Lal Qila, Red Fort (Part-2) : लाल किला (भाग -2)
किले के अंदरूनी निर्माण जो सिर्फ शाही परिवार के लिए थेअन्दर का एक सुंदर दृश्य
रंग महल :
दीवाने आम का पूरा नक्शा देख समझ कर हम आगे सीधी सड़क पर बढ़ चले l अब हमारे सामने बाँई ओर निर्माण की एक पूरी श्रृंखला थी l एक निश्चित दुरी पर चार पांच सुंदर भवन बने हुए हैं l दांई तरफ को दिल्ली दरवाजे का बोर्ड लगा था, मगर उस तरफ रास्ता बंद किया गया है l सबसे पहले हमारे सामने था रंग महल का सुंदर सा प्रांगन और उस के पार सफ़ेद संगमरमर से बना रंग महल l कभी इस शाही भवन को रंगीन पत्थरों और जवाहरातों से सजाया गया था l 46 x 29 मीटर लम्बे चौड़े भवन की छत पर बहुत सुंदर बेल बूटे बने हुए हैं, जिन्हें देख कर आश्चर्य होता है, उलटी छत पर कैसे इतनी सुंदर नक्काशी की गई होगी l एक मत ऐसा भी है कि जब यह बनाया गया था उस वक्त इस की छत को चांदी के पतरों से सजाया गया था, जो समय के साथ लुटेरों द्वारा लूट लिया गया l उस वक्त इसकी दीवारों पर कांच का सुंदर काम हो रखा था, जब सूर्य की किरणे इस से परिवर्तित होती थी तो इस महल की शोभा देखते ही बनती थी l अब इसके अंदर जाने नहीं दिया जा रहा था l मगर जब हम सन 1998 में यहाँ आए थे तब कहीं भी जाने की रोक टोक नहीं थी l मगर उस वक्त के फोटो शायद अब नहीं है l खैर हमने बाहर से ही फोटो ले कर इसका जायजा लिया l रंग महल में पीछे यमुना नदी की तरफ वाली दिवार पर जालीदार खिड़कियाँ बनी हुई है, जहाँ से महल के अंदर हवा का संचार होता है l शाही वक्त में सम्राज्ञी व राजकुमारियाँ जाली की ओट से बाहर के नजारे भी देखती होंगी l रंग महल के मध्य में संगमरमर का एक वर्गाकार हौज बना हुआ है, इसके बिल्कुल बीचों-बीच सफेद पत्थर का खिला हुआ कमल बना है l दरअसल यह फूल एक फवारा है l मुग़ल काल में जब नहर-ए बहिश्त से इसमें पानी आता होगा तो यह कितना सुंदर लगता होगा, यह कल्पना ही की जा सकती है l नहरे-ए बहिश्त का पानी यहीं तक आता था, इसके बाद सामने की तरफ एक कुण्ड में गिरता था, जहाँ से यह पानी किले के निचले हिस्सों की तरफ चला जाता है l वह मैं आगे दिखाने की कोशिश करूंगा lरंग महल के दांई और मुमताज महल है, जो शाही औरतों के रहने के लिए बना हुआ था l इन्हें जनानखाना भी कहा जाता था l मगर जब हम यहाँ पहुंचे तो यह बंद था, वैसे भी अब इसे संग्रहालय बना दिया गया है, इसके अंदर मुग़ल कालीन सामान जैसे वस्त्र, आभूषण, चित्र,अस्त्र-शस्त्र बर्तन इत्यादि रखा हुआ है l
ख़ास महल :
दीवाने-ख़ास से आगे बढ़ने पर हमारी नजर कुछ और निर्माण पर पड़ी l यह शाहजहाँ के महल थे l इन महलों के मध्य से भी नहरे-ए बहिश्त गुजरती है l हमने बाहर से ही इसका जायजा लिया, व कुछ फोटो भी ली, क्योंकि अब यहाँ अन्दर नहीं जा सकते l यह महल मुख्यतया तीन भागों में बंटा था, जिनमें एक शाहजहाँ का निजी कक्ष, जिसे ‘ख्वाबगाह’ कहते थे l दूसरा ‘तस्वीह खाना’ अर्थात पूजा घर और तीसरा ‘तोशखाना’ यानि बैठक, आदि बने