Manimahesh Yatra-3 “मणिमहेश यात्रा Part – 3” हडसर से गौरी कुण्ड



Manimahesh Yatra-3 “मणिमहेश यात्रा Part – 3”



26 – 08 – 2013
हडसर से गौरी कुण्ड :  सुबह 4.00 बजे अलार्म की आवाज सुन कर सभी एकदम उठ गए l   फिर भी सफ़र शुरू करने में आधा घंटा खर्च हो ही गया l  जबकि कपड़े तो रात में ही बदल लिए थे l  जहाँ हम ठहरे थे वहां बिजली नहीं थी l  अँधेरे में ही जूते और बैग आदि ढूंढने पड़े l  बाहर बिल्कुल अँधेरा था l   जब हम मणिमहेश यात्रा के प्रवेश द्वार पर पहुंचे तो, वहां पुलिस वाले अपनी ड्यूटी पर तैनात थे l   हमने वहां रखे रजिस्टर में अपना नाम पता दर्ज किया l  वहीँ पर हमे पता चला कि अगले 4 km. तक रास्ते में बिजली की रौशनी है l   बिजली का प्रबंध किसने और कैसे किया यह आश्चर्यजनक जानकारी भी हमे मिली l  यह कार्य दो संस्थाओं ने मिल कर अंजाम दिया, जिसमे एक है, कुल्लू की देव पशाकोट घराटी सोसायटी (मणिकर्ण) और दूसरी काँगड़ा की मणिमहेश लंगर सेवा दल (ज्वाली) l   इन दो संस्थाओं ने अपने प्रयासों से पांच लाख रु खर्च कर पांच किलो वाट बिजली पैदा कर हडसर से दोनाला तक के चार km. रास्ते को रौशन कर, उन यात्रियों को सुविधा प्रदान की है, जो सुबह बहुत जल्दी यात्रा शुरू करते हैं, या वापिसी में आते हुए जिन्हें अँधेरा हो जाता है l   इन दोने संस्थाओं का प्रयास है, कि अगर सरकार या प्रशासन कुछ सहयता करे तो गौरी कुण्ड तक के 13 km. रास्ते को रौशन किया जा सकता है l   इस परियोजना को मूर्तरूप देने में कुल्लू के इंजीनियर मणि चंद वर्मा व ज्वाली के रणजीत सिंह का विशेष योगदान रहा है l  हड़सर से करीब दो किलोमीटर दूर गुईनाला में एक चेकडैम बनाकर करीब 18 मीटर की ऊंचाई से पानी टरबाइनों पर फेंक कर बिजली का उत्पादन किया गया है ।  पानी से 5 किलोवाट बिजली का उत्पादन करने के लिए हम दिल से इन संस्थाओं को साधुवाद देते हैं l
                                अभी हम इस विषय में बात करते हुए आगे बढ़ ही रहे थे, कि वातावरण में भोर की हल्की रौशनी दिन के आगाज का आभास देने लग गई थी l  जैसे ही आँखे कुछ दूर तक देखने अभ्यस्त हुई, तो मुझे कुछ धुंधला सा ही नजर आ रहा था l  जब इस तरफ गौर किया तो पता चला मैं अपना चश्मा वहीँ शेल्फ पर भूल आया हूँ, जहाँ हम रात को सोए थे l   अब तक हम 2 km. रास्ता तय कर चुके थे l  यहाँ पर मेरी जीवन संगिनी मधु ने एक बार फिर मुझे इस मुश्किल से उबारा l  उसने वापिस जा कर चश्मा लाने के लिए कदम बढ़ा दिए l  वह मुझे किसी भी परेशानी में नहीं देख सकती l   उसकी कोशिश रहती है, मेरी हर बला वह अपने सर ले ले l मुझे ये तो नहीं पता कि हम दोनों में कितना प्यार है, मगर हाँ हम एक दुसरे को परेशानी में नहीं देख सकते l  जब तक मधु चश्मा लेकर वापिस नहीं आ गई तब तक हम वहीँ बैठे रहे l  इस प्रकार मधु को 4 km. अतिरिक्त यात्रा करनी पड़ गई l  सुबह के 6.00 बजे जब हम गुईनाला पहुंचे तो ऊपर पहाड़ की चोटियों पर धुप नजर आने लग गई थी l  यहाँ पर तीन-चार लंगर भी चल रहे थे, व् शौचालय का भी इंतजाम था l  हम भी fresh हुए, ब्रश करके हाथ मुहँ धो कर एक भंडारे में चाय का प्रसाद ग्रहण किया, और मणिमहेश जाने वाले रास्ते पर कदम बढ़ा दिए l   अभी तक रास्ता ठीक-ठीक ही था, मगर अब तिखी चढ़ाई शुरू हो गई थी l  यहीं मुझे ध्यान आया कि गौतम जी भी यहीं मणिमहेश के रास्ते में पिछले 20 वर्षों से भंडारा लगाते हैं l  ये वही गौतम जी हैं जो हमे