श्रीखंड महादेव यात्रा - 6 "ShriKhand Mahadev Part-6"
थाचडू से कुंशाघाटी
थाचडू में खाना खाने के बाद अब सुस्ती छाने लग पड़ी थी, थकान भी काफी महसूस हो रही थी l आराम करने के इरादे से एक खाली टेंट पर कब्ज़ा किया, लेटते ही नींद की झपकी आ गई l जब आँख खुली तो ढाई बज चुके थे, देखा सभी बेसुध पड़े है, फटाफट सब को उठाया l सभी ने हाथ-मुहं धोया और काली घाटी जाने वाले रास्ते पर चल पड़े l पंच कैलाशी यात्री भी हमारे साथ-साथ ही चल रहे थे l अभी आधा घंटा ही हुआ था चलते हुए, कि एक दम जंगल और पेड़-पौधे गायब हो गये l अब हम घास से भरी, पेड़ - पौधों रहित पहाड़ी पर खड़े थे l हम लोग बड़ी हैरानी से कभी निचे की तरफ घने जंगल देख रहे थे, कभी ऊपर की ओर छोटा-२ घास, जड़ी-बूटियां व् फुल l कैलाशी बहन ने बताया “जो यहाँ पहले भी यात्रा कर चुकी है” कि 11,000 फुट के आस-पास वृक्ष ख़त्म हो जाते हैं l इसे ही Tree Line “वृक्ष रेखा” कहते है l उन्होंने यह भी बताया कि, अब ये जो जड़ी-बूटी व् फुल नज़र आ रहे है, ये भी पार्वती बाग तक ही मिलेंगे, उसके बाद जीवन का हर लक्षण क्षीण हो जाएगा lऐसे ही एक दुसरे से बातें करते हुए यात्रा जारी थी कि अचानक कालीघाटी पहुँचने से लगभग 1 km पहले ही मौसम ख़राब हो गया l चारों तरफ धुंध छा गई व् बारिश की फौहारें शुरू हो गई l अब मुझे मधु की चिंता हो रही थी, जो सुबह से ही बीमार थी l मगर अब कुछ बेहतर महसूस कर रही थी, और सिर्फ मेरा साथ देने के लिए ही जबरदस्ती मुस्कुरा कर चल रही थी l मगर अब भीगने के कारण तबियत और बिगड़ने का खतरा पैदा हो गया था l मैं खुद भी थकान महसूस कर रहा था l अब डंडे की कमी महसूस हो रही थी l क्योंकि बारिश के कारण छतरी खोल कर हम दोनो उसके निचे चल रहे थे l अब गलती का अहसास हो रहा था, कि मैंने डंडा क्यों नहीं लिया l भीगते - थकते किसी तरह 2.30 बजे हम पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गए, यही है कालीघाटी l यहाँ तक आते-२ बारिश काफी तेज हो चुकी थी l बारिश से बचने के लिए हम एक खाली पड़े टेंट में घुस गए, व् बारिश रुकने का इन्तजार करने लगे l 3.30 बजे बारिश बंद हो गई, हम चलने की तैयारी कर ही रहे थे, कि एक औरत बड़ी तेजी से हमारी तरफ नाराज हालत में आई l आते ही पूछने लगी किसकी इजाजत से तुम लोग टेंट में घुसे हो l नाराजगी जायज थी, क्योंकि यह निजी तम्बू था l हमने चुपचाप उससे माफ़ी मांगी और खिसक लिए l जैसे ही बहार निकले धुध छंट चुकी थी l यहाँ से श्री खंड महादेव के दूर-दर्शन हो रहे थे l पार्वती बाग तक का नजारा साफ़ नजर आ रहा था l यहाँ से इतना सुंदर दृश्य नजर आ रहा था, कि सारी थकान दूर हो गई थी l आज के दिन हम भीम द्वारी तक पहुंचना चाहते थे l सुंदर नजारों को निहारते-२ निचे भीम तलाई की ओर उतरना शुरू कर दिया l काली घाटी के बाद सीधी उतराई शुरू होती है l बहुत जबरदस्त ढलान थी, और बारिश के कारण फिसलन बहुत हो गई थी l बहुत संभल कर उतरना पड़ रहा था l काली घाटी वाकई ‘काली’ घाटी है। यहां गुग्गल नामक घास बहुत पाई जाती है। गुग्गल का इस्तेमाल धूपबत्ती और अगरबत्ती में महक बनाने के लिये किया जाता है।
