Manimahesh Yatra - 4 “मणिमहेश यात्रा Part - 4”
26 – 08 – 2013
मणिमहेश झील दर्शन : सामने ऊपर की ओर मणिमहेश झील का आभास हो रहा था, जो यहाँ से लगभग 1.5 km. होगा l मगर शारीर साथ नहीं दे रहा था l पंडिताईन जी का हाल तो और भी बुरा था, दांत दर्द के कारण कल से कुछ भी नहीं खाया था l वह तो आगे जाने से बिल्कुल ही मुकर गई थी, उनका कहना था अब यहीं रुकेंगे, कल ही दर्शन करेंगे l मेरा भी यही मत था l खैर किसी तरह पंडित जी व मधु ने उन्हें राजी किया और हम चल पड़े, जो होगा देखा जाएगा l आधा km. आगे जाने पर एक रास्ता दाहिनी तरफ नन्दी घाटी की ओर जाता है, ऐसा हमने एक पत्थर पर लिखा हुआ देखा l हम लोग बस सीधे ऊपर ही चढ़ते चले गए l तक़रीबन 4.30 बजे हम पवित्र डल झील पर पहुँच गए l वहां पहुँचते ही ठण्डी बर्फीली हवा ने जो स्वागत किया, तो सारी थकान व पीड़ा छू: मन्त्र हो गई l यह भोले बाबा की कृपा कहें या मंजिल पा लेने की असीम ख़ुशी, अब किसी के भी शारीर में कोई दर्द नहीं था l यहाँ तक कि पंडिताईन जी के दांत का दर्द भी अब नहीं हो रहा था l हमने झील के बाँई ओर से प्रवेश किया और उस स्थान पर गए जहाँ लोग स्नान कर रहे थे l अब बारी थी नहाने की, तो अपन तो ठन्डे पानी से नहाते नहीं है l मैंने पंडित जी से आग्रह किया कि जब आप मेरे लिए पूजा-पाठ और हवन आदि करते हो, तो आज मेरी तरफ से भी चार बाल्टी पानी भी आप ही डाल लो l पंडित जी ने हंस कर हामी भर दी, और दनादन अपने सिर पर पानी उंडेलते गए, व मैं गवाही के तौर पर फोटो खींचता रहा l हमने भी एक किनारे पर हाथ मुहँ धोया, पानी इतना ठण्डा था कि शरीर के जिस हिस्से पर छू जाता था, वह लाल और सुन्न हो जाता था l यहाँ पर मर्द लोग खुले में ही नहाते हैं, जबकि महिलाओं के लिए पर्दे लगा कर झील का कुछ भाग बंद कर दिया गया है l झील की पूर्व दिशा में जिस तरफ हिमालय की चोटी है, जहाँ से सुबह के समय सूर्य की किरणे मणि रूप में परिवर्तित हो कर झील में समा जाती हैं, उस तरफ झील का पानी एक धारा के रूप में बाहर निकलता है l यह पानी निचे जा कर उस नाले में मिलता है, जो मणिमहेश की चोटी से बह कर आता है l इसे मणिमहेश गंगा भी कहा जाता है l यही नाला पार्वती कुण्ड और धन्छो से होता हुआ हडसर तक कहीं शांत तो कहीं हाहाकार करता बहने लगता है l इसी नाले पर हडसर के पास 5 kw. का बिजली सयंत्र स्थापित किया गया है l
साफ़ निर्मल जल देख कर मन में इच्छा हुई कि ये पानी लगातार झील में आ कहाँ से रहा है l दक्षिण - पूर्व की तरफ ज्जाने पर पता चला कि पहाड़ों के अन्दर से ही रिस कर यह पानी झील में लगातार आ रहा है l इसके बाद पूरी झील का एक चक्कर लगाया गया l मधु ने धुप बत्ती जला कर पूजा अर्चना की l हमने भोले बाबा का धन्यवाद किया l अब तक हम सभी तरोताजा हो चुके थे, किसी तरह की कोई थकान नहीं थी l अब लगभग शाम के 6.00 बज चुके थे, और यहाँ लोगों की भीड़ भी बढ़ना शुरू हो गई थी l लगभग सभी टेंट फुल हो चुके थे l हमारा अब यहाँ रुकने का इरादा नहीं था, सो हमने वापिस चलने में ही भलाई समझी l लगभग 15 मिनट में ही हम शिव चौगान (हैलीपैड) तक पहुँच गए l
थोडा आगे बढे तो देखा कि परवाणू वालों का भंडारा भी यहाँ शिव चौगान में लगा हुआ है l पूछने पर पता चला इसका प्रबन्धक कोई संजय चौहान है l मैंने टेंट में बैठे एक आदमी से पूछा संजय कहाँ है, उसने टेंट की रस्सी बांधते एक शख्स की ओर इशार कर दिया l मैंने उसे आवाज दी, जब वह पलटा तो हम एक दुसरे को हैरानी से देख रहे थे l उसने जोर की जफ्फी मारते हुए पूछा बही साहब कब आए l यह संजय चौहान परवाणु में paint का कारोबार करता है l और अक्सर हमारी मुलाकात होती रहती है l इसीलिए थोड़ी हैरानी और ख़ुशी हो रही थी l बहुत अच्छा लगता है, जब घर से मीलों दूर कोई अपना जानकार मिलता है l
