Champaner : Gujrat Travel (चंपानेर : गुजरात यात्रा )



Champaner : चंपानेर यात्रा

                                                चंपानेर गुजरात की प्राचीन राजधानी है l  इसे 2004 में यूनेस्को द्वारा संरक्षित कर विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया है l  चंपानेर का निर्माण 8वीं शताब्दी के दौरान चावड़ा वंश के राजा वनराज चावड़ा द्वारा किया गया था l  इसका नाम चंपानेर रखने की पीछे कई मत है, जिसमे से एक मत ये है, कि महाराज वनराज चावड़ा ने इस नगरी का नाम अपने मंत्री ‘चंपा ‘के नाम पर रखा था l   उस समय यहाँ पर हिन्दू व जैन मन्दिर से लेकर कई प्रकार के भवन कुंए चार दिवारी आदि बनाई गई थी l
                              कहते हैं समय और सता परिवर्तनशील है l   धरती वही रहती है, बस पट्टेदार का नाम बदलता रहता है l  इसे न कोई खरीद सकता है, न बेच सकता है, न कोई जीत पाया है और न ही कोई हारा है l बस साम्राज्य के मुखिया का नाम बदल जाता है l   सन 1300 में चौहान राजपूतों ने चंपानेर पर कब्जा कर लिया l  वह यहाँ लगभग 200 वर्षों तक काबिज रहे, बाद में उनको एक श्राप के कारण यहाँ से भागना पड़ा l
                           यह कहानी यहाँ के स्थानीय लोग बताते हैं l  हमे इसके बारे में हमारे वाहन चालक सेलेश भाई ने बताया l   यह बात 14वीं सदी के प्रारम्भ की है, उस समय नवरात्रों के दौरान यहाँ गरबा का आयोजन हो रहा था, तो वहां माँ कलिका भी एक सुंदर बालिका का रूप धर कर गरबा खेलने आ गई l  उसी समय वहां के राजा पतई रावल की नजर उस सुंदर बालिका पर पड़ी, तो उसने असक्त हो कर उस बालिका का पल्लू पकड़ कर खिंच दिया l  पतई रावल की इस हरकत से कुपित हो कर माँ ने उसे सर्वनाश का श्राप दिया, और खुद धरती में समाने लग गई, जब सदन शाह पीर ने यह सब देखा, तो उसने माँ कलिका को बालों से पकड़ लिया l  अब माँ का शारीर तो धरती में समा गया, मगर गर्दन से ऊपर का भाग बाहर रहा गया l  यही कारण है कि पावागढ़ के इस मन्दिर में सिर्फ माँ की आँखे ही नजर आती है, और इसकी ही पूजा होती है l
                                       जब माँ कलिका का श्राप फलीभूत होने लगा तो पतई रावल की पकड़ शासन पर ढीली पड़ती गई l  फलस्वरूप 1484 में अहमदाबाद के सुल्तान महमूद बेगड़ा ने इस पर अपना कब्जा जमा लिया, और चंपानेर का नाम मुहम्मदाबाद रख दिया l  चौहानों ने डर के मारे यहाँ से पलायन कर लिया, और वह छोटा उदयपुर जा कर बस गए l   जहाँ आज भी उनके वंशज रहते हैं l
                                 महमूद बेगड़ा ने अगले कुछ साल तक इस शहर को सुंदर और विकसित बनाने के लिए निर्माण कार्य किया, यहाँ मस्जिदें व् मुग़ल शैली के कुछ भवनों का निर्माण करने के अलावा अहमदाबाद से अपनी राजधानी बदलकर मुहमदाबाद ( चंपानेर ) कर दी l
                                                  सन 1535 में मुग़ल सम्राट हुमायूँ ने सुल्तान महमूद बेगड़ा को भगा कर चंपानेर पर विजय प्राप्त कर ली l  मुग़लों ने जब गुजरात और मालवा पर अपना कब्ज़ा जमा लिया, तो एक बार फिर अहमदाबाद को राजधानी बना दिया  l   इसके बाद चंपानेर, माँ कलिका के श्राप के कारण वीरान होता चला गया l  यहाँ कोई भी सुख-शान्ति से न रह सका l   आज भी जो लोग यहाँ रह रहे हैं वो खानाबदोश लोग हैं l कोई भी स्थानीय आदमी यहाँ रहना नहीं चाहता है l