आधे घंटे में हम उतराई उतर कर भीम तलाई आ पहुंचे l यहाँ एक छोटा सा ताल “तलाब” बनाया गया है l जिसमे अब पानी नहीं है l पानी एक ओर से आता है, और दूसरी तरफ इस तालाब की तली में ही समा जाता है l कहते है अज्ञातवास के दौरान जब पांडव यहाँ आये थे, तब महाबली भीम ने यह ताल नहाने के लिए बनाया था l ऐसी धारणा है कि द्वापरयुग में पांड्वो ने भी श्री खंड महादेव की यात्रा की थी l कालीघाटी के बाद भीम तलाई फिर कुंशा घाटी और फिर भीम द्वारी, जहाँ तक हम आज ही पहुंचना चाहते थे l मगर अब शारीर साथ छोड़ने लगा था, और कदम जबरदस्ती उठ रहे थे l हमारे साथ-२ एक 70 वर्षीय बजुर्ग जोड़ा भी चल रहा था l जब भी हमें अधिक थकान महसूस होती, हम इनकी तरफ देख लेते थे l आपस में बात करते थे, कि जब ये चल रहे हैं, तो हम क्यों नहीं l इन बुजुर्ग के साथ चार पांच लड़के थे, जो इनका बहुत ख्याल रख रहे थे l कुछ दूर चलने के बाद ये लोग आराम करने के लिए रुक जाते थे, और अगर चाय मिल रही हो तो चाय पीकर ही आगे बढ़ते थे l और हाँ ये जो बुजुर्ग मर्द थे, यह बैठते नहीं थे, बल्कि खड़े-२ ही पहले एक बीडी पीते, फिर चाय और सफ़र जारी l
पूरी श्रीखण्ड यात्रा का सुन्दरतम इलाका यही जगह है। भीम तलाई से भीम द्वारी तक। क्या चीज बनाई है कुदरत ने l
एक तलहटी पार करते तो दूसरी आ जाती, उसे पार करते तो, एक और सामने नजर आ जाती l भीम द्वारी कितनी दूर है, पता ही नहीं चल रहा था l फिर भी हम चलते जा रहे थे l फिर अचानक एक घाटी में हमे छोटा सा ग्लेशियर दिखा l उससे ऊपर एक झरना बह रहा था l झरना निचे गिरते ही ग्लेशियर में समा रहा था, और उसके निचे ही कहीं बह रहा था l ग्लेशियर पूरी ढलान पर था l बर्फ पत्थर सी सख्त तथा शीशे सी चिकनी थी, बहुत संभल कर इसे पार किया गया l यहाँ हमें कुछ लोग वापिस आते हुए भी मिल रहे थे l जय भोले, बम-बम भोले कह कर अभिवादन करते, और चलते रहते l ऐसे ही कुछ दूर और चले होंगे कि हमें तीन-चार लड़के मिले, जिन्होंने हमें नमस्ते की l ये लड़के कसौली के ही थे, और यात्रा कर के वापिस आ रहे थे l ये कई वर्षों से हर साल आते हैं l कुछ देर इनसे बातचीत की, इन्होने हमें बताया कि आगे भीम द्वारी और पार्वती बाग़ फुल हो चुके है l शायद अब वहां रहने को जगह न मिले, ऐसा करो कि यहीं रास्ते में कोई टेंट देख कर रात गुजार लो