Manimahesh Yatra -1 “मणिमहेश यात्रा Part -1”
मणिमहेश परिचय व परिस्थिति : दुनिया में पांच कैलाश स्थित हैं, जिन्हें महादेव शिव की तपस्थली के साथ-2 उनके निवास स्थान के रूप में भी जाना जाता है l इसी हिमालय पर्वत की पीर-पंजाल श्रृंखला में स्थित सबसे आसान यात्रा और सबसे कम ऊँचाई पर स्थित है, मणिमहेशवर l जिसे अक्सर मणिमहेश ही कहा जाता है l यहाँ पर एक पवित्र झील है, इसी झील के दर्शन, स्नान व् परिक्रमा को ही यात्रा की सम्पूर्णता माना जाता है l यह झील समुद्र तल से 13,500 feet की ऊँचाई पर स्थित है l झील के सामने 18,560 feet (अनुमानित) ऊँचा हिमालय है l सुबह के समय इसी पर्वत के परिपेक्ष्य से सूर्य की एक किरण मणि की मानिंद कुछ ही क्षणों के लिए कौंधती है, और इस पवित्र झील में समा जाती है l मणिमहेश कैलाश को मैंने अनुमानित इस लिए लिखा, कि इसे प्रामाणिक तौर पर कोई माप नहीं सका है l क्योंकि आज तक इस पर कोई चढ़ ही नहीं पाया l हिमालय पर्वत की यह चोटी आज तक अजेय है l इस पर चढाई की कोशिशे तो बहुत हुई, मगर सब नाकाम l कई लोगों ने इस प्रयास में अपनी जान तक भी गवां दी l स्थानीय मान्यताओं के अनुसार जिसने भी हिमालय की इस चोटी पर चढ़ने की कोशिश की वह पत्थर का हो गया l वैज्ञानिक आधार पर देखा जाए यह पर्वत बिलकुल सपाट खड़ा है, और इसके पत्थर भरभरा कर टूटते रहते हैं l न तो इन चट्टानों पर पैर टिकता है, और न ही हाथों की पकड़ जमती है l पर्वतारोही चढ़ाई करने के लिए जो कील गाड़ते हैं ,वह भी पकड़ नहीं बना पाती l यही कारण है कि बहुत बार कोशिश हुई मगर नुकसान के सिवा कुछ हासिल न हो सका l सन 1968 में जापान की कुछ पर्वतारोही महिलाओं ने भी कोशिश की थी, जिसकी अगुवाई भारत की नंदिनी पटेल कर रही थी l मगर अचनक ही भूस्खलन शुरू हो गया, कई लोग मारे गए और बाकि बड़ी मुश्किल से अपने प्राण बचा सके l इससे पहले 1965 में भी इटली का एक दल असफल कोशिश कर चूका है l इसी प्रकार सन 2000 में भी तीन पर्वतारोहीओं ने इस प्रयास में अपनी जान गवां दी l उसके बाद अभी तक किसी ने हिम्मत नहीं दिखाई lमणिमहेश यात्रा का प्रारंभ : प्रचलित आख्यान के अनुसार 10 वीं सदी के प्रारम्भ में चम्बा रियासत के राजा साहिल वर्मा भरमौर आए थे l जहाँ उनकी मुलाकात योगी चरपट नाथ सहित 84 योगियों से हुई l योगी चरपट नाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया, क्योंकि राजा के कोई पुत्र नहीं था l राजा शैल वर्मा के एक बेटी थी चम्पा l उसी के नाम पर चम्पा नगरी को बसाया गया, जो आज चम्बा के नाम से मशहूर है l महात्माओं के आशीर्वाद से, पुत्र के जन्म के पश्चात् राजा साहिल वर्मा ने इन योगियों का आभार जताने के लिए यहाँ 84 मंदिरों का निर्माण करवाया l उसके पश्चात योगी चरपट नाथ ने ही राजा साहिल वर्मा को मणिमहेश कैलाश की गोद में स्थित पवित्र झील में स्नान करने की सलाह दी l इनके साथ - 2 बाकि भी बहुत से लोग इस यात्रा का हिस्सा थे l इनकी देखा-देखी लोगों का यहाँ आना-जाना शुरू होने लगा, और यह स्थान धार्मिक आस्था का पर्याय बनता चला गया l राजा साहिल वर्मा भरमौर में योगीओं के आशीर्वाद के बाद ही मणिमहेश गए थे l अब भी उसी कर्म में यात्रा की जाती है l सबसे पहले भरमौर के ब्राह्मणी मंदिर में शीश नवाया जाता है, उसके पश्चात् मणिमहेश की यात्रा शुरू की जाती है l
मणिमहेश कैसे पहुंचे : वायु मार्ग द्वारा जाने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है गगल l (कांगड़ा) वहां से बस या टेक्सी द्वारा चम्बा और फिर हडसर l
ट्रेन द्वारा जाने के लिए सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन है पठानकोट l वहां से बस या टेक्सी द्वारा चम्बा और फिर हडसर l
सड़क मार्ग द्वारा हडसर की दुरी विभिन्न स्थानों से इस प्रकार है l
चम्बा से 71 km.
