Manimahesh Yatra-5 “ मणिमहेश यात्रा – 5
धन्छो से चम्बा खजियार27/8 13
कल 24-25 km. चलने के कारण काफी थकान महसूस हो रही थी l जब सुबह उठे तो सभी कुछ ढीले-2 से लग रहे थे l उठ कर ब्रश किया चाय पीकर, फिर हडसर का रास्ता पकड़ लिया l 10-15 मिनट तो सुस्त सी चाल से चलते रहे, मगर जब शरीर थोडा गर्म हुआ तो चाल तेज़ हो गई l दोनाला में फिर से गौतम जी से मुलाकात हो गई, वहां कुछ देर रुक कर चाय पानी किया, और 10.00 बजे तक हडसर पहुँच गए l मगर गाड़ी ढूंढने में डेढ़ घंटा लग गया l यहाँ फोन में नेटवर्क था नहीं, जो जोगिन्दर को फोन करते l अब मधु और पंडित जी गाड़ी ढूंढने निकल गए, मैं और पंडिताईन जी एक पैराफिट पर बैठ कर इन्तजार करते रहे l गाड़ी लगभग 3 km. दूर थी, क्योंकि बाज़ार में गाड़ी खड़ी नहीं कर सकते हैं, वरना पुलिस नो पार्किंग का चालान कर देती है l हमे रात को ही पुलिसकर्मी ने समझा दिया था, कि पुल से पहले गाड़ी पार्क मत करना l हाँ बाजार में रुक कर उतरने चढ़ने में कोई परेशानी नहीं है l
चूँकि अगले दिन जन्मष्टमी थी, तो आने वाले तीन दिन तक यहाँ भारी भीड़ होने वाली थी l स्थानीय लोग मणिमहेश को अपना इष्टदेव मानते हैं, और अष्टमी व नवमी के दिन पूजा करने को अधिमान देते हैं l इस कारण अब तीन दिन तक सभी भंडारे और दुकाने भर जाएँगी l यहाँ तक कि कुछ लोगों को तो खुले में भी रात गुजारनी पड़ सकती है l इस लिए अगर जरूरी न हो तो जन्माष्टमी और राधा अष्टमी को यात्रा का प्रोग्राम न बनाएं,या फिर पुरे इंतजाम के साथ जांएंl
दिन के 12.00 बजे हम जब हडसर से चले तो रास्ते में बहुत ट्रैफिक था l सिर्फ 20 km. के सफ़र में ही एक घंटे से अधिक लग गया l रास्ते में बहुत से सेब के बगीचे थे l कुछ स्थानीय लोग सड़क किनारे सेब बेच रहे थे l हमने भी दो पेटी सेब लिए, मगर यहाँ का सेब उतना अच्छा नहीं है, जितना शिमला का और खासकर कोटगढ़ का l
भरमौर से चम्बा तक मुख्य सड़क के किनारे बहुत सी सुरंगे, पुल, उनसे जुडी छोटी-2 सड़कें नजर आती हैं, यह चमेरा पॉवर project (पानी से बिजली उत्पादन) का हिस्सा है l पहले नदी पर बाँध बना कर पानी को रोका जाता है, फिर उस पानी को सुरंग द्वारा दूसरी तरफ ले जाकर काफी ऊँचाई से निचे बड़ी-2 टरबाईन पर पानी गिराया जाता है. जो बिजली का उत्पादन करती है l मगर यहाँ आम आदमी के जाने पर व फोटोग्राफी पर प्रतिबंध है l
