Pavagadh : Gujarat Travel ( पावागढ़ : गुजरात यात्रा )


Pavagadh : पावागढ़ यात्रा : परिचय तथा परिस्थिति : 


पावागढ़ शिखर का प्रारम्भ चंपानेर से शुरू होता है, चंपानेर, जो पावागढ़ की तलहटी में बसा है l   इसे आदिवासी राजा “वनराज चावड़ा “ ने अपने मंत्री के नाम पर बसाया था, जो बाद के वर्षों में गुजरात की प्राचीन राजधानी बना l  आज भी यहाँ के आदिवासी माँ कलिका को अपनी अराध्य देवी के रूप में पूजते है l   यह लोग आपको यहाँ नंगे पांव यात्रा करते हुए दिख जांएगे l  चंपानेर में एक विशाल शिखर है ‘पावागढ़’ l  जैसा कि हर ऐतिहासिक स्थानों के बारे में अनेक कहनियाँ प्रचलित होती है, ऐसे ही पावागढ़ के विषय में भी कई कथानक है l ( क्योंकि अधिकतर पौराणिक स्थानों के बारे में कोई लिखित इतिहास तो है नहीं, सिर्फ दन्त कथाएं ही प्रचलित होती है, जो अधिकांशत विभिन्न समय और काल में बदलते रूप के साथ अगली पीढ़ी को सौंपी जाती है l )
                                             पावागढ़ में माँ काली का मन्दिर है, जिसे माँ कलिका के नाम से जाना जाता है l  यह स्थान 51 शक्तिपीठ में से एक है l  ऐसी मान्यता है कि यहाँ माता सती के दाहिने पैर की उँगलियाँ गिरी थी l यहाँ पर दक्षिण मुखी माँ काली की मूर्ति विराजमान है l   शास्त्रों में दक्षिण मुखी की पूजा तांत्रिक साधना के लिए की जाती है l
                                    इस शिखर को ऋषि विश्वामित्र से भी जोड़ कर देखा जाता है l  मत ये है कि ऋषि विश्वामित्र ने यहाँ पर माँ काली की आराधना की थी l  यहाँ से बहने वाली नदी का नाम विश्वामित्र के नाम पर ‘विशावामित्र्यी’ है l
                                इसी प्रकार पावागढ़ नाम के पीछे भी एक कहानी है l  कहा जाता है कि यह पर्वत बहुत ढलान दार और गहरी खाइयों वाला होने के कारण यहाँ हवा का वेग बहुत अधिक था, जिस कारण इस पर कोई चढ़ाई नहीं कर सकता था l   पावा शब्द पवन से बना है l   अर्थात पवन का वास, “पावागढ़” l  वो पवन का वेग तथा गहरी खाइयों का बाद में क्या हुआ कोई वर्णन नहीं मिलता है l
                              एक और किवदंती के अनुसार बैजू बावरा जो महान संगीतकार तानसेन के समय हुए हैं, उनका ताल्लुक भी पावागढ़ से था l
                             पावागढ़ का पौराणिक व ऐतिहासिक वर्णन भी है l   जैसे कि यह मन्दिर भगवान श्री राम चन्द्र के समय में भी था l  और यहाँ पर उनके पुत्र लव-कुश सहित कई ऋषियों तथा बौध भिक्षुओं को मोक्ष प्राप्त हुआ है l  सतयुग के समय में इसे शत्रुंजय मन्दिर कहा जाता था l जिस बाण से श्री राम ने रावण का वध किया था उसकी प्राप्ति राम जी को यहीं से हुई थी l
                              यूनेस्को ने 2004 में इसके पौराणिक महत्व को देखते हुए इसे विश्व धरोहर घोषित कर दिया l    इसका एक फायदा ये हुआ कि अब यहाँ विश्व भर से लोग आने लग गए है l  हिन्दुओं के साथ-साथ यह जगह मुसलमानों के लिए भी खास है, मन्दिर की छत पर एक दरगाह है, जो सदन शाह पीर की है l  इस विषय में हमारी गाड़ी के चालक सेलेश भाई ने एक कहानी सुनाई l   जब चंपानेर में चौहान राजाओं का राज था, उस समय नवरात्रों के दौरान यहाँ गरबा का आयोजन हो रहा था, तो उस समय माँ कलिका भी एक सुंदर बालिका का रूप धर कर गरबा खेलने आ गई l  उसी समय वहां के पतई नामक राजा  की नजर उस सुंदर बालिका पर पड़ी तो उसने असक्त हो कर उस बालिका का पल्लू पकड़ कर खिंच दिया l  ( पूरी कहानी चंपानेर वाले लेख में ) पतई राजा की इस हरकत से कुपित हो कर माँ ने उसे सर्वनाश का श्राप दिया, और खुद धरती में समाने लग गई, जब सदन शाह पीर ने यह सब देखा तो उसने माँ कलिका को बालों से पकड़ लिया l  अब माँ का शारीर तो धरती में समा गया, मगर गर्दन से ऊपर का भाग बाहर रहा गया l  यही कारण है कि पावागढ़ के इस मन्दिर में सिर्फ माँ की आँखे ही नजर आती है, और इसकी ही पूजा होती है l
                               पावागढ़ पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा वड़ोदरा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है l वड़ोदरा रेलवे व बस द्वारा भी सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है l  वहां से टेक्सी या बस द्वारा Jarod, Asoj, Nurpura होते हुए 57 km. का सफ़र तय कर ‘मांची हवेली’ नामक जगह तक जा सकते हैं l  मांची से शिखर तक जाने के लिए उड़न खटोला है l  जो दुधिया तालाब की तलहटी तक जाता है l वहां से दुधिया तालाब होते हुए लगभग 250 सीढियाँ चढ़ कर पावागढ़ की चोटी पर माँ कलिका के दर्शन होते हैं l उड़न खटोला लगने से पहले लोग कठिन चढ़ाई चढ़ कर पैदल ही जाते थे l