श्रीखंड महादेव की यात्रा के दौरान थाचडू में मिले थे l  एक भंडारे वाले से पूछा तो उसने बताया कि गौतम जी दोनाला में मिलेंगे l  यहाँ मैं बताना चाहूँगा कि गौतम जी सांप के काटे का इलाज फोन पर ही करते हैं l  और उनका दावा है, कि अगर वाकई में इंसान का वक्त पूरा न हो गया हो तो शर्तिया तौर पर ठीक हो जाता है l  ईलाज का तरीका कुछ इस प्रकार है कि पीड़ित व्यक्ति के कान में फोन लगा कर दूसरी तरफ से गौतम जी कुछ मन्त्र पढ़ते हैं, और सांप के जहर का असर खत्म होना शुरू हो जाता है l  यह किसी चमत्कार से कम नहीं है l
जब 8.00 बजे हम दोनाला पहुंचे तो, देखा गौतम जी रास्ता रोक कर खड़े हैं, और लोगों से आग्रह कर रहे हैं, कि सब लोग नाश्ता कर के ही आगे जांए l   हमें देखते ही वह पहचान गए, उन्होंने आदर सहित हमें अन्दर बैठाया, व् कुशल क्षेम का आदान-प्रदान हुआ l  अभी कुछ खाने का मूड नहीं था, फिर भी गौतम जी ने दो-दो पूरी भाजी का नाश्ता करवा ही दिया l  नाश्ते के साथ-2 बातें भी चलती रही l   वह मुझ से ऐसे ही वह पूछ बैठे, भोलेनाथ के कैलाश पर क्या इच्छा लेकर आए हो l   मैं और मधु एक साथ बोल पड़े, बस दर्शन की ही इच्छा है, बाकि सब तो भगवान् ने इतना दिया है, जितनी हमारी औकात नहीं थी l  संक्षिप्त वार्तालाप के बाद कल मिलने का वादा करके हम अपनी यात्रा पर अग्रसर हो गए l
                          इससे आगे रास्ता बहुत कठिन नहीं था, तो हमारी चाल भी कुछ तेज थी l   सुबह के  9.30 बजे हम लोग धन्छो नामक गाँव में प्रवेश कर गए l  यह हडसर से 6 km. की दुरी पर स्थित है l  यहाँ स्थानीय निवासियों ने अपने तौर पर, घरों में या तम्बू में लोगों के ठहरने व् खाने का इंतजाम किया हुआ है l  यहाँ पर 40 रु में खाना और 100 रु में बिस्तर मिल जाता है l   जब हम गाँव की सीमा पार कर गए तो देखा, आगे तो टेंट और तम्बुओं का पूरा शहर ही बसा हुआ है l  बीसिओं भंडारे यात्रिओं की सेवा में तन मन धन से कार्य कर रहे हैं l  यहाँ पर इस समय काफी भीड़ भी थी l   चूँकि अब नाश्ते का समय हो रहा था, मैंने भी तीन पुरियों का नाश्ता करने से पहले अपनी शुगर की दवाई गटक ली l   यहीं हमे एक दिव्यांग भी मिला, जिसकी दोनों टाँगे पोलियो ग्रस्त थी, मगर हिम्मत नहीं l   वह धुल भरे रास्ते में घिसट-2 के चल रहा था l  ऐसा ही एक भक्त हमे श्रीखण्ड महादेव यात्रा के दौरान भी मिला था, जिसकी दोनों टाँगे घुटनों से ऊपर से कटी हुई थी l
                               एक बात जो सुबह से ही हमे कुछ अजीब सी लग रही थी, वह थी भीख मांगते बच्चे व् औरतें, जो शक्ल-सूरत से प्रवासी नजर आ रहे थे l   जब हमने जांच-पड़ताल की तो पता चला, कि ये अधिकतर लोग मध्यप्रदेश के इंदौर के हैं, कुछ कर्नाटका के भी हैं l  ये लोग यहाँ तम्बू लगा कर माला,कंठी, अंगूठी और रंग बिरंगे पत्थर आदि बेच रहे थे l  कुछ तो जंगलों से जड़ी बुटी तोड़ कर भी बेचते देखे जा सकते हैं l  अधिकतर पुरुष दुकानदारी करते हैं, और महिलाएं व् बच्चे बाहर रास्तों पर भीख मांगते हैं l   इनमे से कुछ लोग तो कई दशकों से यहाँ आ रहे हैं l   मैंने कुछ लोगों से बात कि तो उन्होंने बताया कि वह अन्य ऐसी और जगहों पर भी जाते रहते हैं l  यात्रा के दौरान खासकर इनके मजे रहते हैं l  जगह-2 भंडारे लगे होने के कारण इन्हें पेट भरने की चिंता नहीं रहती l   यानी कमाई चोखी खर्चा कोनी l