हुए हैं l शाही समय में यहाँ का क्या रुतबा रहा होगा, कितना खौफ या आदर होता होगा, यह आज कल्पना करना भी मुश्किल है l खास महल में ही एक जगह बाँई तरफ खुबसुरत जाली बनी हुई है, जिसके ऊपर चाँद-तारों के साथ एक तराजू बनी हई है, जिसके पलड़े बराबर है l यह दर्शाती है कि बादशाह अपनी न्याय प्रणाली के प्रति कितना सजग था l ख़ास महल के पूर्व में एक अष्ट कोणीय बुर्ज है, जिसे मुस्समन बुर्ज के नाम से जाना जाता है, इसी बुर्ज से शाहजहाँ अपनी प्रजा को दर्शन दिया करता था lदीवाने ख़ास :
सफेद संगमरमर से बने हुए सुनहरी चित्रकारी वाले निर्माण को दीवाने ख़ास कहते हैं l मुग़ल काल में यह पुरे लाल किले अपना एक ख़ास स्थान रखता था, इसी जगह पर तख्ते – ए ताउस पर बैठ कर शाहजहाँ बड़े-बड़े फैसले लेता था l यहीं पर राजनीती व रणनीति पर विचार विमर्श होता था l शायद इसी लिए इस की एक मेहराब पर यह लाइन फारसी में लिखी गई हैlग़र फिरदौस बर रुए जमीं – अस्त l हमीं अस्तो हमीं अस्तो हमीं अस्तो ll
वास्तव में उस समय इसकी अहमियत किसी स्वर्ग से कम नहीं थी l 90 फूट x 66 फूट का सफेद पत्थर का चबूतरा और उसके ऊपर बने 32 स्तम्भों के ऊपर शानदार चित्रकारी की हुई मेहराबों पर टिकी छत, जिसके चारों कोनो में चार छतरी नुमा बुर्ज बने हुए हैं l मेहराबदार प्रवेश द्वार चांदी की सीलिंग, ( जो 1759 में जाटों द्वारा उखाड़ ली गई ) भवन के मध्य में सफेद संगमरमर की चौकी पर रखा करोड़ों की लागत से बना स्वर्ण मयूर आसन l (तख्ते – ए ताउस) स्वर्ग से कम सुंदर नजारा तो न रहा होगा l
कहते हैं कि दीवाने आम खत्म होने के बाद बादशाह का दीवाने खास सजता था l इस भवन में अनेकानेक घटनाएँ घटित व परिवर्तित हुई है l ऐसा लगता है इसका निर्मण ही परिवर्तन के लिए हुआ है l
इनमे कुछ प्रमुख हैं
1. 1857 में अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुर शाह जफ़र पर मुकद्दमा यहीं चला था l2. लार्ड लेंक ने यहीं पर बादशाह से मुलाकात की थी l
3. ईस्ट इंडिया कम्पनी के डाक्टर द्वारा बादशाह का इलाज करने के एवज में उसे 37 गाँव ईनाम में देने
का फैसला भी यहीं हुआ था l
4. जार्ज पंचम ने भी यहीं पर अपना दरबार लगाया था, और बहादुर शाह जफ्फर को सजा सुनाई थी l
5. ओरेंजेब ने अपने दोनों भाइयों का क़त्ल भी इसी जगह किया था l
6. दीवाने ख़ास में ही अब्दुल कादिर ने शहंशाह शाह आलम की आँखें निकलवा कर उसके बेटे का कत्ल किया
था l
7. इसी दीवाने ख़ास ने लुटेरे नादिर शाह को भी देखा था, जब वह तख्ते-ए- ताउस के साथ-साथ हीरे-जवाहरात
और शाही खजाना लूट कर फारस भाग गया था l
तख्ते-ए ताउस :
