Churdhar Travel-2 (चूढ़धार यात्रा भाग- 2)
जैसा कि मैंने पहले भाग में लिखा था, बचपन में जब चूड़ी-चांदनी की पहाड़ी को देखते थे, तो यह पहाड़ मन में बड़ा रोमांच पैदा करता था l मगर फिर वक्त के साथ-साथ यह यादें कुछ धूमिल होती चली गई l कुछ महीनों पहले नीरज जाट का ब्लॉग पढ़ रहा था, जिसमें करोल टिब्बा और चूढ़धार यात्रा का विवरण भी था l तब मन में विचार आया अरे ‘फटीचर’, जब ये बन्दा दिल्ली से आकर यात्रा कर गया, तो हम तो इसके आँगन में रह रहे हैं , बस कदम ही तो बढ़ाना है lजब 18 जून 2017 में करोल टिब्बा पर गए थे, तो उसी दिन चूढ़धार जाने का दिन तय हो गया था l आने वाले शनिवार 24 जून को चूढ़धार के लिए प्रस्थान किया जाएगा l बच्चों को भी सोलन मेला की छुट्टियाँ थी, तो वह भी साथ जाने को तैयार थे l यात्रा की थोड़ी- बहुत जानकारी अपने अनुज जगदीप कँवर से ली, वह अक्सर हर साल वहां जाते रहते हैं l 24 जून को सुबह 6.30 बजे कसौली से प्रस्थान कर, 7.15 पर सोलन DC office के पास जीजाजी व् भांजा रोबिन भी हमारे साथ हो लिए l अब हमारे दल में कुल आठ सदस्य थे l मैं , मधु जी , रमेश जी 'जीजा' रोबिन ‘भांजा’ अमनदीप व मनदीप ‘भतीजे’ prince व् यशदीप’ हमारे राज कुमार’ l सोलन से ओछघाट , नौणी , मरयोग , गिरिपुल, सनौरा आदि होते हुए ठीक 8.30 बजे हम राजगढ़ बाज़ार में पहुँच गए l मैं बहुत वर्षों बाद राजगढ़ आया था l पहले यह पुराने टाइप का छोटा सा बाज़ार था, मगर अब यह शहर में तबदील हो चुका है l अभी बाज़ार पूरी तरह खुला नहीं था l ढाबा, चाय व् रोजमर्रा की कुछ दुकाने खुल चुकी थी l हमें भी अब नाश्ते की जरूरत थी l सामने न्यू वैष्णो ढाबा देख कर गाड़ी रोककर परांठे का आर्डर किया, सबने भर पेट,पेट पूजा की, और नौहराधार जाने वाली सड़क पर गाड़ी दौड़ा दी l कुछ दूर तक तो सड़क बहुत बढ़िया थी, उसके बाद कई जगह गड्ढे बहुत है, कई जगह सड़क भी काफी संकरी है l मगर प्राकृतिक सुन्दरता गजब की है l सड़क से निचे घाटी की तरफ बहुत सुंदर सीढ़ीदार खेत बने हुए हैं l आजकल यहाँ आलू-गोभी व् टमाटर की खेती होती है l जबकि सर्दियों में यहाँ लहसुन की खेती बड़े पैमाने पर होती है l नौहराधार क्षेत्र का लहसुन अब विदेशों तक बहुत मशहूर हो चुका है l सड़क से ऊपर की तरफ खेत कम हैं, मगर अब सेब, आड़ू व् खुमानी के बगीचे लग चुके हैं l अब बाज़ार में लहसुन के अलावा राजगढ़ का आड़ू भी बहुत मशहूर है l सड़कों के जाल और नकदी फसलों का असर है, अब यहाँ बहुत से मकान पक्के व् आधुनिक शैली के बन गए हैं l मगर पुराने मकानों को देखना भी अच्छा लगता है l 10.30 बजे जब हम नौहराधार पहुंचे तो, वहां हमे नरेंद्र चौहान जी हमारा इंतजार करते मिले l जिन्हें मधु जी की कुलीग ने फोन पर हमारे आने की अग्रिम सुचना दे दी थी l कारण था सुरक्षित पार्किंग l क्योंकि यात्रा सीजन जोरों पर था, और वीकेंड भी l यहाँ जिन चौहान साहब ने हमारी सहायता की, इनके पिता श्री तुलसी राम चौहान जी 70 - 80 के दशक में इस इलाके के बहुत बड़े ट्रासपोर्टर रहे हैं l इनके सभी ट्रकों के न. 45 पर खत्म होते थे l कभी छोटा सा नौहराधार अब पूरा कस्बा बन गया है l