                                 इसी श्राप के कारण मराठों ने भी अपने शासनकाल के दौरान इस पर ध्यान नहीं दिया l और चंपानेर जंगल और खण्डहरों में तबदील होता चला गया l   इस दौरान लोग पावागढ़ में माँ काली के दर्शन करने ही आया करते थे l   19 वीं सदी के प्रारम्भ में जब अंग्रेजों ने इस इलाके पर अपना कब्जा किया, तब गुजरात की इस प्राचीन राजधानी की जन सँख्या 500 तक सिमट चुकी थी l   पहले अंग्रेजों ने तथा 1969 में बड़ोदरा के एक विश्व विद्यालय ने इस पर काफी शौध करने के बाद चंपानेर के विकास, इसकी पहचान और पतन के बारे में काफी कुछ जानकारी लोगों के सामने रखी l  जो कुछ इस प्रकार है l
                                     जैसा कि मैंने पहले लिखा है, कि चंपानेर की स्थापना और विकास महाराज वनराज चावड़ा ने किया था l  उसके बाद सन 1300 इस्वी में चौहान राजपूतों ने इस पर अपना अधिपत्य जमा लिया l चौहान राजाओं ने एक सदी से भी ज्यादा तक यहाँ अपना राज बनाये रखा l   सन 1449 में मुहम्मद शाह ने चंपानेर पर आक्रमण लिया उस समय वहां पर गंग दास चौहान का राज था l  उसने मुहम्मद शाह को बुरी तरह पराजित कर भागने पर मजबूर कर दिया l   भारत में राजपूत ही ऐसी कौम रही है, जो मुस्लिम सल्तनत के समक्ष न तो कभी झुकी है, और न ही उसने धर्म परिवर्तन स्वीकार किया, उसकी अपेक्षा मारने या मरने का रास्ता अपनाया l   सन 1451 में मुहम्मद शाह की मौत हो गई l  उसके बाद उसका पुत्र कुतुब-दिन अहमदशाह गद्दीनशीन हुआ l  इसके बाद 1458 में अबू-अल्फाद मुहम्मद शाह को गद्दी पर बिठाया गया, जो बाद में मुहम्मद बेगडा के नाम से मशहूर हुआ l  बेगडा अति महत्वाकांक्षी, जुनूनी और धर्मांध शासक था l  चंपानेर के मामले में वह अपने बाप-दादा की विफलता का बदला लेना चाहता था l
                                     जब चंपानेर पर रावल जय सिंह चौहान जिसे पतई राजा ( पावा पति या पतई रावल ) भी कहा जाता था, का राज था, उस समय 4 दिसम्बर 1981 को बेगडा ने ढाई से तीन लाख की सेना लेकर चंपानेर पर हमला कर दिया l   मगर राजपूतों ने उस का डट कर सामना किया l  यह युद्ध लगभग दो साल तक चला l आखिर में उसने पतई रावल के कुछ दरबारियों को लालच देकर अपनी तरफ कर लिया l  जिनके विश्वासघात के कारण चौहान युद्ध हार गए l    21 नवंबर 1484 को जब बेगडा की सेना ने किले में प्रवेश किया तो महारनी चंपा देवी ने अन्य क्षत्राणियों के साथ मिल कर जौहर कर लिया l   पतई रावल के पुत्रों को किले से सुरक्षित निकाल कर छोटा उदयपुर पहुंचा दिया गया l   किले में बचे 700 राजपूत सैनिकों ने 20000 मुस्लिम सैनिकों को काट कर 72 हूरों की शरण में पहुंचा दिया l   जय सिंह रावल और उनके मंत्री सूरी को बंदी बना कर बाद में उनका कत्ल कर दिया l
                                 आज भी गुजरात में रावल जयसिंह को पतई रावल(पावा पती रावल जय सिंह) नाम से याद किया जाता है l  उनके बारे में अनेको लोक कहानिया प्रचलित है, जिनमे एक कहानी हमे सेलेश भाई ने भी सुनाई थी, जो आप पढ़ चुके हैं l  चंपानेर और पावागढ़ के दुर्ग के अवशेष जहाँ मन्दिरो के शिखर तोड़ कर मस्जिद की गुम्बदे बना दी गई, आज भी इस गौरवशाली संघर्ष की मूक गवाही देते है l
                            इस गौरवशाली संघर्ष को इतिहास के पृष्ठों पर जो सम्मान मिलना चाहिये, वो कभी नही मिल पाया l   बेगडा और मुस्लिम शासकों के वंशज उनके पतन के साथ ही समाप्त हो गए, जबकि चौहान राजपूत शासकों के वंशज चार सदियाँ बीत जाने के बाद आज भी छोटा उदयपुर और बारिया में अपने गौरवशाली इतिहास के साथ कायम है l

