Churdhar Travel-1 ( चूढ़धार यात्रा भाग-1 )
चूढ़धार ; परिचय तथा परिस्थिति :
यह बात 1970 के दशक की है, जब हम कभी बचपन में गाय चराने के लिए चाबल धार की चोटियों पर जाया करते थे l तब दक्षिण पूर्व की तरफ बहुत दूर एक सबसे ऊँची चोटी नजर आती थी l अक्सर नवम्बर से अप्रैल तक उस ऊँची चोटी पर बर्फ की सफेद चादर हमेशा सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती थी l बड़े-बुजर्गों ने हमारी जिज्ञासा शान्त करते हुए बताया कि यह चूड़ी-चांदनी है l तथा यह सिरमौर में है l उस वक्त यातायात के साधन बहुत सिमित थे l मेरे हिसाब से दूर से दर्शन करने वाले शत-प्रतिशत लोग, चूड़ी-चांदनी के बारे में दूर से ही जानते थे l शायद उन में से वहां गया कोई नहीं था l बहुत बाद के वर्षों में जब हम कभी राजगढ़ (जिला सिरमौर) गए तो, वहाँ पता चला जिसे हम चूड़ी-चांदनी कहते थे, उसे यहाँ चूढ़धार भी कहा जाता है l क्योंकि इस चोटी पर चूढ़ेश्वर देवता का वास है l दरअसल शाया गाँव जन्मे शिरगुलमहाराज ने देवत्व प्राप्त करने के बाद इसे अपना निवास चुना था l स्थानीय लोग शिरगुल देवता को ईश्वर का पर्याय समझते हैं l सिरमौर की सबसे ऊँची धार चूड़ी-चांदनी में, ईश्वर पर्याय देवता शिरगुल के बसने के कारण इस पहाड़ को चूढ़धार, व शिरगुल देवता को चुढ़ेश्वर महाराज के नाम से सम्बोधित किया जाता है lचूड़ी-चांदनी पर्वत हिमालय की बाहरी श्रृंखला के अंतर्गत आता है l समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 11,965 फुट आंकी गई है l चूढ़धार तक जाने के दो रास्ते हैं l मैदानी इलाके व निचले हिमाचल की तरफ से जाने वाले लोग पहले सोलन पहुँचते हैं , वहां से राजगढ़ फिर नौहराधार l नौहराधार तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है l नौहराधार से चूढ़धार का पैदल रास्ता 18 km. है l कुछ लोग इसे 14 km.भी मानते हैं l सोलन से बहुत सी बसें चलती हैं, खुद की गाड़ी व टैक्सी द्वारा भी आराम से जा सकते हैं l दूसरा मार्ग है शिमला से चौपाल, फिर चौपाल- नेरवा मार्ग पर लगभग 5 km. के बाद एक छोटा मार्ग दांई ओर सराहाँ तक जाता है l उसके बाद 6 km. पैदल l सरांह की तरफ से आने वाले लोग अधिकतर अप्पर शिमला के होते हैं l शिरगुल देवता चौपाल और सिरमौर जिला के लोगों के कुल देवता भी हैं l और इन्हें इष्ट देवता की मान्यता दी जाती है l
चूढ़धार से सम्बन्धित कुछ कहानियां :
1. रामायण काल में लक्ष्मण जी को मूर्छा से बचाने के लिए हनुमान जी इसी क्षेत्र से संजीवनी बूटी लेकर गये थे l इस बात को सिद्ध करने के लिए एक उद्धारण यह भी है, कि संजीवनी ढूंढने के लिए जहाँ हनुमान जी खड़े हुए थे l वहां आज भी उनके पद चिन्ह है l उनमे से एक स्थान है, शिमला का जाखू मंदिर, और दूसरा है कसौली का मंकी पॉइंट l इसकी भोगोलिक स्थिति को समझने के लिए मैंने ( A ) शब्द का सहारा लिया है l A की बाँई टांग जाखू है तो बाँई, मंकी पॉइंट l जहाँ ये दोनों मिलते है, वहीं है चूढ़धार l यह अनुमान हो सकता है l सत्य के लिए प्रमाण चाहिए होते हैं l इस