Lal Qila, Red Firt (Part-1) : लाल किला (भाग -1)
परिचय तथा परिस्थिति :
लाल किला l नाम सुनते ही दिल्ली का लाल किला जहन में घूम जाता है l वैसे तो भारत में दो लाल किला है, एक आगरा में और दूसरा यह वाला, दिल्ली में l मेरा ऐसा मानना है कि दिल्ली का लाल किला भारत के लगभग सभी लोगों ने देखा है, भले ही टीवी पर ही सही l स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर जब भारत के प्रधान मंत्री 15 अगस्त को यहाँ तिरंगा फहराते हैं तो इसका बाहरी आवरण बहुत शानदार दिखता है l वैसे तो दिल्ली में घुमने के लिए बहुत सारी जगह है, मगर लाल किला देखने की हसरत सब की होती है l इस किले का निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने करवाया था l ऐसा बताया जाता है कि उस वक्त इसको बनाने में एक करोड़ रूपए का खर्च आया था, तथा इसके निर्माण में 10 वर्ष का समय लगा था l सन 1638 से 1648 के मध्य इसका निर्माण काल रहा तथा उसके बाद के शासकों ने भी इसका विकास किया l इसे किला-ए मुबारक कहा जाता था l1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद यह किला ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन चला गया l सन 1947 तक यह ब्रिटिश सेना का मुख्यालय रहा उसके बाद दिसम्बर 2003 तक यह भारतीय सेना के अधीन रहा l 22 दिसम्बर 2003 को तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री जॉर्ज फर्नांडीस ने इसे पर्यटन विभाग को सौंप दिया l
इस किले के वास्तुकार, उस्ताद हमीद , मुकर्रम खां , अली वर्दी खां और उस्ताद अहमद लाहौरी थे l उस्ताद हमीद और उस्ताद अहमद लाहौरी ताज महल के वास्तुकार भी थे l इसके निर्माण में भारतीय वास्तु शैली के साथ – 2 इस्लामिक व मुग़ल निर्माण शैली का भी इस्तेमाल किया गया है l
बस अड्डे से 4 km. , रेलवे स्टेशन से 5 km. और मेट्रो स्टेशन तो बिलकुल सामने है, जो चांदनी चौक में ही है l
दिल्ली और आगरा का लाल किला दोनों ही यमुना नदी के किनारे बसाए गए है l यमुना के पानी से ही इसकी सुरक्षा खाई को भरा जाता था, तथा यही पानी किले के अंदर नहरे-बहिश्त को स्वर्ग की नहर बनता था l
लाल किले की दिवार की लम्बाई 2.41 km. है l इसकी चौड़ाई एक तरफ 900 मीटर और दूसरी तरफ 550 मीटर है l यह दिवार यमुना नदी की ओर 21.94 मीटर और चांदनी चौक की तरफ 33.50 मीटर ऊँची है l इसके चारों ओर बनी खाई लगभग 22 मीटर चौड़ी और 9.14 मीटर गहरी है, इसे युद्ध के दौरान पानी से भर दिया जाता था l
लाल किले में दो दरवाजे हैं, एक दिल्ली दरवाजा और दूसरा लाहौरी दरवाजा l मगर अब सिर्फ लाहौरी दरवाजे का ही उपयोग होता है l यह दरवाजा चांदनी चौक की ओर पश्चिम में बना है l
महत्वपूर्ण जानकारी :
रेलवे स्टेशन और अन्तर्राज्यीय बस अड्डे से यह बहुत अधिक दूर नहीं है l अगर आपको पैदल चलने में दिलचस्पी है, तो पुरानी दिल्ली घूमते हुए पैदल चलने का मजा ही कुछ और है l लाल किला का सबसे नजदीकी मेट्रो स्टेशन चांदनी चौक है, वहां से पैदल भी जा सकते हैं, रिक्शा या ऑटो भी कर सकते हैं lपर्यटकों के लिए लाल किला मंगलवार से रविवार तक सुबह 9.30 बजे से शाम को 4.30 बजे तक खुला रहता हैं । कोई भी पर्यटक फीस चुकाकर अंदर प्रवेश कर सकता है । शुक्रवार को प्रवेश मुफ्त होता है, जबकि सोमवार को अवकाश रहता है l