                                                  इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा



                                  वडोदरा शहर के बाहर एक प्रवेश द्वार : उल्टा-सीधा एक समान

                      रथ यात्रा : गुजरात और मध्यप्रदेश में अक्सर ऐसे नजारे नजर आते हैं

                                                      चंपानेर,पावागढ़ का प्रवेश द्वार


                               प्रवेश द्वार के अंदर से नजर आता माँ महाकालिका का मंदिर


                                                          मांची : गाड़ी का साथ यहीं तक


                                                                       तो खिंच मेरी फोटो


                                                             उड़न खटोले के लिए प्रवेश


                                             कबीट फल : खट्टा-मीठा , चटनी जैसा स्वाद


                                          जब हमने गुजरात यात्रा का कार्यक्रम बनाया था, तो सबसे पहला पड़ाव सोचा गया, “स्टेचू ऑफ़ यूनिटी” l   facebook पर कुछ मित्रों से विचार विमर्श किया जिनमे मुख्य थे गजेन्द्र जी, ( M.P.) प्रतिश त्रिवेदी  ( अहमदाबाद) महेश गौतम (राजस्थान) अनिल मिश्रा (अहमदाबाद) l   चूँकि स्टेचू ऑफ़ यूनिटी जाने के लिए वड़ोदरा सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है, इस लिए यात्रा की शुरुआत वड़ोदरा से ही होनी थी, तो मित्रों ने सुझाव दिया, पहले चंपानेर – पावागढ़ देखो वहां से पोइचा होते हुए स्टेचू ऑफ़ यूनिटी के लिए निकलो l    पूरा प्रोग्राम तैयार होने के बाद 16 दिसम्बर 2018 को हम शाम के 8.30 बजे वड़ोदरा अंतर्राष्ट्रीयहवाई अड्डे पर थे l   वहां से टेक्सी ले कर रहने का ठिकाना खोजने निकल पड़े, चार-पांच होटल देखने के बाद Hotel pecific पसंद आया l check in करते हुए 10.00 बज गए l
                                    रात को देर से सोये, तो सुबह भी देर तक बिस्तर में ही पड़े रहे l   7.00 बजे मोबाइल की घंटी बजी, दूसरी तरफ से सेलेश भाई का फोन था, वह होटल के बाहर गाड़ी लेकर पहुँच चुके थे l   “यहाँ मैं बताना चाहूँगा हमने राहुल भाई से गाड़ी बुक करवाई थी, जिनका रेफरेंस अनिल मिश्रा जी ने दिया था l 10 दिन के लिए 300 km. व 3,000 हजार रु दिन के हिसाब से गाड़ी का भाड़ा तय हुआ था l   राहुल भाई ने हमे बताया था कि वह ऐसा चालक देंगे जो गाइड का काम भी बखूबी करेगा l “   मैंने सेलेश जी को थोड़ा इन्तजार करने को बोला और फ्रेश होने के बाद निचे रिसेप्शन पर आ गया l    यहाँ सेलेश भाई से मुलाकात हुई, वह लगभग 60 साल के हंसमुख व्यक्ति है l   मैं