पर्वत पर विभिन्न तरह की जडी-बुटीयां पर्याप्त मात्र में पाई जाती है l इनमे से कुछ जिन्दगी प्रदान करती है, और कुछ बहुत जहरीली भी होती है l आज भी अप्रैल महीने में यहाँ जाने को मना किया जाता है l क्योंकि तब यहाँ पेड़-पौधों पर फूल आते हैं, और जड़ी-बूटी भी फूलों से भरी होती हैं l कई बार इनको छूने से या सांस द्वारा अन्दर जाने से आदमी बेहोश भी हो जाता है lइसलिए ध्यान रखें, जब भी यहाँ की यात्रा करें, जाने-अनजाने कोई भी तिनका या जंगली फल फूल न तो छुएं और न ही मुहं में डालें l
2. चूढ़धार नाम पड़ने के पीछे भी एक किवदंती है l कहते हैं, चुरू नाम का एक आदमी अपने पुत्र के साथ इस पहाड़ से गुजर रहा था, तो अचानक एक बहुत भयंकर सांप देख कर वह डर गया l उसने भगवान भोलेनाथ को याद किया l उसकी करुण पुकार सुनकर शिवजी ने अपना चमत्कार दिखाया, जिन चट्टानों के मध्य वह सांप था अचानक वही चट्टानें भरभरा कर गिर पड़ी , और वह सांप उसी में दफ़न हो गया l उसके बाद ही यहाँ मंदिर निर्माण हुआ l और चुरू के नाम पर ही इसका नाम चूढ़धार पड़ा l
3. चूढ़, (RIDGE)(चोटी) को भी कहा जाता है l बैल के ऊँचे कंधे को भी चूढ़ कहा जाता है l धार यानि पहाड़ l मतलब पहाड़ की चोटी l वैसे भी यह यहाँ पर सबसे ऊँचा पहाड़ यही है l
4. एक और कहानी के अनुसार, इस पहाड़ पर एक चुहूडू नामक राक्षस रहता था l उसके आतंक से लोग उस तरफ जाने से डरते थे l चूँकि वह आबादी से दूर ऊँची धार (चोटी) पर रहता था l इसलिए लोग उसके निवास स्थान को उसके नाम के आधार पर चूढ़धार कहते थे l वह राक्षस स्थानीय लोगों के पशुओं का शिकार करता, तथा लोगों को भी तंग करता था l इस बात की जानकारी जब शिरगुल महाराज को हुई, तो उन्होंने अपने भाई बिजट देव के साथ मिल कर उसे सबक सिखाने की ठानी l और उस राक्षस का खात्मा कर दिया l
शिरगुल महाराज का इतिहास :
शिरगुल महाराज का जन्म शाया गाँव में हुआ था l उनके पिता उस इलाके के राजा हुआ करते थे l जिनका नाम था, भुकडू राणा, और माता का नाम दुदमाँ रानी था l यह बात वहां से शरू होती है, जब भुकडू निसंतान थे l मानवीय स्वभाव के अनुसार वह भी सन्तान न होने के कारण दुखी व् परेशान रहते थे l यह बात लगभग 800 साल पहले की है, तब भारत में मुगलों और तुर्कों ने ग़दर मचाया हुआ था l जो लोग संगठित थे, व् लड़ सकते थे, वह उन लुटेरों से लड़ रहे थे l जो कमजोर और असहाय थे, वह धर्म परिवर्तन कर अपनी जान बचाने में लगे थे l जो लोग संगठित नहीं थे, मगर उनके पास संसाधन थे, वह भाग कर जंगलों और पहाड़ों में शरण ले रहे थे l इसी कारण कुछ कश्मीरी पंडित भी कश्मीर से भाग कर चानणा नामक गाँव में बसे हुए थे l ( आज भी चानणा गाँव में बसे कश्मीरी पंडितों को पाबुच के नाम से जाना जाता है )शिरगुल मंदिर की व्यवस्थाओं , निर्माण , अनुष्ठान और अन्य धार्मिक कार्यों के लिए आज भी इन्ही पाबुच पंडितों की सहमति की आवश्यक होती है l कभी एक गाँव से शुरू हुआ पाबुच पंडितों का अब बहुत विस्तार हो चुका है l चौपाल व् सिरमौर में इनके 10-12 गाँव बस चुके हैं