श्रीखंड महादेव यात्रा - 9 "ShriKhand Mahadev Part-9"
नैन सरोवर से भीम बही
नैन सरोवर से आगे का रास्ता पूरी यात्रा का सबसे ज्यादा खतरनाक और जानलेवा रास्ता है। केवल बड़ी-2 चट्टाने और उनसे भी ज्यादा खतरनाक बड़े-२ ग्लेशियर l यहां ऑक्सीजन की कमी साफ महसूस होती है । जबरदस्त सुस्ती छा जाती है शारीर पर ।नैन सरोवर से जब नजर ऊपर की ओर उठाई, तो भारी–भरकम ग्लेशियर देख कर सांस ही अटक गई l एक पतली सी रेखा नजर आ रही थी, जो आने जाने के रास्ते का आभास दे रही थी l नैन सरोवर से ऊपर चढ़ते हुए लोग चींटियों की तरह नजर आ रहे थे l हमने भी बम-बम भोले का जय घोष किया, और कदम रख दिए इस अद्भुत यात्रा के रोमांचक रास्ते पर l जब भी कोई हमसे आगे निकलता या हम आगे निकलते तो दुसरे आदमी को बर्फ में एक तरफ बैठ कर या लेट कर रास्ता देना पड़ता था l तलवार की धार पर चलना किसे कहते है, यहाँ सार्थक हो रहा था l लगभग आधा घंटा चलने के बाद इस मुसीबत से छुटकारा मिला l मगर अब एक नई मुसीबत तैयार थी, परीक्षा लेने को l बड़ी-२ चट्टानें रास्ता रोके खड़ी थी कहीं कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था l ये तो अच्छा हुआ कि हमारे पूर्वज बन्दर थे l बस अब सभी ने वो ही रूप अख्तियार किया l और हाथ पैर के सहारे, कभी लटकते, चढ़ते कभी लंगूर की तरह छलाँगे लगाते ऊपर की तरफ चढ़ना शुरू कर दिया l अद्भुत नजारा और गजब का अनुभव था, जब चट्टानें ख़त्म होती तो ग्लेशियर शुरू हो जाते l जैसे ही ग्लेशियर पर चढ़ते, तो दोनों तरफ अनन्त खाई और मुश्किल से एक फुट चौड़ा रास्ता l अगर कदम डगमगाया तो सीधे महाकाल की शरण में l मगर धुन सवार थी, श्रीखण्ड महादेव के दर्शन करने की l कुछ दूर तक चलते फिर थोड़ा सा आराम करते दो चार घूंट पानी पीकर फिर धीरे-2 चल पड़ते l कभी कुछ लोग हमसे आगे निकल जाते, फिर वह आगे जाकर बैठ जाते, तो हम उनसे आगे निकल जाते l ये सिलसिला कल से ही चल रहा था l कुछ स्थानीय लोग भी थे उनकी चाल हमसे तेज थी, मगर थकान तो सब को हो ही रही थी l कुछ तो कठिन चढ़ाई और कुछ आक्सीजन की कमी सभी को तेज चलने से रोक रही थी l
पांच-छ ग्लेशियर लाँघने के बाद, और लगभग चार km.चढाई चढ़ने के बाद, श्रीखण्ड से करीब एक किलोमीटर पहले आता है, भीम बही l “बही” (सेठ लोग जिन किताबों में हिसाब-किताब रखते है) यहां बडी बडी चट्टाने हैं, और ताज्जुब की बात ये है कि इन्हें देखकर लगता है, जैसे किसी ने इन्हें काटकर करीने से एक दुसरे के ऊपर लगा रखा है। साथ ही चट्टानों पर एक नियमित पैटर्न में छोटे छोटे गड्ढे जैसा कुछ है l शायद यह कोई भाषा लिपि हो सकती है l कहा जाता है कि यह कारनामा महाबली भीम का है l वह इन पर अपना कुछ हिसाब किताब लिखा करते थे l इसीलिये इन्हें भीम बही कहते हैं। ये बड़े-२ पत्थर एक दुसरे पर तरतीब से ऐसे रखे है जैसे लाइब्रेरी में एक दुसरे पर मोटी-२ किताबें रखी होती है l
एक और बात मै यहाँ साँझा करना चाहूँगा, कि यहाँ हमारे आस-पास बहुत से ऐसे लोग यात्रा कर रहे थे, जो किसी न किसी प्रकार का नशा कर रहे थे l अधिकतर लोग भांग का नशा कर रहे थे l कुछ बीडी-सिगरेट में व् कुछ चिलम भर कर सुटे लगा रहे थे l यही चीज हमने अमरनाथ यात्रा के दौरान भी देखी थी l कुछ लड़के और भी थे जो यूनिवर्सिटी के छात्र थे l वह कुछ और तरह का नशा कर रहे थे l शायद स्मैक या हेरोइन ये मेरा अंदाजा है, क्योंकि उनका जो तरीका था, वो हमने tv या फिल्मों में देखा है l
मेरा अनुभव है कि नशा करने वाले लोग ही अधिकतर मुसीबतों का सामना करते है l क्योंकि नशे की हालत में उन्हें अपने शारीर की हरकतों का ज्ञान ही नहीं रहता, और खुद के साथ दुर्घटना कर बैठते है l कुछ अति उत्साह में शार्टकट वाला रास्ता भी अखित्यार कर लेते हैं, और खुद को मुसीबत में डाल लेते हैं l अगर आप यात्रा का असली आनन्द उठाना चाहते है तो हर तरह के नशे से दूर रहें l
एक-दो - तीन- चार, सब खुश हैं यार
तू जहाँ-जहाँ चलेगा मेरा साया साथ होगा
हम जहाँ से आए हैं, वो पर्वतों के साय हैं
सिर्फ दो पैर रखने की जगह है, निचे आने वालों को इन्तजार करना पड़ता है
बस थोडा और
बस ये ही आखिरी हरियाली है
भीम सेन की लाइब्रेरी , भीम बही
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