                                यहाँ से एक डेढ़ km. आगे जा कर एक हम उस झरने पर पहुंचे, जहाँ भस्मासुर ने भोलेनाथ को प्रसन्न करके वरदान पाया था, कि मैं जिसके सिर पर भी हाथ रख दूँ, वह भस्म हो जाए l  बाद में भस्मासुर शिवजी के ऊपर ही अपने वरदान को अजमाने चल पड़ा था l   इसी भस्मासुर से बचने के लिए शिव जी ने एक विशाल झरने के पीछे पनाह ली थी l  इसी झरने के पीछे छुप कर शिवजी ने हरी नारायण विष्णु से, इस मुसीबत से छुटकारा पाने की प्रार्थना की थी l  यहाँ से थोडा आगे जाने पर एक समतल स्थान है l  अब यहाँ से मणिमहेश तक जाने के दो रास्ते हैं, एक सुन्दरासी होते हुए, जो थोडा लम्बा व् कम चढ़ाई वाला है, दूसरा भैरों घाटी या बन्दर घाटी, जो छोटा तो है, मगर तीखी चढ़ाई वाला है l   पहले यही एक मात्र रास्ता था l   मगर कुछ वर्षों पहले नये वा आसान रास्ते का निर्माण सुन्दरासी होते हुए कर दिया गया है l  कुछ लोग एक और रास्ते का भी वर्णन करते हैं l  जो रावण घाटी से होता हुआ जाता है, मगर यह कहाँ है इसकी जानकारी न मिल सकी l
                                                   हमने आगे की यात्रा के लिए जो रास्ता चुना वह बन्दर घाटी वाला रास्ता था l मगर इस रास्ते में कहीं भी पानी नहीं है, न कोई भंडारा, न ही कोई दुकान l  पूरा रास्ता सुनसान है l   जबकि सुन्दरासी वाले रास्ते पर जगह-2 भंडारे व् काफी सारी दुकाने भी हैं l  असल में भंडारे वहीं लगते हैं, जहाँ भरपूर मात्रा में पानी हो l  हमने पानी की कुछ बोतलें यहीं पर भर ली, और चढाई शुरू कर दी l  जैसे-2 हम ऊपर की तरफ चढ़ते जा रहे थे, पीछे धन्छो की ओर सुंदर नजारा दिख रहा था l  यहाँ से सुन्दरासी वाला रास्ता भी पूरा नजर आता है l  अधिकतर लोग उसी रास्ते पर नजर आ रहे थे, जबकि हमारी ओर वाले पर कभी-कभार ही कोई दिखता था l  चलते-2 दोपहर के दो बज गए, मगर गौरी कुण्ड अभी भी दूर दिखाई दे रहा था l  एक घाटी पार करते तो लगता बस अब पास ही है, मगर तब दूसरी घाटी शुरू हो जाती, फिर एक और, एक और, बस यह सिलसिला चलता ही रहता है l  जो लोग पहाड़ों में यात्रा कर चुके हैं, वह इस अनुभव से अच्छी तरह वाकिफ होंगे l  लगातार चलते-2 अब थकान होना शुरू हो गई थी, भूख भी अपना असर दिखा रही थी l  पंडित जी थोड़ी-2 देर में अपने बैग से बादाम, काजू, दाख निकाल कर बांटते जा रहे थे l  मगर उससे भी भूख शांत नहीं हो रही थी l खैर मैंने तो सुबह तीन पुरियां खा ली थी, मगर बाकि तीनों ने कुछ नहीं खाया था l  जबकि सबसे ज्यादा लटक-2 कर भी मैं ही चल रहा था l  इधर पंडिताईन जी भी काफी थकी हुई थी, क्योंकि कल शाम से ही उनके दांत में दर्द हो रहा था, और उन्होंने तब से खाया भी कुछ नहीं था,  सुबह बस एक छोटी बोतल माज़ा की पी थी l  खैर लटकते-झटकते 2.15 बजे हम गौरी कुण्ड से आगे जहाँ हैलीपैड बना हुआ है, वहां पहुँच ही गए l   गौरी कुण्ड लगभग 1 km. पीछे सुन्दरासी वाले रास्ते पर स्थित है l  यहाँ पहुंचते ही सबसे पहले हमने एक भंडारे में खाना खाया, व् कुछ देर आराम किया l  यहीं पर दाहिने हाथ की तरफ एक हैलीपैड बना हुआ है l  जब हम खाना खा रहे थे तो एक हेलिकॉप्टर ने लैंड किया, और कुछ ही देर में उड़ भी गया l  अब थकान इतनी ज्यादा हो चुकी थी, कि आगे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी l   मगर मधु और पंडित जी का आग्रह था, कि बेशक 2 घन्टे आराम कर लो मगर दर्शन आज ही करने है l इनकी बात माननी ही पड़ी,  बहुत देर आराम करने के बाद 4.00 बजे हमने आखिर प्रस्थान कर ही दिया l


