करोल गुफा से करोल टिब्बा तक :
जैसे कि मैंने पिछले लेख में बताया, 2.00 बजे हम chmbaghat से चल कर 3.30 बजे करोल गुफा पहुंचे l वहां दर्शन कर भंडारे में खाना खाया और 4.30 बजे करोल की चोटी फतह करने निकल पड़े lकरोल के टिब्बे की चोटी तक जाने के लिए गुफा के पीछे की तरफ से बढ़िया रास्ता बना हुआ है l कहीं पत्थर का तो कई जगह कच्चा रास्ता है, बेशक चढ़ाई सीधी खड़ी है l पुरे रास्ते में बहुत से पेड़ व पेड़ों की शाखाएं टूट कर सुख चुकी थी, इनके टूटने का कारण बर्फबारी होता है l क्योंकि गुफा के बाद ऊपर चोटी की तरफ बर्फ काफी गिरती है l यहाँ इस रास्ते पर ऊपर की तरफ जाने वाले कम ही लोग थे l जबकि निचे आते हुए भी कुछ लोग हमे मिले, जिनमे से अधिकतर स्थानीय लोग थे, जो हमारे जीजा जी को जानते थे l रास्ते में बच्चों के साथ मस्ती करते हुए एक घंटे बाद जब हम ऊपर पहुंचे तो, यहाँ से तीन रास्ते थे l जिनमे से एक तो बाँई ओर निचे जा रहा था, जो जराश गाँव में जाकर मिलता है l एक सीधा बाँई ओर से दाहिनी तरफ जा रहा था, जो छोटी चोटी से बड़ी चोटी को आपस में जोड़ता है l हम पहले दांई तरफ चल दिए, जहाँ सामने एक छोटा सा खुबसुरत मंदिर बना हुआ है l मन्दिर बिल्कुल टॉप पर है इससे ऊँचे बस दो चार बान के पेड़ है, और कुछ नहीं l मन्दिर में प्रवेश करने से पहले दो-तीन कमरे बने हुए हैं, जो लोगों के विश्राम करने के काम आते हैं l इसी में एक रसोईघर भी है, जहाँ अभी-2 चाय बनी थी l हमे देख कर हम लोगों को भी चाय पेश की गई l क्योंकि यह लोग जीजा को जानते थे, तो इन्होने दूर से ही पहचान कर के पहले ही चाय कागज के गिलासों में डाल दी थी l हमने कहा पहले माता के दर्शन कर लें, बाद में चाय पिएंगे l मुख्य मन्दिर, अन्दर से तीन भागों में बंटा हुआ है l मध्य में करोल माता की नई मूर्ति है, (जो सम्भवतया 2014 में स्थापित की गई है क्योंकि 2014 में मन्दिर के इस भवन का नवनिर्माण हुआ है, उससे पहले पुराना मंदिर था, जो 1964 में बना था l ) दाहिनी तरफ वाले कोटर में, माँ काली, पाषाण रूप में विराजती हैं l जबकि मध्य में नई मूर्ति संगमरमर की है l बाँई तरफ वाले कोटर में एक पाषाण शिवलिंग है, जिसकी जलहरी पर काफी अच्छी नक्काशी की गई है l यहाँ काली माता को करोल माता के रूप में पूजा जाता है l
वातावरण में हल्की धुंध थी, फिर भी यहाँ से शिमला और उसके पीछे किन्नौर की बर्फ वाली पहाड़ियां नजर आ रही थी l वहां से फारिग होकर हम उसी रास्ते से वापिस दूसरी चोटी की तरफ आ गये, जो इस चोटी से थोड़ी नीची है l यहाँ से सोलन शहर का बहुत खुबसूरत नजारा दिख रहा था l जहाँ हम खड़े थे उसके बिल्कुल निचे बसाल गाँव और chmbaghat है l यहाँ से दिहूँघाट , बड़ोग और कसौली भी नजर आ रहे थे, मगर धुंध होने के कारण फोटो साफ़ नहीं आये l जब घड़ी की तरफ नजर गई तो घड़ी की सुईयां शाम के 7.00 बजा रही थी l इस चोटी से अब हमें थोड़ा पीछे हटना पड़ा, जहाँ से सीधा उतराई वाला रास्ता जराश होते हुए chmbaghat पहुँचता है l कुछ दूर तक सम्भल कर उतरना पड़ा, क्योंकि रास्ता फिसलन भरा था l रौशनी भी अब कम हो रही थी l क्योंकि कुछ धुंध थी, कुछ घने पेड़ों की छाँव और कुछ शाम का धुंधलका l जिन लोगों ने हमे करोल माता के मंदिर में चाय पिलाई थी, वह लोग भी हमे रास्ते में मिले l अब हम 15 -16 लोग हो गये थे, यह सभी बसाल व बेर गाँव के लोग थे l बातचीत के मध्य इन्होने बताया कि यह लोग पहले गुफा जायेंगे, उसके बाद घर l एक डेढ़ km. चलने के बाद घने पेड़ों के साए कम होते चले गये, और वह लोग भी l बीच में से एक रास्ता गुफा की तरफ जा रहा था, तो वह लोग उस रास्ते पर चले गये, और हम 12 जने निचे की ओर बढ़ते रहे l हम शायद 2 km. आ गए थे, यहाँ कुछ मकान बने हए हैं l साथ ही एक काफी बड़ा जोहड़ और जराश वालों की गौशालाएं भी बनी हुई है l यहीं पर एक पक्का कमरा भी बना हुआ है l जीजा जी बताया कि पहले जो बाबा जी करोल में रहते थे, यह कमरा उनका शीतकालीन निवास था l जब करोल टिब्बा पर बर्फ का साम्राज्य फ़ैल जाता था, तब बाबा जी इस कमरे में आ जाते थे , तथा स्थानीय गाँव वाले उन्हें भोजन आदि दे जाया करते थे l अब वह करोल वाले बाबा नहीं रहे l
जब हम जराश पहुंचे तो हल्का अँधेरा हो चूका था l यहाँ से हम उस रास्ते से नहीं आये, जिस से हम ऊपर गये थे l यहाँ से हमने पक्के वाला रास्ता चुना l इस प्रकार हम 8.30 बजे जीजा जी के घर पर पहुँच गये थे l अब अँधेरा घना हो गया था, हमने बस एक-2 गिलास पानी पिया और कसौली के लिए निकल पड़े l हालाँकि दीपा और जीजा जी ने बहुत जोर लगाया कि हम सब खाना खा कर जांए l यह बहुत ही मजेदार यात्रा थी जो सिर्फ 10 घंटे में ही पूरी कर ली गई l यह किसी भी बड़ी यात्रा से कम रोमांचक नहीं थी l
यात्रा में सबसे छोटा सदस्य : शानू
शानू भी फोटोग्राफर बन गया
मेरे आस-पास सूखी हुई शाखाएं बर्फ का वजन सहन न करने के कारण टूटी हैं
करोल माता के चरणों में
2014 में स्थापित करोल माता की संगमरमर की मूर्ति
माँ का आशीर्वाद बना रहे
करोल माता की पुरानी मूर्ति
शिखरेशवर महादेव
छोटी चोटी की ओर आते हुए
छोटे शिखर पर थोड़ा सा आराम
बाबा जी की शीतकालीन कुटिया
वापिसी
गौधूली में आखिरी फोटो
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