एंट्री फीस 40 रु (भारतियों के लिए) और 500 रु( विदेशीयों के लिए)
साउंड और लाइट शोवयस्कों के लिए एंट्री फीः 80 रुपए, बच्चों के लिए एंट्री फीः 30 रुपए
खुलने का समयःशाम 6:00 – 8:30 बजे तक (हिंदी) रात 8:00 -9:30 बजे तक (अंग्रेजी)
फोन नंबर : +91-11-23277705
वेबसाइट : www.delhitourism.gov.in
टिप्सः
अपने साथ पानी लेकर जाएं, बाहर से कुछ खाने का सामान लाने की अनुमति नहीं है ।जेबकतरों और ठगों से सावधान रहे ।
चट्टा चौक में शॉपिंग करते वक्त मोल-भाव पर ध्यान दें । यहाँ पर सामान की कीमत ज्यादा होती है l
कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ :
1. ऐसा कहा जाता है कि 12 वीं सदी के अंत में यहाँ पर पृथ्वीराज चौहान ने एक किले और नगर का निर्माण किया था, जिसे लालकोट के नाम से जाना जाता था l2. 1546 में इस्लाम शाह सूरी ने यहाँ पर सलीमगढ़ किले का निर्माण किया l
3. उसके बाद 1638 से 1648 तक सलीमगढ़ के पूर्वी छोर पर लाल किले का निर्माण हुआ, जो हम आज देखते हैं l
4. 1719 में आए भूकंप ने इस किले को काफी नुकसान पहुँचाया l
5. 1739 में फारस के बादशाह ने इस किले पर आक्रमण कर इसे बहुत नुकसान पहुँचाया तथा तखत-ए – ताउस (स्वर्ण मयूर सिंहासन ) तथा खजाने को लूट कर फारस ले गया, जो बदलते वक्त के साथ ईरानी शहंशाहों शान का प्रतिक बना l
6. 11 मार्च 1759 में जाट सरदार बघेल सिंह धालीवाल ने लाल किले में प्रवेश कर दीवाने आम को अपने कब्जे में ले लिया था l बाद में मराठों ने भी इसे काफी नुकसान पहुँचाया l
7. सन 1798 में गुलाम कादिर नमक डाकू किले में आग लगा कर भाग गया l
8. 1857 के गद्दर के बाद इस पर अंग्रेजों ने कब्जा कर, इसे ब्रिटिश सेना का मुख्यालय बना दिया l इस दौरान इसके 70 प्रतिशत निर्माण को ध्वस्त कर दिया गया था l इसके बाद अंतिम मुग़ल शासक बहादुर शाह जफ़र पर मुकदमा भी इसी किले में चला l
9. 1903 में इसके बचे हुए अवशेषों के जीर्णोद्धार की मुहीम का काम उमेद दानिश द्वारा किया गया था l
10. दुसरे विश्व युद्ध के बाद नवंबर 1945 को इण्डियन नेशनल आर्मी के तीन अफसरों का कौर्ट मार्शल भी यहीं किया गया l
11. 1947 में स्वतंत्रता के बाद यह भारतीय सेना के नियंत्रण में चला गया l
12. दिसम्बर 2000 में इस किले पर लश्कर–ए-तोएय्बा के आतंकियों ने हमला कर, दो सैनिकों सहित एक नागरिक को हलाक कर दिया था l
13. दिसम्बर 2003 में भारतीय सेना ने इसे भारतीय पर्यटन प्राधिकरण को सौंप दिया l
14. 2007 में लाल किले को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया l
15 अप्रैल 2018 में डालमिया भारत ग्रुप ने इसे पांच साल के लिए गोद लिया l जिसका विपक्ष ने यह कह कर प्रचार किया कि बीजेपी सरकार ने इसे बेच दिया है l
लाल किले की पहचान छतरी और मीनारों के मध्य लहराता तिरंगा
टिकट घर :
चांदनी चौक की ओर से अंदर जाते ही बहुत खुला स्थान आता है l जैसे ही हम यहाँ पहुंचे तो काफी भीड़ थी l सबसे पहले तो कुछ फोटो लिए और उस जगह को निहारा जहाँ से 15 अगस्त वाले दिन प्रधान मंत्री देश को सम्बोधित करते हैं l उसके बाद जब बाँई ओर जाती भीड़ की तरफ देखा तो पता चला कि अंदर प्रवेश करने के लिए टिकट खरीदना पड़ेगा l इससे पहले मैं यहाँ आखिरी बार जनवरी 1998 में आया था, तब टिकट नहीं लगता था l खैर टिकट होना बहुत जरुरी है l यह पैसा इतनी बड़ी धरोहर का रख-रखाव