Churdhar Travel-3 चूढ़धार यात्रा भाग-3
जैसा कि आपने पिछले लेख में पढ़ा, हम 6.30 बजे शाम को शिरगुल देवता के प्रांगन में थे l जैसे ही हम थोड़ा निचे उतरे, जहाँ कम्बल इत्यादि का स्टोर था, तभी भीड़ देख कर यह तय हो गया था, कि आज की रात भयंकर परेशानी होने वाली है l जितनी भी ठहरने की जगह थी, सब तरफ ढूंढ के देख लिया, कहीं पैर रखने तक की जगह न थी l जो लोग पहले पंहुच चुके थे, वह सब अपनी-अपनी जगह घेर कर बैठे थे, और किसी भी बाहर से आने वाले को अन्दर घुसने ही नहीं दे रहे थे l बाहर जहाँ दुकाने लगी थी वहां भी खूब टक्करें मार ली, मगर कुछ जुगाड़ न हो सका l ऊपर से ठण्ड भी जानलेवा हो रही थी l भीड़ को देखते हुए हमने एक समझदारी वाला काम किया कि कम्बल ले लिए, और वो भी 30, क्योंकि हम आठ लोग थे l अब ऐसा लग रहा था, कहीं खुले में ही रात गुजारनी पड़ेगी l क्योंकि लोग बरामदे में भी जगह घेरे बैठे थे l ठण्ड इतनी ज्यादा थी, पानी भी जमा हुआ लग रहा था l रात 8.30 बजे तक हमने मंदिर के आस-पास का कोना-कोना छान मारा, मगर हर कोना भीड़ से भरा था l ऐसे ही घूमते-घूमते मैं और जीजा जी सरायं के पीछे की और चले गए, वहां तीन नये कमरों का निर्माण चला हुआ था l कुछ मजदूर और मिस्त्री अभी भी काम कर रहे थे l उनसे बातचीत करते हुए मालुम हुआ कि वह लोग रात के 9.00 बजे तक काम करते हैं, उसके बाद लंगर में खाना खा कर अपने कमरे में सोने चले जाते हैं l हमने उनसे प्रार्थना की कहीं हमारा भी जुगाड़ करा दो l जिसमें उन्होंने असमर्थता जाहिर की lअचानक कुछ देख कर लगा, अब इंतजाम हो जाएगा l मगर इसके बारे में बात किससे करें l मैंने उस मिस्त्री से ही बात की जो प्लास्टर कर रहा था l क्यों न हम इसी कमरे को सरायं बना लें l वह बेचारा सकपका कर बोला, बाबु जी यहाँ आप कैसे रात काटेंगे, दीवारें सारी की सारी गीली है, फर्श पर पानी, और गिला रेत बिखरा पड़ा है l मैंने उसे कहा आप उसकी चिंता मत करें, बस हमे यहाँ रहने की आज्ञा दे दें l अब तक 9.00 बज चुके थे, उस मिस्त्री ने अपना सामान समेटा और कमरा हमारे हवाले कर दिया l अब तक जीजा जी जो चुप थे, बोले भाई जी यहाँ रहेंगे कैसे, हर तरफ सीलन है l मैंने उस कोने की ओर इशारा किया, जहाँ 5-6 पल्ले लकड़ी के दरवाजे बने हुए रखे थे l देवदार की लकड़ी से बने हुए यह दरवाजे इन्ही कमरों में लगने थे l
बस अब क्या था मैंने और जीजा ने इधर-उधर से कुछ कंक्रीट के ब्लाक निचे गिले फर्श पर बिछाए, उसके ऊपर दरवाजे के पल्ले एक line में बिछा दिए l बस अब लकड़ी का तखत तैयार था l पांच दरवाजे हमने निचे बिछाए, और एक खुली चौखट पर खड़ा कर दिया, ताकि हवा अन्दर न आए l अब मैंने जीजा जी को कहा, आप बच्चों और मधु जी को ढूंढ कर लाओ l मैं यहाँ कब्जा कर के रखता हूँ, क्योंकि कम्बल भी मधु और बच्चो के पास ही थे l एक बात और बता दूँ यहाँ बिजली नहीं थी, मिस्त्री और मजदूर के जाते ही बिजली भी बंद कर दी गई थी l यह सारा काम मोबाइल की रौशनी में सम्पन हुआ l जैसे ही जीजा जी बाहर गए, मैंने वहां अँधेरा कर दिया l करीब 20 मिनट के बाद जीजा जी बच्चो और कम्बलों के ढेर के साथ वापिस आ गए l मधु के बारे में उन्हें कुछ पता नहीं चला l Prince अपनी मम्मी को ढूंढने चला गया l हम सभी बिस्तर लगाने में लग गए, जब तक बिस्तर लगते प्रिंस भी मधु जी को लेकर वहीँ आ गया l बिस्तर तो तैयार हो गए, जब दीवारों पर नजर गई, तो वहां दो खिड़कियाँ भी थी, जहाँ से बर्फानी हवा अंदर प्रवेश कर रही थी l एक बार फिर सभी काम पर लग गए, कोई टिन की चद्दर का टुकड़ा, तो कोई गता या सीमेंट की खाली बोरी ढूंढ कर लाया, हवा व् ठण्ड अन्दर आने के सभी स्रोत बंद कर दिए गए , दस मिनट में यथासम्भव कमरा रहने लायक हो गया था l तभी वह मिस्त्री और मजदूर हमे देखने आए कि क्या व्यवस्था हुई l हमारी कारगुजारी देख कर दोनों खुश हो गए और बोले ये तो बहुत बढ़िया हो गया, अब खाना खा लो, खाना शुरू हो गया है l इनसे ही पता चला कि आज यहाँ लगभग तीन हजार लोग हो सकते हैं, और यह इस सीजन का पहला इतना बड़ा रश है l मैंने सब को खाना खाने भेज दिया l मुझे छोड़ कर सभी खाना खाने चले गए l थोड़ी ही देर में मधु मेरे लिए दुकान से दाल-चावल ले कर दे गई, और कह कर गई कि उन लोगों को समय लगेगा l क्योंकि वहां भीड़ बहुत है l तक़रीबन एक घन्टे बाद सभी खाना खा कर लौट आए l मगर लंगर में अभी भी भीड़ थी, इस लिए इन लोगों ने भी बाहर ही खाना खाया l इस प्रकार आज के दिन का समापन हो गया l