संजय ने हमसे आज रात यहीं रुकने का काफी आग्रह किया l मगर हमारा इरादा अब वापिसी का बन चूका था l हमने बस एक-एक कप चाय पी और चलने की इजाज़त मांगी l हमने देखा यहाँ टेंट व लंगर ही नहीं बल्कि पूरा मेडीकल कैंप भी आयोजित कर रखा है, और यथा-संभव जरुरी साधन जुटा रखे हैं l संजय से ही जानकारी मिली कि यहाँ तक सामान पहुँचाना बहुत कठिन कार्य है l घोड़े वाले 1300 रु और नेपाली 700 रु चार्ज करते हैं, एक चक्कर का l जबकि घोड़े पर कुछ ही सामान आ पता है l बाकि का सामान पीठ या सिर पर ढो कर लाया जाता है l भारी-2 जेनरेटर देख कर हैरानी होती है, लोग कैसे लाते होंगे l जबकि हम तो खाली चल कर भी पस्त हुए जा रहे थे l
अब कुछ गौरी कुण्ड के बारे में :
शाम के 6.45 बजे तक हम गौरी कुण्ड आ गए, यहाँ अन्दर जाने व नहाने की आज्ञा सिर्फ महिलाओं को ही है l मैं और पंडित जी बाहर ही बैठ गए l जैसे ही मधु ने मंदिर के अन्दर प्रवेश किया तो बाहर बैठी पुजारिन टाइप औरत जोर से चिल्लाई l (ओए कोई मर्दाना अंदर चला गया) मुझे बड़े जोर की हंसी आई, तो मैं भी उसी टोन में बोल पड़ा माई यह मर्दाना नहीं जनाना है, मगर कपड़े मर्दाना वाला पाई है l (मधु ने ट्रैक सूट पहन रखा था जो पैदल यात्राओं में सुविधा जनक रहता है ) मेरी यह बात सुनते ही आस-पास के लोग भी जोर से हंस पड़े l तभी वहां से कुछ जवान लडके भी निकले जिन्होंने लंबे-2 बाल रखे थे l कुछ ने तो कानों में बालियाँ भी पहन रखी थी l उन्हें देख कर किसी ने कुछ कहा तो नहीं मगर एक बार फिर सब जोर से हंस पड़े l अब अँधेरा होना शुरू हो चूका था, तो हमने भी जल्दी-2 उतरना शुरू कर दिया l निचे उतरते समय 10 से 12 मिनट में एक km., जबकि ऊपर जाते हुए आधे घन्टे में एक km. की everage आती है l बस, निचे उतरने में पैर के अंगूठे दुखने लगते हैं l मैं हमेशा ही एक जोड़ी सैंडल बैग में रखता हूँ, वह सैंडल मैंने झील पर ही बदल लिए थे l
रास्ते में पांच मिनट के लिए हम एक स्थान पर रुके, जिसे शिवजी के घराट (पनचक्की) के नाम से जाना जाता है l यहाँ पहाड़ के अन्दर से ऐसी आवाजें आती है, जैसे घराट में आनाज पिसने के दौरान आती है l रात के 9.30 बजे हम लोग धन्छो गाँव तक पहुँच गए l सबसे पहले 400 रु में एक टेंट में चार बिस्तर बुक किए l यहाँ इस वक्त जगह मुश्किल से ही मिल पाई, क्योंकि ऊपर से आने वालों के अलावा ऊपर जाने वाले लोग भी यहाँ रात्रि विश्राम के लिए रुक रहे थे l सबसे पहले बिस्तर पर कब्जा जमाया, फिर साथ ही लगते भंडारे में दाल चावल का लंगर छका l सुबह के 5.00 बजे का अलार्म लगा कर 10,30 बजे नींद के आगोश में गुम हो गए l
व्यापर: महिला भिखारी, पुरुष दुकानदार
कश्मीरी मुसलमान: भोलेनाथ में अगाध आस्था
बन्दर घाटी से सुन्दरासी वाला रास्ता
कैमरा और लाठी,पक्के साथी
सुन्दरासी
हँसते-हँसते कट जाए रस्ते
थकान हावी हो चुकी है
पंडित हेम दत्त जी सपत्नीक
पार्वती कुण्ड: बड़ी चट्टान के पीछे
हे भोलेनाथ, अभी और कितना दूर है
नन्दी घाटी: यहाँ से एक km.
पवित्र झील: मणिमहेश
सुबह, यहीं से मणि निकल कर झील में समा जाती है
पंडित जी मेरे लिए स्नान करते हुए
पूजा स्थल: मनिमहेश
पार्वती कुण्ड के बाहर बैठी पुजारिन: जिसने मधु को पुरुष समझ लिया था
सूर्यास्त: पार्वती कुण्ड से
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