करने में काम आ सकता है l टिकट घर बाँई और बेसमेंट में बना है l यहाँ इस समय चार काउंटर खुले थे, मैं भी एक लाइन में खड़ा हो गया l जल्दी ही नम्बर आ गया, 40 रु के हिसाब से 160 रु में चार टिकट (टोकन) लिए, यह वैसे ही थे, जैसे मेट्रो स्टेशन पर मिलते हैं l सबसे पहले यहाँ सुरक्षा जांच की गई, उसके बाद लोहे के गेट से अंदर प्रवेश करने पर हमे हिदायत दी गई, (इस टोकन को सम्भाल कर रखें, वापिसी में काम आयेगा l ) यहाँ से एक लम्बा चक्कर घूमते हुए हम सुरक्षा खाई के साथ-साथ चलते हुए लाहौरी दरवाजे तक पहुँच गए lकिले के चारों ओर बनाई गई खाई,जो दुश्मनों से इसकी रक्षा करती थी
मुख्य प्रवेश द्वार : लाहौरी दरवाजा
लाहौरी दरवाजा :
जहाँ लम्बा चौड़ा सड़क नुमा रास्ता ख़त्म होता है, वहीँ सामने है लाहौरी दरवाजा l ऐसा बताया जाता है कि शाही समय में इस दरवाजे के बाहर मीना बाजार सजता था l लाहौरी दरवाजा लाल पत्थरों को मेहराब के रूप में चिनाई करके बनाया गया है, जो लगभग 20 फूट ऊँचा होगा l जिस दिवार में यह दरवाजा बना है उसकी चौड़ाई शायद 15 फूट से ज्यादा ही रही होगी l दरवाजे के बाँई ओर एक लोहे के बोर्ड पर पीतल के अक्षरों में “लाहौर द्वार” लिखा है l सामने दरवाजे पर सेना के जवान मुस्तेद थे, वह हर आने-जाने वाले पर नजर रख रहे थे l गेट से अन्दर जाने पर हम एक प्रांगन नुमा जगह पर थे, इसके दोनों तरफ छतरी दार बुर्ज बने हुए है l लाल किले के गुम्बद, छतरियां, ऊँचे परकोटे अष्ट कोणीए है l बाँई ओर किले के अंदर जाने का प्रवेश द्वार है, इसके शीर्ष पर सात लाल पत्थर की महराब बनी हुयी है, उसके ऊपर सफेद संगमरमर की सात बुर्जियां बनी हुई है, इसके मध्य में मेरे देश की शान तिरंगा लहरा रहा था l इन बुर्जियों के दोनों ओर एक-एक मीनार बनी हुई है, जो अष्टकोण गुम्बददार है l लाल पत्थर की दीवारों पर बहुत सुंदर नक्काशी की गई है l इसी प्रवेशद्वार के बारे में शाहजहाँ ने कहा था, कि किले को दुल्हन की तरह बनाया गया और उस पर यह घुंघट डाल दिया गया l दांई ओर ऊपर जाने के लिए सीढियाँ व एक रैंप बना हुआ है, जिसे बंद किया हुआ था l शायद स्वतन्त्रता दिवस पर प्रधान मंत्री यहीं से ऊपर किले की प्राचीर तक जाते होंगे lछाता चौक : मीना बाजार
छता चौक :
जैसे ही हमने लाहौरी दरवाजे के अंदर प्रवेश किया, तो सामने एक छोटा सा बाजार नजर आया, इसे छता चौक कहते हैं l यह बाजार शाही समय से ही चलता आ रहा है, उस वक्त इसे मीना बाजार कहा जाता था l यह 238 फूट लम्बा व 27 फूट चौड़ा बाजार, लाहोरी दरवाजे से लाल किले के प्रांगन तक फैला हुआ है l इसकी छत बड़ी-बड़ी 9 महराबों पर टिकी हुयी है l जब हमने यहाँ प्रवेश किया तो यहाँ फर्श पर लाल रंग का पत्थर बिछाया जा रहा था l देख आश्चर्य व सुखद अहसास हुआ कि यहाँ सीमेंट का उपयोग नहीं हो रहा था, बल्कि रेत में चुना मिला कर मोर्टार तैयार किया जा रहा था l छता बाजार में पर्यटकों के हिसाब से खरीददारी की हर चीज मिलती है, बस फर्क इतना ही है कि बाजार से थोड़ी महंगी है l वैसे भी हर पर्यटन स्थल पर चीजें महंगी ही होती है l बाजार से बाहर निकलने पर एक सीधी सड़क है, जिसके दांई तरफ किले का सहन (आंगन) है और बाँई तरफ स्वतन्त्रता संग्राम संग्रहालय है l यहीं से एक सड़क सलीमगढ़ किले की तरफ जाती है l इसके बाद सीधा सामने नौबत खाना है, इसी सड़क पर आगे जाकर दिल्ली दरवाजा आता है, जो अब बंद है lस्वतन्त्रता संग्राम संग्रहालय