पठानकोट से 191 km.
दिल्ली से 668 km.
शिमला से 413 km.
कसौली से 429 km.
मणिमहेश यात्रा का आयोजन : अधिकारिक तौर पर यात्रा का आयोजन श्री कृष्णा जन्माष्टमी से राधा अष्टमी तक होता है l इस दौरान मेले जैसा आभास होता है l इस मेले के लिए भरमौर से मुख्य पुजारी जन्माष्टमी की सुबह डल लेकर झील पर पहुँचता है, तथा पूजा अर्चना के बाद यात्रा व् मेले का शुभारम्भ माना जाता है l स्थानीय लोगो के साथ-2 पूरा प्रशासन भी लोगों की सुविधा का ध्यान रखता है l भरमौर से पवित्र झील तक श्रद्धालु लोग मुफ्त भंडारे का आयोजन भी करते है l
मणिमहेश यात्रा के कुछ प्रमुख पड़ाव : चम्बा से भरमौर – हडसर सड़क मार्ग l तत्पश्चात पैदल l सबसे पहला पड़ाव टप्पा - गुईनाला (2 km.) डिब्बरी, तोश का गोठ, यम कुंड, खोड़ का गोठ, धन्छो (6 km.) बन्दर घाटी, जमाडू, घराट, सुन्दरासी, भैरों घाटी, गौरी कुंड, शिव चौगान और फिर मणिमहेश की पवित्र झील (14 km.) नन्दी घाटी और कमल कुण्ड भी दो स्थान है, जो मणिमहेश झील थोडा दुरी पर स्थित है l
यात्रा सलाह : चूँकि यात्रा का आयोजन अक्सर बरसात के दिनों में होता है, इस लिए रेनकोट व् छतरी अवश्य साथ रखें l इसके अलावा आवश्यक दवाई, टॉर्च, गर्म कपड़े, पानी की बोतल, खाने का कुछ सामान जो गर्मी की वजह से खराब होने वाला न हो l और सबसे जरूरी, जब आप ग्रुप में यात्रा कर रहे हों तो, आपने किसी भी साथी को अलग न होने दें और न ही खुद को अकेला करें l
बाथू पुल : काँगड़ा
टिल्लू : तीन रास्ते: एक शाहपुर,दूसरा नूरपुर, तीसरा चम्बा जोत
झुला पुल: चम्बा से आगे
प्रथम दर्शन : जो रात की वजह से हो न सके
दोनाला : कैलाश पर्वत के प्रथम दर्शन
धन्छो : भोलेनाथ के साक्षात् दर्शन
सुन्दरासी वाला रास्ता
शिव झरना के सामने: हम दोनों
भंडारा टेंट: ठहरने व् खाने का पूरा इंतजाम
भैरों घाटी : राह इतनी भी आसान नहीं
गौरीकुंड : अन्दर प्रवेश केवल महिलाओं के लिए
भोले के भक्त कम नहीं है
शिव चौगान में हेलिकॉप्टर
मणिमहेश झील
लक्ष्मी नारायण मंदिर : चम्बा
खजियार
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