तख्ते-ए ताउस जिसे स्वर्ण मयूर सिंहासन कहा जाता था, उसके बारे में कुछ रोचक जानकारी lइसके बनने में सात साल का समय लगा l अगर स्वर्ण की बात करें तो इसमें एक लाख तोला सोना लगा हुआ था l इसके उपरी भाग में करोड़ों रूपए के हीरे,जवाहरात, माणिक,नीलम, पन्ना, पुखराज आदि बहुमूल्य रत्न लगे हुए थे l इसका पूरा बेस सोने का बना हुआ था, इसके पीछे एक सोने से बना हुआ वृक्ष था, जिस के ऊपर रत्न जड़ित एक सोने का मयूर बैठी हुई अवस्था में था l सिंहासन का छत्र भी शुद्ध सोने से बना, और मोतियों की झालर से सुस्जित था l यह सिंहासन 12 सोने से बने स्तम्भों पर टिका हुआ था l इस पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ भी चांदी से बनी हुई थी l
परिकल्पित चित्र गूगल से साभार
शाह बुर्ज (पीछे और आगे का चित्र)
शाह बुर्ज की पेंटिंग ( भव्य अंदाज )
हेरिटेज टी हाउस
जफ़र महल :सावन भादों के बिलकुल मध्य में
बावड़ी
निर्माण कार्य में आज भी चुने का प्रयोग
एक सेल्फी हो जाए
दिगम्बर जैन लाल मंदिर:चांदनी चौक
वड़ोदरा जाने की तैयारी

हमाम :
हमाम यानि ‘ स्नानघर’ मुग़ल सम्राटों का प्रिय विश्राम स्थल ही नहीं था, बल्कि गहन विचार-विमर्श का स्थान भी हुआ करता था l हमाम घर दीवाने-ए खास के साथ ही एक निश्चित दुरी पर बना हुआ है l अपने जमाने में यह भी बहुत खुबसुरत रहा होगा, मगर अब इसकी सुन्दरता नष्ट हो चुकी है l जब हम यहाँ पहुंचे तो इसे सीढ़ियों पर से ही बंद किया हुआ था, क्योंकि सामने कुछ मुरम्मत का काम चला हुआ था l यह भवन भी तीन भागों में बंटा हुआ है, और हर हिस्से में संगमरमर का फर्श बना हुआ है l नदी की ओर बना कक्ष श्रृंगार घर कहलाता है l शाही समय में यहाँ दिन रात इत्र के फव्वारे चला करते थे, जिससे पूरा वातावरण महकता था l बीच वाले कमरे में संगमरम का एक हौज बना हुआ है, जो जरूरत के हिसाब से ठन्डे या गर्म पानी से भरा जाता था l इस हौज के मध्य में एक चांदी का फव्वारा बना हुआ था, जिससे गुलाब जल प्रवाहित होता था l गर्म पानी के लिए इसके बाहर एक अंगीठी बनी हुई थी, जिसमें हर रोज 120 मण (कच्ची) 1920 किलोग्राम लकड़ी जलती थी l दांई ओर बने कमरे का उपयोग राजकुमारों के स्नानागार के रूप में होता था l हमाम में पानी की आपूर्ति भी एक जटिल प्रक्रिया थी, क्योंकि उस जमाने में बिजली व पंप तो होते नहीं थे, ताम्बे व मिट्टी की पाइपों द्वारा दीवार में बने छोटे-छोटे कुंडों से गर्म व ठन्डे पानी को यथास्थान पहुँचाया जाता था l यहाँ पर एक ख़ास बात यह भी बता दूँ कि नहरे बहिश्त इसके भी बीचों-बीच गुजरती है lमोती मस्जिद :
मोती मस्जिद हमाम के सामने है l यह मस्जिद ओरंगजेब ने 1659 में बनवाई थी l यह सुलतान की निजी इबादतगाह थी l अलग-अलग पहर में इबादत करने के लिए दूर न जाना पड़े, इसलिए मोती मस्जिद को अपने आवास से चंद कदमों की दुरी पर ही बनाया था l इस का इस्तेमाल शाही घराने की महिलाओं द्वारा भी किया जाता था l यह मस्जिद भी बाकि भवनों की तरह एक ऊँचे चबूतरे पर बनाई गई है l मोती मस्जिद का बाहरी आवरण 12 मीटर लम्बाई में व 9 मीटर चौड़ाई, लगभग आयताकार में बना हुआ है, जो ऊँची बलुआ पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ है l तथा अब इसे चुने से सफेद रंग से रंगा गया है l इसके अन्दर का भाग व इसके गुम्बद सफेद संगमरमर का बने हुए है l इसमें एक ही प्रवेशद्वार है जो कभी ताम्बे का बना हुआ था l ऐसा बताया जाता है कि इसके तीनों गुम्बद भी पहले ताम्बे के बने हुए थे, जो 1857 के गदर में नष्ट हो गए थे l उसके बाद इनका निर्माण सफेद संगमरमर से किया गया l अब इसे भी ताला लगा कर बंद कर दिया गया है, इस लिए इसे अंदर से नहीं देखा जा सकता lनहर – ए –बहिश्त :
