठिन व् खतरनाक है l रात को जोखिम नहीं उठाना चाहिए l रात यहीं गुजार कर सुबह यात्रा शुरू करनी चाहिए l हमने हर तरह से विचार कर उस आदमी की सलाह मानने में ही भलाई समझी l कुछ लोग अभी भी आगे की यात्रा जारी रखे हुए थे l जब यह बात हमने उस आदमी को बताई तो वह बोला कि, हम आपको सिर्फ एक अच्छी सलाह दे रहे हैं, आदेश नहीं l कुछ ही देर में अँधेरा हो जाएगा, ऐसे में पहली बार जाने वाला यात्री रास्ता भी भटक सकता है l और रात को जंगली जानवरों का खतरा भी हो सकता है l उस भलेमानस ने अपने आफिस के साथ वाला एक कमरा हमें रहने के लिए दे दिया l दरी तथा कम्बल भी उपलब्ध करवा दिए l हम सब ने कुछ देर आराम किया और शाम को कीर्तन व् आरती में शामिल होने के लिए हमीरपुर वालों के भंडारे में चले गये l रात 9.00 बजे लंगर में प्रशाद ग्रहण कर कढ़ी-चावल का भोग लगाया l अब तक यात्रियों की संख्या में काफी इजाफा हो चूका था l बहुत चहल-पहल हो गई थी l लोग रात काटने के लिए जगह का जुगाड़ करने में लगे हुए थे l भोले नाथ की कृपा से हमारे पास रहने के लिए कमरा था l एक बात और कि अब तक ठण्ड काफी बढ़ चुकी थी, हम लोग कमरे पर आये और भारी ठण्ड में सोने की कोशिश करने लगे l बाहर लोगों का शोर तो कम हो चुका था, मगर साथ बहता पहाड़ी नाला बहुत कोलाहल कर रहा था l
मधु अपने ग्रुप को लीड करते हुए
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