3.30 बजे हम लोग चम्बा के मशहूर चौगान में थे l एक पूरा चक्कर चम्बा के बाज़ार का लगाया यह आज भी वैसा ही है, जैसा 20 साल पहले था l मैं यहाँ दो बार पहले भी 1995 व् 2010 में आ चूका हूँ l चम्बा के बाज़ार का काफी हिस्सा चौगान के चारों ओर ही है l आज कल चौगान को सजाने का काम चला हुआ था l एक हफ्ते बाद चम्बा का मशहूर मिंजर मेला शुरू होने जा रहा था l यहाँ का बाज़ार पहाड़ों के हिसाब से बहुत बड़ा है, और जरूरत का हर सामान मिलता है l यहाँ की दो चीजें काफी मशहूर है, एक तो चम्बा का कढ़ाई किया हुआ रुमाल और दूसरी चमड़े की बनी चप्पल l यहाँ बनी चप्पलें मुझे बचपन से ही बहुत भाती थी l जब मेरे पिता जी 1965-66 में डलहौजी में थे, तो वहां से लाई गई चप्पल घर में देखा करता था l उस समय अच्छे जूते चप्पल बहुत कम लोगों के पास होते थे l अधिकतर लोग टायर से बनी चप्पल पहना करते थे l
मैं जितनी बार भी चम्बा गया, हर बार चप्पल जरुर ले कर आया l मैंने इस बार भी खुद के लिए एक जोड़ा चप्पल ली l जबकि मधु ने पुरे परिवार के लिए खरीद ली l खरीदारी करने के बाद हम लक्ष्मी नारायण मंदिर के रास्ते पर चल दिए l चम्बा का यह मंदिर बहुत ही सुंदर होने के साथ-2 लोगों की आस्था का केंद्र भी है l यह मंदिर प्राचीन वास्तु शिल्प और मूर्तिकला का बेजोड़ नमूना है l लोगों का मत है कि यह मंदिर चम्बा के सूर्यवंशी राजा ‘साहिल’ शैल वर्मा ने 10 वीं शताब्दी में बनवाया था l यह एक मंदिर नहीं है, बल्कि मंदिरों का समूह है, जो चारों तरफ से चार दिवारी से घिरा हुआ है l इस पुरे परिक्षेत्र में तीन मंदिर श्री हरी विष्णु के, तथा तीन मंदिर भगवान् शिव के हैं l इसके अतिरिक्त कुछ छोटे मंदिर भी हैं l मुख्यतया यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है l मंदिर का निर्माण पहाड़ी शैली में उत्तर से दक्षिण की ओर किया गया है l इनमे सबसे पहला मंदिर श्री लक्ष्मी नारायण का, दूसरा श्री राधा कृष्ण का, तीसरा श्री लक्ष्मी दामोदर का है l उसके बाद के क्रमशः तीन मंदिर श्री गौरीशंकर , श्री त्रयम्बकेश्वर, श्री चन्द्रगुप्त, जो भोलेनाथ को समर्पित है l यहाँ कुछ और भी छोटे-2 मंदिर है l श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर और श्री चन्द्रगुप्त मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर है, यह मंदिर 10 वीं 11 वीं शताब्दी में बने थे l लक्ष्मी नारायण की मूर्ति संगमरमर द्वारा निर्मित है l जबकि गौरीशंकर की प्रतिमा कांस्य धातु की है l यह प्रितामाएं 10 वीं 11 वीं शताब्दी की ही बनी हुई है l यह मंदिर चम्बा के संस्थापक राजा शैल वर्मा द्वारा निर्मित करवाए गए थे l उसके बाद 16 वीं शताब्दी में राजा प्रताप सिंह वर्मा द्वारा इन मंदिरों का पुनरुत्थान किया गया l जिसकी स्पष्ट छाप आज भी देखने को मिलती है l यहाँ जो सबसे नया मंदिर है, वह है श्री राधा कृष्ण जी का l जिसका निर्माण राजा जीत सिंह की विधवा पत्नी रानी शारदा देवी ने बाद के वर्षों में करवाया था l इन मदिरों के शिखर पर छतरियां बनी हुई है, जो मंदिर को बर्फ व् बारिश से सुरक्षा प्रदान करती है l