l वैसे भी अब ठण्ड काफी बढ़ चुकी थी, और अँधेरा भी फैलना शुरू हो चूका था l उनकी बात पर विश्वास करना ही पड़ा l मगर यहाँ कुंशा घाटी में बस एक ही टेंट नजर आ रहा था l मैंने टेंट वाले से बात की तो वह मुकर गया, बोला हमारे टेंट फुल हो चुके है, अब जगह नहीं है l मैंने उससे प्रार्थना की कि यार कुछ तो करो हमारे साथ तीन यंग लेडी है, और एक उनमे से बीमार भी है l हम सभी बहुत थके हुए है, आगे जाने की हिम्मत नहीं है l शायद उसे हम पर दया आ गई, या बिजनेस का तकाजा था l क्योंकि साल भर में सिर्फ एक ही महीना कमाई का होता है, उससे दीगर यहाँ आता कौन है l उसने बताया की रहने वाले टेंट में तो जगह है नहीं, आपको किचन वाले तम्बू में ही रहना पड़ेगा l मरता क्या न करता वाली बात थी, सो राजी होना पड़ा l 100 रू एक आदमी का किराया तय हुआ रात का खाना 40 रू जो उसमे शामिल नहीं था l सिर्फ 4 फुट ऊँचे तम्बू में पहले तो घुसना ही मुश्किल काम था, खासकर मेरे जैसे 6 फुट लम्बे आदमी के लिए l हम सभी बैठ कर अन्दर गए, मगर अभी अन्दर का नजारा देखना तो बाकी था l 12’x9’ का टेंट, जिसमे आग जलाने के लिए एक चूल्हा, ढेर सारी लकड़ियाँ, राशन का सामान, एक पोलियो ग्रस्त साधू बाबा, एक टेंट का मालिक, उसकी पत्नी, एक उसका भाई, पांच यात्री हम और पांच हमारे बैग l खाना बनाने के बर्तन जुते रखने की जगह बगैरा-२ भी यहीं थी l अब -5 डिग्री तापमान में रात कैसे कटी होगी, ये अंदाजा ही लग सकता है l हम जाते ही कम्बल में घुस गए l जब मैंने बैठ कर टाँगे फैलाई तो पैर चूल्हे के पास तक पहुँच गए l अब सोएंगे कैसे, तो तिकड़म लगाई l बैग को bed rest “जैसा hospital में होता है” की तरह सेट किया l अब ठीक था, अधलेटी अवस्था में सोने की व्यवस्था हो चुकी थी l सोने से पहले फोन पर 4.30 बजे का अलार्म लगाया l “सिग्नल तो यहाँ होता नहीं चलो फोन किसी काम तो आया” l थोड़े-२ दाल-चावल खाए काफी सारी दवाई की गोलियां खाई और गठड़ी बन कर सो गए l खाना तो बेशक थोडा सा खाया, मगर गीली जलती हुई लकड़ी का धुआं और चूल्हे के पास बैठे बाबा की भांग वाली चिलम के धुंएँ का भरपूर सेवन किया l फिर भी भोलेनाथ का शुक्रिया अदा किया, यहाँ पर यह सुविधा भी five star से कम नहीं लग रही थी l
अभी तो यात्रा शुरू हुई है
बस तेरा मेरा साथ रहे
अब हम 12 हजार फुट पर हैं,ओम प्रकाश जी पेड़ ढूंढ रहे हैं
बारिश शुरू
ये वो फूल -पत्ते हैं जिनका सरंक्षण स्वंय प्रकृति करती है
काली घाटी से दूर दीखता पार्वती बाग़
भीम ताल की दिवार पर चलती मधु व् अन्य
भीम ताल से लिया गया काली घाटी का चित्र
इस यात्रा का पहला ग्लेशियर
कुर्ता पायजामा बैग में, अब ट्रैक सूट की बारी
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