यात्रा विवरण :

                             जब हम पावागढ़ से निचे उतरे तो काफी जोर की भूख लग रही थी l   सेलेश भाई ने कहा खाना आगे चल कर पोइचा के रास्ते में खाएंगे l  मगर चंपानेर देखने का मौका भी हम हाथ से नहीं जाने दे सकते थे, तो हमने तय किया हम चंपानेर में गाड़ी से ही घूमेंगे और ज्यादा समय नहीं लगायेंगे l  क्योंकि हमे रात होने से पहले केवाडिया पहुंचना था l   हम चंपानेर किले के दक्षिण भद्र गेट से अन्दर गये, और दुसरे छोर से जहाँ जामी मस्जिद है, से बाहर निकल आए l  (यहाँ जितनी भी फोटो है, वह सब बाहर से या चलती गाड़ी से ही ली गई है) यहाँ पर किले की बाहरी दीवारें 30 फूट से भी ऊँची है l  किले के अंदर बहुत विशाल भवन, मंदिर, मस्जिद, बावड़ी और कुंएं बने हुए है l किले के अंदर जो मस्जिद है उसे शहर की मस्जिद कहा जाता है l   सम्भवतय इस जगह पहले मंदिर रहा होगा l   उसका वजूद खत्म कर उसे मस्जिद का रूप दिया गया होगा l   क्योंकि मुस्लिम शासकों का पहला काम मंदिरों के स्थान पर मस्जिद कायम करने का रहा है l  मैं यह बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि इसका निर्माण भारतीय तथा मुस्लिम शैली का संगम है l  इस मस्जिद का निर्माण 15वीं सदी के प्रारम्भ में किया गया था l यह शाही परिवार की निजी मस्जिद थी, इसका निर्माण 56 x 40 मीटर के एक चबूतरे पर किया गया है, इसमें पांच प्रवेश द्वार हैं, जो सब के सब मेहराबदार हैं l   इनमे बीच का द्वार सबसे बड़ा है यही मुख्य द्वार भी है l
किले के बाहर बनी मस्जिद को जामी मस्जिद कहते हैं l  इसका निर्माण 1508 – 09 में किया गया था l  जामी मस्जिद चंपानेर – पावागढ़ के सबसे महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक है l  इसका निर्माण अहमदाबाद शहर की जामी मस्जिद की कॉपी कर भारतीय व मुस्लिम शैली का मिला जुला रूप है l   इस मस्जिद का निर्माण 66 x 55 मीटर के चबूतरे पर किया गया है, इसमें तीन प्रवेश द्वार उत्तर, दक्षिण व पूर्व की तरफ हैं l  तीनों ही प्रवेश द्वारों के ऊपर भारतीय शैली के सुंदर मण्डप बने हुए हैं l   इसके मध्य में 30 मीटर ऊँची पांच मंजिला दो मिंनारें बनी हुई है l   चंपानेर में यही एक ऐसा निर्माण है जो अभी तक पूरी तरह सुरक्षित है l  इसकी निर्माण कला व वास्तु भी देखने काबिल है l   जबकि बाकि का निर्माण खंडहरों में तबदील होता जा रहा है l  हमने बाहर से ही इसकी फोटो ली और आगे निकल पड़े l
                 लगभग 5 km. बाहर निकल कर सेलेश भाई ने एक जगह खाना खाने के लिए गाड़ी रोकी, यह काफी बड़ा रेस्तरां था, जो घास और टिन के शेड का बना हुआ था l  नाम अब याद नहीं है l   ( मग-मसाला, लसुनिया बटाका , दाल फ्राई , बाजरे की रोटी ) यह था खाने का मेनू l  हम लोग खाना खा ही रहे थे कि बाहर दो स्कूल बस आ कर रुकी और बहुत सारे बच्चे अंदर चहकते हुए भर गये l  इनका खाने का स्टाल अलग ही था, शायद ये पहले ही बुकिंग कर गये होंगे l
                           यहाँ से पोइचा 80 km. था, जब हम गाड़ी में बैठे तो घड़ी 3.00 बजे का समय बता रही थी l


                                                                     दक्षिण का भद्र द्वार


शहर की मस्जिद


अवशेष ही शेष है



                                                                   जामी मस्जिद


बहुत जगह जामा मस्जिद होता है , यहाँ  जामी मस्जिद है

यह चित्र अहमदाबाद हवाई अड्डे पर है

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