                                                 इस फोटो को खींचते हुए चश्मा याद आया


                                                               गुईनाला: सुबह के उजाले में


                                                           अभी तो यात्रा शुरू हुई है

                                     ऐसा क्यों? मधु के पीछे एक भिण्ड पड़ गया (मधुमखी से बड़े वाला)


                                                  कैलाश पर्वत पर सूर्य की प्रथम किरणें


                                                         कैमरे को देख शर्माता मासूम


                                    तोश का गोठ: (जगह का नाम) आराम के कुछ पल



                                     बच्चे को पीठ पर उठाए नंगे पैर यात्रा करती महिला


                                                               भोलेनाथ का साक्षात् दर्शन


                                                                           धन्छो


                                                    मधु: कुछ ख़ास शूट हो रहा है


                                                    हिम्मत के आगे हिमालय क्या चीज है


                                                    प्रवासी लोग जड़ी-बूटी बेचते हुए


                                          यहाँ से बाँई ओर सुन्दरासी व् दांई ओर बन्दर घाटी वाला रास्ता


                                             फोटो के लिएपोज (शुक्र है अब भस्मासुर भस्म हो चूका है)  


                                                    पण्डित जी अपनी पत्नी के साथ


                                                                      हम दोनों


                                                                              गौरीकुंड












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