नहर ए बहिश्त वह जगह है, जहाँ से पानी सभी शाही भवनों को ठंडा रखने के लिए एक ऊँचे चबूतरे से भवनों के मध्य से होता हुआ, रंग महल से बाहर एक हौज में गिरता था, त्तथा वहां से जमीन के रास्ते से अन्य भवनों तक पहुँचता था l पानी को यमुना नदी से उठा कर शाह बुर्ज तक पहुँचाया जाता था, और फिर वहां से संगमरमर की बनी एक चौड़ी नाली द्वारा विभिन्न महलों में पहुँचाया जाता था, ताकि गर्मी में भवन ठन्डे रहे सके l यह जलतंत्र देख कर हैरानी हुई कि यमुना नदी से यहाँ इतनी ऊँचाई तक पानी आता कैसे होगा l इसका समाधान छता बाजार में आकर हुआ l यहाँ एक दुकानदार जिसका नाम जाहिद था, हमने अपनी शंका उससे व्यक्त की l उसने एक लाइन में समाधान कर दिया l जाहिद ने बताया की नदी के किनारे एक घिरनी लगी होती थी जिसे बैल या ऊंट चलाते थे l बड़ी हैरानी हुई खुद पर, कई बार हम बहुत साधारण सी चीज को पहाड़ जैसा समझ बैठते हैं lशाह बुर्ज :
लाल किले के आखिर में पूर्वी कोने में बना यह भवन शाहजहाँ का एक ख़ास भवन था, यहाँ पर वह अपने ख़ास मंत्रियों या गुप्तचरों से गुप्त विचार विमर्श करता था l यही वह जगह है जहाँ यमुना का पानी एक बड़े हौज में आता था, और यहीं से नहर ए बहिश्त को पानी की आपूर्ति होती थी l इसमें सामने से देखने पर पांच महराबे बनी हुई है l बीच में एक बड़ी व दोनों तरफ अपेक्षाकृत कुछ छोटी दो-दो महराबे है l मध्य वाली के सामने दिवार में संगमरमर का एक ढलानदार पत्थर लगा हुआ है, इसी पत्थर से पानी कल-कल बहता हुआ नहर ए बहिश्त में आता था l एक दो जगह ऐसा वर्णन भी आता है कि इसका निर्माण ओरंगजेब ने करवाया था l कभी यह तीन मंजिला शानदार भवन था, मगर ग़दर के समय व 1904 में आए भूकंप में इसकी तीसरी मंजिल नष्ट हो गई, जो एक शानदार छतरी नुमा गुम्बद था l सामने से तो इसका रख रखाव ठीक है, मगर इसका पिछला हिस्सा देख रेख से वंचित है l शायद आने वाले समय में इसका भी कुछ उद्धार हो, क्योंकि किले के अंदर जगह-जगह काम हो रहा है lशाह बुर्ज (पीछे और आगे का चित्र)
शाह बुर्ज की पेंटिंग ( भव्य अंदाज )
हेरिटेज टी हाउस
हीरा महल :
हीरा महल, हयात बक्श के दाहिनी ओर बना सफ़ेद पत्थर का एक सुंदर निर्माण है, जिसे बहादुर शाह जफ्फर ने 1842 में बनवाया था l यह स्तम्भों पर बना हुआ भवन है, जिसकी छत 10 महराबों पर टिकी हुई है l इसका फेसिया नुमा छज्जा बहुत सुंदर है l आज से 20- 25 साल पहले ऐसे छज्जे लोग अपने घरों में भी बनवाते थे l छत के ऊपर लगभग 2 फूट ऊँची एक जगरी भी बनी हुई है, जो जंगले का काम करती है lसावन-भादो :
