चम्बाघाट से गुफ़ा तक :
18 जून 2017 को सुबह ही प्री मानसून की बारिश शुरू हो गई l जिस वजह से काम शुरू ही नहीं हो पाया, तो मैं घर पर ही था l अभी सुबह के लगभग 10 बजे थे कि हमारे जीजा श्री रमेशचंद्र जी का फोन आया l बोले, आज करोल का मेला है, बच्चों को लेकर आ जाओ l जून का महीना था l बच्चे पहले से ही छुट्टी में थे l बच्चों कि छुट्टी देख मधु भी छुट्टी में थी l जब मैंने घर में यह खबर दी तो सब सहमत हो गये l भाई के बच्चे भी जाने को सहमत थे l बस हमने तैयारी की, और 12.00 बजे हम अपने घर कसौली से निकल पड़े l लगभग 1.00 बजे हम बहन दीपा के घर चंबाघाट पहुँच गये l जब वहां पहुंचे तो जीजा जी व दोनों भांजे तो तैयार थे, दीपा जाने के मूड में नहीं थी l हमने जबरदस्ती उसे भी चलने के लिए राजी कर लिया l जब तक हमने चाय पानी लिया तब तक वह भी तैयार हो गई l तभी बहुत जोर की बारिश शुरू हो गई l इसी बीच बड़े राजकुंवर ने बताया कि उनका एक दोस्त और चचेरा भाई अर्शदीप भी अपनी बुआ के घर पहुँच रहे हैं l बच्चों की सैटिंग फोन पर ही हो गई थी l करीब आधा घंटा बारिश होने के बाद मौसम एक दम साफ़ हो गया l तब तक सभी इकट्ठे हो चुके थे lऔर इस प्रकार ठीक 2 .00 बजे, हम चार बड़े और 8 बच्चे, चम्बाघाट के बेर पानी गाँव से करोल टिब्बा की यात्रा पर निकल पड़े l जीजा जी व हमारे दोनों भांजे पहले भी जाते रहे हैं l इसलिए उनके घर के बिल्कुल पास से ही उनकी घासनी के बीचों-बीच शार्टकट रास्ते पर निकल पड़े l हालाँकि यह सीधा चढ़ाई वाला रास्ता था l 20 मिनट चलने के बाद हम जराश गाँव में पहुँच गये l जहाँ कुछ लोग खेतों में काम करते भी नजर आ रहे थे l यहाँ टमाटर , शिमला मिर्च , अरबी, अदरक व मूली के खेत ही ज्यादा दिख रहे थे l जबकि मक्की कि फसल बहुत कम नजर आ रही थी l चूँकि हम शार्टकट से गये थे, इसलिए जहाँ हम करोल टिब्बा के मुख्य मार्ग में जा कर मिले, वहां जराश गाँव में पानी का एक टैंक व बाउड़ी बनी हुई थी l यहीं एक छोटा सा शिव मंदिर भी था l यहाँ हमे और भी बहुत से लोग नजर आए, इनमे से कुछ लोग तो वापिस भी आ रहे थे l बहुत से लोग यहाँ पानी पी कर आराम कर रहे थे l हमने भी पहले पानी पिया, फिर भोलेनाथ को प्रणाम कर अपने रास्ते पर अग्रसर हो लिए l ऊपर काफी दूर तक रास्ता खेतों के मध्य से होकर गुजरता है l जीजा जी को जानने वाले बहुत से लोग, जो खेतों में काम रहे थे, उनसे राम सलाम करते हुए, हम गाँव कि सीमा से बाहर पहुँच गये l यहाँ से दो रास्ते हैं l एक सीधा ऊपर की ओर जाता है, जो चोटी पर करोल माता के मंदिर तक चोटी पर पहुँचता है l दूसरा दाहिने हाथ कि तरफ, जो पहले गुफा तक और उसके बाद फिर चोटी तक l वैसे ये जो रास्ता ऊपर जा रहा था, यह ऊपर जा कर तालाब के पास से भी गुफा की ओर जाता है l यह हमने तब जाना जब वापिस आये l अभी हमने दाहिनी ओर वाला रास्ता ही चुना l कुछ दूर जाने पर जब निचे की ओर नजर गई तो वहां NH -22 पर डेढ़ घराट नजर आ रहा था l यहाँ से भी करोल के लिए रास्ता है l यहाँ से कंडाघाट का रेलवे स्टेशन, चायल का काली टिब्बा तक सब कुछ साफ़ नजर आ रहा था l जैसे-2 हम आगे की ओर ऊपर बढ़ रहे थे बान के पेड़ों की ठंडी हवा पसीने को सुखा रही थी l हम अब तक 3.50 km. यात्रा कर एक ऐसी जगह पहुंचे, जो चोटी पर समतल मैदान का अहसास करवा रही थी l इससे आगे सामने की तरफ कंडाघाट नजर आ रहा था l और जिस रास्ते पर हम चल रहे थे, वो सीधा कंडाघाट की तरफ ही जा रहा था l इसी रास्ते के साथ-2, कंडाघाट – करोल सड़क का सर्वे हो रखा है l जब बाँई ओर ध्यान गया तो पेड़ों के मध्य कुछ मंदिर जैसा दिख रहा था l उस तरफ से लोगों के बात करने का भी काफी शोर सुनाई दे रहा था l गाइड के रूप में हमारे साथ जीजा जी व दोनों भांजे थे l उनके इशारे पर हम बाँई ओर कि पगडण्डी पर हो लिए l यहाँ से रास्ता