l मंदिर से सम्बन्धित सभी कार्य परम्परागत तरीके से वही लोग करते है, जिनके पुरखों को यह काम सदियों पहले सौंपा गया था l इन जिम्मेदारीयों के आबंटन में कुछ न कुछ रहस्य छिपा होता था l मगर अब यह इतिहास एक परम्परा का रूप धारण कर चुका है l मंदिर से सम्बन्धित सभी कार्य शिरगुल देवता द्वारा ही प्रेषित होते हैं, जिन्हें एक पुजारी ( जिसे स्थानिय भाषा में “घणीता” कहा जाता है ) के माध्यम से देवता द्वारा प्रेरित किया जाता है l
शायद बहुत कम लोगों को यह जानकारी हो, हिमाचल प्रदेश में हम जितने भी लोग रहते हैं, सब के सब विस्थापित लोग हैं l हिमाचल की असली आबादी तो किन्नौर और लदाख के लोग हैं l विस्थापित, और असली हिमाचली, लोगों को नयन-नक्श के आधार पर अलग किया जा सकता है l
एक बार भुकडू राणा किसी काम के सिलसिले में कहीं जा रहे थे l तो उन्हें रात गुजारने के लिए चानणा गाँव में शरण लेनी पड़ी l भाग्यवश वह जिस घर में रुके, वह बहुत विद्वान पंडित का घर था l एक दुसरे से मेल-मुलाकात व् बातचीत के दौरान पंडित जी को मालूम हुआ कि भुकडू राणा सन्तान न होने के कारण दुखी है l तो पंडित जी ने अपनी विलक्ष्ण ज्योतिष विद्या द्वारा इसका हल निकाला l समाधान यह था कि भुकडू को किसी दूसरी जाति की लड़की से शादी करनी पड़ेगी l जब भुकडू कुछ समय बाद वापिस आए तो, पंडित जी की सहमती से उनकी ही कन्या से विवाह कर लिया l पंडित जी की इस कन्या का नाम ही दुदमाँ था l इस प्रकार दोनों की समस्याओं का हल भी निकल गया l भुकडू राणा को सन्तान की आवश्यकता थी, पंडित जी को संरक्षण की जरूरत थी l शादी के बाद भुकडू के यहाँ क्रमश चार बच्चे हुए, शिरगुल, बिजट, चंद्रेश्वर व् एक लड़की गराली l ऐसा भी कहा जाता है कि दो बच्चे रानी दुदमा से हुए और दैवी कृपा से दो बच्चे भुकडू राणा की पहली पत्नी से भी हुए l
यह सारा इतिहास पीढ़ी दर पीढ़ी सुना और सुनाया जाता है l लिखित इतिहास शायद ही कहीं हो l अब तक बहुत सी बातें बिसराई जा चुकी होंगी, या कुछ नई चीजें भी जुड़ चुकी होंगी l मगर कुछ भी हो, जब चूढ़धार पहुँचते हैं तो वहां एक अलोकिकता का अहसास अवश्य होता है l वैसे भी भारत में हर दैवीय स्थान के पीछे कुछ न कुछ रहस्य जरुर है l बाकि तो बात आस्था की है l चूढ़धार, धार्मिक आस्था व् ट्रेकिंग दोनों के लिए बहुत खुबसुरत जगह है l
“यात्रा का विस्तृत विवरण अगले लेख में”
चुड़ी- चांदनी, मेरे घर से ऐसा दिखता है(पुराना चित्र)
राजगढ़ बाजार में भी शिरगुल देवता का मंदिर
ढाबा
नौहराधार से पहले एक खुबसूरत गाँव
यहीं से शुरू होती है यात्रा ( जीजा जी के साथ मैं )
सब एक्शन मोड में
फुल मस्ती (यशदीप कँवर)
इस यात्रा में कभी न भूलने वाला लैंड मार्क
जय भोले (छ: किलोमीटर )
अपना रास्ता खुद तय करती नई पीढ़ी
12 km.
मधु अपनी फेवरिट छतरी के साथ
वो सामने शिरगुल देवता मंदिर
मंदिर परिसर का विहंगम दृश्य
चुढ़ेश्वर महादेव के लिए प्रस्थान
जय हो चुढ़ेश्वर महादेव
अब वापसी
वो सामने शिरगुल देवता मंदिर
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