लगभग सारी रात खटर-पटर होती रही, लोग ठिकाना ढूंढने आते रहे, जाते रहे l फिर भी हमारी रात बहुत अच्छी तरह कट गई l सुबह 5.00 बजे आँख तो खुल गई, मगर सर्दी के कारण बाहर निकलने की हिम्मत नहीं हुई l हम बाहर तभी निकले जब 6.30 बजे सूर्य देवता के दर्शन हुए l अभी भी चूढ़धार की तलहटी में जहाँ पेड़ पौधे अधिक थे, वहां धुंध की एक परत छाई हुयी थी l हमनें ब्रश तो वहीँ छज्जे पर बोतल में पानी लेकर कर लिया, दुकान पर जाकर चाय भी पी ली, मगर शौचालय में लम्बी-लम्बी लाइन लगी हुई थी l खैर किसी तरह वहां से निवृत हो कर मन्दिर की ओर प्रस्थान किया l मंदिर के प्रांगन में एक बहुत बड़ी (लगभग मंदिर के बराबर ) चट्टान दो भागों में विभक्त खड़ी है l मंदिर का आँगन भी दो लेवल पर है l एक निचे हैं, जहाँ दो पानी की बावड़ी और कुछ छोटा-छोटा निर्माण हो रखा है l जबकि ऊपर का आँगन परिक्रमा के लिए भी इस्तेमाल होता है l आजकल यहाँ मंदिर के बाहरी भवन का निर्माण व सौन्द्रिकरण का काम चल रहा है, जिसका उद्घाटन 14 जून 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र जी ने किया था l अन्दर बाहर कारीगर पुरे जोर शोर से कार्य में व्यस्त थे l यह लोग सुबह 7.00 बजे से रात के 9.00 बजे तक काम करते हैं l क्योंकि सिर्फ छ: -सात महीने ही यहाँ काम हो पाता है l जब बर्फ गिर जाती है, उसके बाद यहाँ बहुत दुश्वारियां हो जाती है l
हम सभी ने शिरगुल महाराज के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लिया, और बाहर आ गए l बाहर बड़ा ही अद्भुत नजारा था l निचे वाले आँगन में लोग जगह-जगह झुण्ड बना कर खड़े थे, या कुछ बैठे हुए भी नजर आ रहे थे l बीच में कुछ लोग ऐसे हिल रहे थे जैसे माता की छाया आने पर लोग एक्शन करते हैं l मैंने किसी बुजर्ग से जब इस बारे में जानकारी चाही तो उन्होंने बताया, यह जो अलग-अलग झुण्ड नजर आ रहे हैं, यह सभी भिन्न-भिन्न गाँव के लोग हैं , जो यह यहाँ अपने-2 गुर के साथ आए हैं ( गुर मतलब स्थानिय देवता का पुजारी ) यह अपने परिवार की सुरक्षा व् सुख-शान्ति के लिए इनसे आशीर्वाद ले रहे हैं l मैंने उनसे दूसरा सवाल किया, यह काम तो यह अपने गाँव में भी अपने देवता के सामने कर सकते हैं l इस के जवाब में उन बुजुर्ग ने बताया कि यह जो गुर लोग होते हैं, यहाँ शिरगुल महाराज के सानिध्य में इनकी शक्ति बढ़ जाती है l हमने भी एक दो जगह झाँकने की कोशिश की, मगर इनकी भाषा और क्रियकलाप समझ नहीं आया l
मंदिर में कुछ और समय गुजार कर हम सभी मंदिर से कुछ निचे की तरफ एक खंडहर नुमा दुकान में आ गए l यहाँ पेट भर कर परांठे खाए l दहीं या मक्खन यहाँ नहीं था, बस चाय और आचार का ही सहारा था l दुकान के आगे से एक रास्ता निचे की ओर, चौपाल के सराहाँ की तरफ जाता है l इस रास्ते पर अधिक आवजाही थी, इसका मतलब यह हुआ कि उपरी हिमाचल के लोग यहाँ ज्यादा थे l इस रास्ते से मंदिर तक पैदल आने की दुरी मात्र छ: किलोमीटर है l
सीलन भरी दीवारों वाला हमारा रेस्ट हाउस
सुबह: रात वाले कमरे का बरामदा
जून महीने की सुबह: कम्पकम्पा देने वाली ठण्ड
लाल छत: शौचालय व् स्नानघर
चूढ़धार: शिरगुल महाराज
मंदिर का प्रांगन
देवदार की लकड़ी पर शानदार नकाशी
गर्भ गृह: शिरगुल महाराज (फोटो के लिए विशेष अनुमति)
मदिर परिसर में पानी की दो बावड़ी (उपेक्षा का शिकार)
हम दोनों
शिरगुल महाराज का गुणगान करती भक्त मण्डली
खण्डहर नुमा दुकान जहाँ शाम और सुबह का खाना खाया
9.30 बजे चूढ़धार के शिखर यानि चूढ़ेश्वर महादेव की ओर चढ़ना शुरू कर दिया l
“चुढ़ेश्वर महादेव के दर्शन अगले लेख में”
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