ठीक 11.00 बजे हमने नौहराधार से चूढ़धार के लिए चलना शुरू कर दिया l चूढ़धार ट्रैक बहुत मुश्किल वाला नहीं है l खड़ी चढ़ाई न होकर रास्ता हल्की चढ़ाई वाला है l शुरू के 4 km. तो हम सभी फटाफट चढ़ गए l वैसे भी हमने महसूस किया है, जब बच्चे साथ हों तो थकान या बोरियत नहीं होती l होता क्या है, कभी तो बच्चे भागते हुए आगे निकल जांएगे, फिर दूर से आवाजें लगायेंगे, कभी रास्ते से ऊपर निचे कुछ ढूंढते हुए दिखते हैं, कभी पत्थर से बॉल्लिंग करेंगे, कभी सवाल-जवाब करेंगे ये क्या है, क्यों है, कैसे है l बच्चों की इन्ही शरारतों के कारण हमारा मन भी वैसा ही चंचल रहता है l और जब मन प्रफुल्ल होगा, तो थकान नहीं होगी l जहाँ 4 km. होते हैं, वहां एक पत्थर का घर बन रहा था l बोल्डर पत्थर को तराश कर, बिना किसी मसाले या गारे के तरतीब में लगाना भी एक कला है l यहाँ से आगे अब पेड़–पौधे नजर आने लगते हैं, जो जंगल शुरू होने का अहसास कराते हैं l हालाँकि यह अभी मल्कियत वाले जंगल व् चारागाह हैं l सरकारी जंगल 5 km. के बाद ही शुरू होता है l आगे चल कर जंगल में कुछ पेड़ों पर नजर गई, तो ऐसा लगा कि यह पेड़ किसी बिमारी की गिरफ्त में है, जो इन्हें खड़े-2 ही सुखा रही है l जब मैंने इन्हें गौर से देखा तो पाया कि इसकी छाल के ऊपर कुछ काई नुमा शेवाल सा उग आया है l और शायद यह शेवाल इन पेड़ों की खुराक चूस जाता है l जिस कारण पेड़ ऊपर से निचे की ओर सूखता जाता है l आस-पास काफी सारे पेड़ व् टहनियां भी टूटी पड़ी थी इसका कारण भारी बर्फ बारी होता है l
दोपहर के 1.00 बजे तक हमने 6 km. रास्ता तय कर लिया था l अब हम जहाँ पहुंचे यह जगह काफी समतल थी l इस समय यहाँ हल्की धुंध थी, जैसी कि बरसात के दिनों में होती है l यहाँ पर चार पांच दुकाने बनी हुयी है, जहाँ चिप्स,बिस्कुट,चाय व् खाना भी मिल रहा था l हमने भी थोड़ा बहुत जलपान किया l यहाँ पर एक चिर-परिचित नजारा भी देखने को मिला, जो अक्सर ट्रैकिंग पर जाने वाले मित्रों ने देखा होगा l और वह है भांग के सुट्टे, बीड़ी या सिगरेट में भर कर l यहाँ भी 8 से 10 ग्रुप ऐसे ही नजर आ रहे थे l वातावरण में भांग की खुशबु फैली हुयी थी l
लगभग आधा घंटा रुक कर हमने आगे का सफर शुरू कर दिया l यहाँ थोड़ी सी तीखी चढ़ाई के बाद कभी रास्ता सीधा हो जाता था, कभी थोड़ी सी चढ़ाई वाला l अभी तक जो रास्ता काफी चौड़ा था, अब कहीं-कहीं इतना तंग हो जाता था, जहाँ सामने से आने वाले के लिए रुकना पड़ता था l यहीं हमारे पीछे-पीछे पांच लड़कियाँ भी चल रही थी, जिन्हें 6-7 लडके फॉलो कर रहे थे l वह पहाड़ी और हिंदी गानों के साथ अन्ताक्षरी खेल रहे थे l हम भी उनके ग्रुप में ही शामिल हो गए l इस प्रकार आगे के 6 km. का सफर सिर्फ 1.30 घंटे में ही पूरा कर लिया l बहुत सारे बच्चों के साथ कब छ: किलोमीटर का सफर खत्म हो गया पता ही न चला l ध्यान तब आया जब अचानक से पेड़-पौधे खत्म हो गए l सामने कुछ दुकाने बनी नजर आने लगी l यहाँ एक वर्ष शालिका भी बनी हुयी है, मगर स्थानिय लोगों ने उसमे खच्चर बाँध कर उसे गंदा कर दिया था l अंदर और बहार खच्चरों की लीद ही लीद भरी पड़ी थी l जिस से वहां मखियों के ढेर भिनभिना रहे थे l