अब निचे कि तरफ हो चला था, जो काफी फिसलन भरा था l सम्भल कर चलने के बावजूद भी कोई न कोई धड़ाम हो ही रहा था l इस जगह पेड़ –पौधे काफी सघन मात्रा में थे l पानी के स्रोत भी नजर आ रहे थे l बारिश का पानी भी ऊपर पहाड़ी से निचे बह रहा था l इसी वजह से फिसलन अधिक थी l शुक्र है यह रास्ता जल्दी ही ख़त्म हो गया l (फिसलने को यहाँ की पहाड़ी भाषा में पशीड़कना कहा जाता है ) निचे एक नाला बह रहा था l यहाँ से सौ कदम की दुरी पर मन्दिर का गुम्बद नजर आ रहा था, जहाँ से मानवीय शोर भी साफ़ सुनाई दे रहा था l जैसे ही हमने मंदिर के प्रांगण प्रवेश किया कुछ जानी पहचानी सूरतें भी मिली l यहीं एक तरफ भंडारा चल रहा था, वहीँ निचे की तरफ एक बड़े कड़ाहे में चावल पक रहे थे l हम जुते उतार कर पहले मन्दिर की तरफ बढे, सबसे पहले बाँई ओर के मंदिर में हनुमान जी के दर्शन हुए, उसके बाद बिलकुल सामने राधा – कृष्ण जी के सामने शीश नवाया l उसके बाद मंदिर के बिलकुल पीछे जब नजर गई तो, यही वह गुफा थी जिसे शिव गुफा भी कहा जाता है l इस गुफा के बारे में बहुत सी किवदंतियां है l कहा जाता है कि कभी इस गुफा में भोलेनाथ ने तपस्या की थी l इसका प्रमाण यह दिया जाता है, कि गुफा में शिव जी के बहुत सारे प्रतिक चिन्ह नजर आते हैं , जैसे शेष नाग, डमरू,जटाएं वहां से टपकता पानी जो गंगा की धारा का प्रतिक है l हो सकता है यह निशान चट्टानों से लगातार रिसते पानी के कारण बने हों l जो भी हो बात तो आस्था की है l कई बार ऐसे प्रमाण मिले हैं, कि इस गुफा का दूसरा सिरा पिंजौर में एक बाउड़ी में खुलता है l जिसे पांडव बाउड़ी के नाम से जाना जाता है l इसके कुछ प्रमाण भी मिले हैं, जैसे कि एक वैज्ञानिक ने करोल की गुफा में रंगीन पानी डाला, तो वह रंगदार पानी पिंजौर की पांडव बाउड़ी में देखा गया l यदाकदा पिंजौर की इस बाउड़ी में बान के पत्ते भी मिलते आये हैं, जो यहाँ से 60 km. दूर करोल में ही पाए जाते हैं l इस गुफा का सम्बन्ध पांडवों के साथ भी जोड़ा जाता है l कहते हैं जब पांडव लाक्षाग्रह से बच कर भागे, तो इसी गुफा से पिंजौर के रास्ते से बीहड़ों में प्रवेश किया था l जब हम गुफा के अन्दर गये तो वहां बहुत अँधेरा था l कुछ दूर तक तो सीढ़ीयां बनी हुई थी, उसके बाद एक लोहे का गेट लगा हुआ था, जिस पर ताला लटका हुआ था l पूछने पर एक स्थानीय आदमी ने बताया, कि आगे बहुत फिसलन है, कोई अनहोनी न हो, इसलिए इस गुफा को बंद कर दिया गया है l ऐसा भी सुनने को मिला, कि कुछ लोगों ने इस गुफा को एक्सप्लोर करने की कोशिश की तो उनके शारीर नीले पड़ गये l जो भी गया वो कुछ दुरी से ही वापिस आ गया l सत्य का प्रमाण नहीं है l हम तो बस सीढ़ियों से ही वापिस आ गये l बाहर आ कर भंडारे में कढ़ी चावल , दाल चावल का प्रसाद ग्रहण किया और करोल टिब्बा की तरफ जाने वाले रास्ते पर चल पड़े l यहीं गुफा के पीछे एक बान का विशाल पेड़ भी देखा, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह 5000 साल पुराना है l
रेलवे कॉलोनी के ऊपर इसी घर से हमारी यात्रा शुरू हुई
ननद-भाभी
जीजा-साला
पानी की बाउड़ी : अब खण्डहर होने के कगार पर
पीछे चम्बाघाट कस्बे का नजारा
जब घिया सूख जाती है तो उसे हम तुम्बड़ी कहते हैं
शिमला मिर्च के खेतों में लाल मिर्च
जराश गाँव से नजर आता बेर गाँव, चम्बाघाट और सोलन
ॐ नम: शिवाय : जराश में
यहाँ से करोल शिखर के लिए दो रास्ते हैं, एक सीधा दूसरा गुफा होते हुए
खण्डहर बताते हैं कभी यहाँ बस्ती थी
बाँए से: यशदीप, अमनदीप, मधु, रमेश जी , शानू, मनदीप , सागर, दीपा, अर्शदीप, प्रिंस संदीप, और रोबिन
जय हनुमान
जय श्री राधे कृष्णा
शिव गुफा या और पांडव गुफा
इस कड़ाहे में (कच्चा सवा मण)चावल बनता है
आगे जानने के लिए भाग -3 पढ़ें
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