जब हम लोग मंदिर से निकल रहे थे, तो बातों ही बातों में खजियार का जिक्र चल पड़ा l मैंने कहा चलो आप सबको अब खजियार भी घुमा लाता हूँ l शाम के 5.00 बजे हमने चम्बा से खजियार के लिए प्रस्थान कर दिया l सिर्फ आधे घन्टे बाद हम खजियार में थे l सिर्फ चार फोटो ली, 50 रु ग्रीन टेक्स और 50 रु पार्किंग फीस देकर, 15 मिनट के खजियार दर्शन की कीमत चुकाई l अब खजियार इतना खुबसूरत नहीं रह गया है l इसकी जंगली खूबसूरती को कंक्रीट के जंगलों व व्यवसायीकरण ने खत्म कर दिया है l यहाँ अब वो शांति और सफाई नहीं है, जैसी 1995 में देखी थी l तब हम दो मित्र थे और पूरा दिन भी कम लगा था, इसकी खूबसूरती समेटने में l मगर आज 15 मिनट में ही दिल भर गया l शाम के 6.00 बजे हमने खजियार को अलविदा कह दिया, और चंबा जोत वाले रास्ते पर गाड़ी दौड़ा दी वापिसी के लिए l इसी रास्ते से होते हुए हम मणिमहेश गए थे l आज हमारा इरादा कांगड़ा में रुकने का था, मगर यह सड़क टिल्लू से सिहुंता तक काफी खराब थी, इसका अनुभव दो दिन पहले हो ही चूका था l टिल्लू पहुँच कर हमने गाड़ी नूरपुर वाली सड़क पर घुमा दी l बेशक यहाँ से होते हुए कांगड़ा तक की दुरी 28 km. अधिक थी, मगर सड़क बहुत बढ़िया थी l
रास्ते में नूरपुर के माईल स्टोन देख कर ध्यान आया, मेरे मित्र प्रदीप मेहता भी आजकल नूरपुर में ही LIC में प्रबंधक थे l बस फिर क्या था फोन घुमाया, और बम फोड़ दिया, भाई हम लोग एक घन्टे में पहुँच रहे हैं, किसी अच्छे होटल में दो कमरे बुक कर दो l प्रदीप जी ने कुछ देर बाद फोन कर के बताया कि आप लोग नूरपुर में Hotel The Hight पहुँचो, कमरे बुक हो चुके हैं, मैं भी वहीँ पहुँच रहा हूँ l
9.00 बजे हम जब होटल पहुंचे तो वहां का स्टाफ हमारा इन्तजार कर रहा था l स्टाफ ने हमे एक सुइट खोल दिया l सबसे पहले तो हम सभी ने खूब गर्म पानी से स्नान किया, और दो दिन से पहने हुए यात्रा के कपड़े बदले l मैं सबसे बाद में नहा कर निकला तभी प्रदीप जी का फोन आया, कि वह अपनी धर्मपत्नी सहित होटल पहुँच चुके हैं, और रेस्टोरेंट में हमारा इन्तजार कर रहे हैं l कुछ ही देर में हम सभी आमने – सामने थे l मेल मुलाकात व् परिचय हुआ तब तक खाना मेज पर लगना शुरू हो गया था l हमारे आने से पहले ही प्रदीप जी ने खाने का आर्डर कर दिया था l खाना खाते-2 गपशप भी चलती रही, मगर थकान के कारण अधिक देर तक बैठना संभव नहीं लग रहा था l शायद एक से डेढ़ घंटा बैठ कर हमने माफ़ी मांग ली, और सोने के लिए कमरे में चले आए l नींद कब आई पता ही नहीं चला l आज कोई अलार्म भी नहीं लगाया गया l
राख:(जगह का नाम)के नजदीक छोटा बिजली सयंत्र
चम्बा के चौगान से
बलिदान स्थल
प्रवेश द्वार: लक्ष्मी नारायण मंदिर
मंदिर समूह: लक्ष्मी नारायण मंदिर
त्रिंब्केश्वर
चम्बा की चप्पल
नूरपुर: बढ़िया होटल (Hotel the Heights)
COMMENTS