यहाँ हमने खाना खाया, जिसमे काफी समय बीत गया l हमारे साथ जो लडके व् लड़कियां चल रहे थे, उनमें से लड़के तो थोड़ी देर रुक कर, सुट्टे मारने के बाद आगे चले गए l लड़कियां काफी देर तक एक टेकड़ी पर बैठ कर चिप्स, कुरकुरे खा कर गाने गाती रही l यहीं पर उनसे हमारी बातचीत भी हुई l जिन्हें हम ग्रुप समझ रहे थे, दरअसल वह अलग-2 थे l यह सभी लड़कियां आपस में कजिन थी, जिमसे तीन सोलन कॉलेज में तथा दो RKMV शिमला से थी l जबकि लडके उन्हें पिछले पड़ाव पर ही मिले थे l यहाँ से लड़कों का झुण्ड पहले निकल चुका था l हम उसके बाद 3.00 बजे के आस-पास निकले l अभी यह पांचों लड़कियां यहीं थी l
यहाँ से अभी शिरगुल देवता का मंदिर 6.00 km. दूर था l यहाँ से दो रास्ते हैं, एक तो सीधा ऊपर पहाड़ की चोटी से होकर, चूढ़ेश्वर महादेव होते हुए, शिरगुल मंदिर तक जाता है l ( इस रास्ते के बारे में अगले लेख में ) जबकि दूसरा रास्ता बाँई ओर से सीधा-सीधा है, कुछ आगे जाकर यह ढलानदार भी हो जाता l उसी ढलान पर फिर से पेड़-पौधे मिलते हैं, जबकि बाकी का भाग tree line से ऊपर है, यानि 11,000 फुट से ऊपर l चूँकि आज हल्के बादल थे, जिस कारण धुप आ-जा रही थी, और बीच-बीच में धुन्ध भी थी l जहाँ तक तो रौशनी ठीक थी, हम फोटो खींचते रहे, उसके बाद कैमरा बंद l घने पेड़ों के कारण भी अँधेरा कुछ ज्यादा लग रहा था l अचानक से पेड़ और धुंध छंट गए, और निचे बाँई तरफ मंदिर और कुछ निर्माण नजर आने लगा l यही है शिरगुल देवता का मंदिर, जबकि चूढ़ेश्वर महादेव ऊपर, बिलकुल चोटी पर हैं l जब समय देखा तो शाम के 6.30 बज रहे थे l
शिरगुल देवता का पूजा स्थल राजगढ़ में भी
ढाबा व् हमारा यात्रा रथ
नया सुंदर राजगढ़
ऐसी सुंदर हरियाली सिर्फ पहाड़ों में ही मिलती है
जब घर जाने के लिए ये आखिरी बस हो तो टिकट के साथ खतरा भी मोल लेना पड़ता है
अभी तो यात्रा शुरू हुई है
चार फुट का दरवाजा (ऐसा ही एक चित्र श्रीखण्ड यात्रा में भी है)
सड़क जो चूढ़धार जाएगी (तब ट्रेकिंग खत्म हो जाएगी)
मुड़-मुड़ के न देख मुड़-मुड़ के
मनदीप. प्रिंस,रोबिन
कभी न भूलने वाले दो लैंड मार्क
बोल्डर पत्थर को तराश कर बिना गारे के बनाई गई दीवारें
पेड़ पर उगी काई नुमा घास जो पेड़ों को खड़े-खड़े ही सुखा देती है
अपना रास्ता खुद तय करती युवा पीढ़ी
एक फोटू मेरा भी
छ: किलोमीटर
बेटी की याद में बनाई पानी की बावड़ी
बारह किलोमीटर कम्पलीट, यहाँ बना विश्राम स्थल 'मगर खच्चरों के लिए'
भोलेनाथ के भक्तों की कारीगरी
सेल्फी स्टार
चट्टानों के ऊपर नजर आते लोग जो चुढ़ेश्वर महादेव का दर्शन कर वापिस आ रहे हैं
शिरगुल महाराज का निवास स्थान
(आगे की यात्रा और दर्शन कल अगली पोस्ट में)
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