संग्रहालय :
संभवतः यह अंग्रेजो के जमाने का निर्माण है, इसकी निर्माण शैली से मैंने ऐसा अंदाजा लगाया l अब इस जगह पर कुछ दफ्तर व देश की आजादी के समय की कुछ वस्तुओं को संगृहीत किया गया है, जिसे यहाँ आने वाले पर्यटक देख कर समझने की कोशिश कर सकते हैं कि उस वक्त की परिस्थितियों में हमे आजादी कैसे सम्भव हो सकी l हम इसके आस-पास घुमे जरुर मगर इसके अन्दर नहीं गए l बस कुछ फोटो ले कर नौबत खाने की तरफ बढ़ गए lनौबतखाना : जो सामने से सफेद पत्थर का और पीछे की तरफ लाल पत्थर का बना है
नौबतखाना :
नौबतखाना या नक्कारखाना यह स्थान शाही समय में संगीतकारों के लिए बना था l बचपन में हमने कहीं पढ़ा था नक्कारखाने की तूती l कई बार घर में बड़े बुजर्गों से भी यह शब्द सुना था l तूती एक बहुत छोटा सा वाद्य यंत्र होता है, जिसकी आवाज सिमित होती है l इसका मतलब आज समझ आया जब इतना बड़ा नक्कारखाना देखा l कहा जाता है कि शाही समय में यहाँ सप्ताह के पांच दिन, दिन में पांच बार व शनिवार तथा रविवार को सारा दिन नौबतें (संगीत की महफ़िल ) बजती थी l यह दो मंजिला भवन है, सामने की तरफ यह सफेद पत्थर का बना है और पीछे की तरफ लाल पत्थर का l इसकी निचली मंजिल में तीन बड़ी-बड़ी महराबें बनी है, जिनमें बीच वाली में से आर-पार जा सकते हैं, जबकि दांई व बाँई दोनों के दरवाजे बंद हैं l इसके कंगूरों पर भी सुंदर व महीन नक्काशी की गई है l हैरानी होती है ये देखकर उस समय जब कोई मशीनी औजार नहीं होते थे, तब सिमित साधनों से कैसे लोग इतनी बढ़िया कारगरी करते थे lनौबतखाना :मधु कँवर, निर्मल वर्मा, केदार वर्मा
दीवाने-आम
दीवाने-आम :
नौबतखाना पार करने के बाद ही किले के बाकि अंदरूनी भाग नजर आते हैं l इसके साथ लगता एक काफी बड़ा हरे घास का मैदान है, जिसके दोनों ओर छायादार वृक्ष एक कतार में खड़े हैं l इस मैदान के उस ओर है दीवाने-आम l मतलब इस जगह पर शाहजहाँ आम जनता से मुलाकात करता था, तथा उनकी शिकायतें सुनता था l यह विशाल मैदान आम जनता के बैठने का स्थान होता होगा l जब हम इस बड़े मैदान को पार कर इसके सामने पहुंचे तो वहां एक लाल पत्थर की एक बड़ी शीला पर इसके बारे में संक्षिप्त विवरण लिखा था l दीवाने- आम बड़े-बड़े लाल पत्थरों से बने चबूतरे पर बना हुआ है l इसके अन्दर लाल पत्थरों से बने दस-दस खम्बों की तीन लाइन बनी हुई है, जो लगभग 15x15 फूट पर तरतीब में 42x42 इंच के बेस पर खड़े हैं l ( भाई मैं इंजिनियर हूँ, जब भी कोई निर्माण देखता हूँ तो नजरें उसका नाप-जोख कर ही लेती हैं) इसके पीछे लाल पत्थर की एक दिवार बनी है l मतलब तीन तरफ से खुला और एक तरफ से बंद l इसके ठीक बीचों-बीच पीछे की दिवार के साथ संगमरमर का एक चबूतरा बना हुआ है, जो बंगाली शैली की छतरी से ढाका हुआ है l इस छतरी के पीछे रंग-बिरंगे पत्थरों से इसे सुंदर रूप दिया गया है l ऐसा कहा जाता है कि यहाँ पर हर रोज सुबह शाही दरबार लगता था l बादशाह जनता की शिकायतें सुन कर, उनका हल मौके पर ही किया करता था l उस वक्त सारा अमला इसी चबूतरे पर हाजिर होता था lसफेद पत्थर का चबूतरा जहाँ बादशाह बैठता था
अंदरूनी स्थान और उनका परिचय अगले भाग में
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