हयात बक्श बाग़ के दाहिने व बाँए दोनों ओर दो एक जैसी आकृति के सुंदर भवन एक दुसरे के आमने-सामने बने हुए हैं , इन का नाम सावन व भादो है l यह दोनों भवन हीरा महल की तरह ही नजर आते हैं l हीरा महल का चबूतरा संगमरमर का है, जबकि इसके चबूतरे की दीवारें लाल पत्थर से बनी हुई है l सावन और भादो हिन्दू पंचांग के दो महीनों का नाम है, इन महीनों में पुरे भारत वर्ष में बरसात का मौसम होता है l इन भवनों को इस प्रकार निर्मित किया गया था कि लाल किले में हमेशा रिम-झिम बारिश होती रहे l इनमें सामने से पानी फवारे के रूप में एक पानी का पर्दा बनाता था l चबूतरे पर सामने कुछ आले बने हुए हैं, दिन के समय इनमे गुलदस्ते रखे जाते थे, जबकि रात को इनमे दिए जलाये जाते थे l जलते हुए दीयों की रंगीन रौशनी के सामने जब पानी की फुहारें पर्दा बन के गिरती होगी तो इसकी शोभा मन्त्र-मुघ्ध कर देती होगी l अगर आप ऐसा ही कुछ नजारा देखना चाहते हैं, तो वृंदावन के प्रेम मन्दिर में रात के समय देख सकते हैं l आज तो तकनीक है साधन है मगर उस वक्त सिमित साधनों से कैसे काम होता होगा यह कल्पना की जा सकती है lजफ़र महल :सावन भादों के बिलकुल मध्य में
बावड़ी
हयात बक्श बाग़ :
बाकि पर्यटकों की तरह ही इस जगह को हमने भी शायद ज्यादा अहमियत नहीं दी, यह तो बाद में फोटो देख कर अहसास हुआ कि पत्थरों के ढांचे देखते देखते हम इस शानदार हरी भरी जगह को तरजीह ही न दे पाए l जबकि इस से पहले हम जब भी लाल किला देखने गए यहं बैठ कर कुछ वक्त जरुर गुजारा है l यह बाग़ पुरे किले में सबसे बड़ा बगीचा है l हयात बक्श का मतलब हिंदी में जीवन दायी उद्यान होता है l इसका निर्माण बहादुर शाह जफ़र ने 1842 में करवाया था l नहर ए बहिश्त का पानी जहाँ रंग महल से बाहर हौज में गिरता था, वहां से एक 18 फूट चौड़ी नाली हयात बक्श में लगे फव्वारों को पानी की सप्लाई करती थी, जिसमें लगे सैंकड़ो फव्वारे 30-30 के ग्रुप में पानी छोड़ते थे l आज सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिना बिजली या पंप के यह कैसे काम करते थे l कहते हैं कि ग़दर से पहले यहाँ हजारों की संख्या में फूल – पौधे व फलदार वृक्ष होते थे, मगर अब सिर्फ हरी घास और हैज ही है जो इसके वजूद का अहसास करवाती है lनिर्माण कार्य में आज भी चुने का प्रयोग
एक सेल्फी हो जाए
दिगम्बर जैन लाल मंदिर:चांदनी चौक
वड़ोदरा जाने की तैयारी

जब हमने लाल किले में प्रवेश किया था, उस वक्त दिन के 11.30 बज रहे थे l अब जब घड़ी पर नजर पड़ी तो 2.30 बज रहा था l अब भूख भी अपना असर दिखा रही थी, तो हमने बाहर की तरफ प्रस्थान कर लिया l वापिसी में मशीन में टोकन अन्दर डाला तब ही गेट खुला l बाहर सड़क पर लाल मन्दिर के सामने सलाद और फलों की रेहड़ीयां लगी हुई थी, हमने वहां एक-एक प्लेट खाई l वहां से 20 रूपए एक सवारी के हिसाब से बैटरी वाला ऑटो लेकर रेलवे स्टेशन का रुख किया, जहाँ से हमे एअरपोर्ट जाना था l हमारा अगला पड़ाव वड़ोदरा था वहां से हमे स्टेचू ऑफ़ यूनिटी जाना था l
COMMENTS