उन्हें पहले बाजार ले गया, मुझे कुछ फल व सब्जी खरीदना था l   जब तक हम वापिस आए तब तक मेरे सहयात्री ( मधु जी, उनकी बहन निर्मल जी व जीजा केदार सिंह जी तैयार हो चुके थे l   हमने नाश्ता कर होटल से check out किया, जब हम होटल से निकले तो दिन के 10.00 बज चुके थे l   सेलेश भाई से आज का कार्यक्रम मैं पहले ही बना चूका था l    आज हम लगभग 200 km. सफर कर पावागढ़, चंपानेर, पोइचा घूम कर रात को केवाडिया में रुकने वाले थे l
हमारी गाड़ी हलोल रोड़ होते हुए 11.30 बजे मांची पहुँच गई l   दांई तरफ प्रवेश द्वार देख कर हमने उस तरफ का ही रुख किया l   पांच मिनट पैदल चल कर हम उड़न खटोले के प्रवेश द्वार पर थे l   यहाँ एक आदमी खट्टा-मिट्ठा, खट्टा- मिट्ठा बोल कर कुछ बेच रहा था, यह बिल्कुल क्रिकेट की बाल की तरह था l   पूछने पर उसने इसका नाम कबीट बताया और यह भी कि यह जंगली फल है, तथा खट्टा होता है l   इसकी चटनी भी बहुत स्वाद बनती है l    वह आदमी उसे डंडे से तोड़ रहा था l    यह फल अंदर से हल्का सुनहरी था l    इस पर उसने चीनी का घोल डाला, जिससे इसका रंग लाल और स्वाद भी खट्टा – मीठा हो गया l    20 रु में दो कबीट का मजा लिया, और ऊपर सीढियाँ चढ़ कर उड़न खटोले के प्लेटफार्म पर आ गये l   इस प्लेटफार्म के साथ निचे की ओर एक और रोपवे प्लेटफार्म बना हुआ है, यहाँ से भी एक रोपवे ऊपर शिखर की तरफ जाता है, मगर यह सामान ढोने के लिए है l    यहाँ आने-जाने का टिकट 90 रु प्रति व्यक्ति लेकर हम एक कूपे में जा बैठे, एक केबिन में छ: लोग बैठ सकते हैं l   बिल्कुल ऐसा ही रोप-वे अम्बा जी मन्दिर में भी है, जहाँ हम 2015 में जा चुके हैं l    पांच-छ: मिनट में ही हम पावागढ़ के बाजार में थे l    यहाँ आ कर ऐसा लगता ही नहीं, हम किसी पहाड़ी पर है l   खूब चौड़ी- पक्की सड़क, पर्यटकों व श्रद्धालुओं के हिसाब से सजी हुई दुकानें, किसी शहर का आभास होता है l   यहाँ पर एक बात बहुत बढ़िया है, हमारे उतर भारत की तरह न तो कोई दुकानदार आवाज लगा कर ग्राहकों को आकर्षित करता है, न ही जूते रखने के एवज में प्रसाद खरीदने की शर्त है, और न ही भिखारी तंग करते हैं l इतना बढ़िया शांत माहौल देख कर अपनी यात्रा तो यहीं सफल हो गई l    यहाँ से चलते हुए हम ऊपर की ओर चढ़ने लगे, ऊपर आ कर एक बहुत बढ़िया व साफ़ सुथरा तालाब है, इसे दुधिया तालाब कहते हैं l    यहाँ बहुत से हिन्दू व जैन मन्दिर बने हुए हैं l   यहाँ कुछ प्राणीयों को देख कर आश्चर्य हुआ, और वो थे गधे, वो भी दो-चार नहीं सैंकड़ों के हिसाब से l
                                  थोड़ा और ऊपर पहुंचे तो यहाँ एक काफी खुला स्थान है, जिस पर टिन की छत है l    यहीं से ऊपर माँ कलिका के मन्दिर के लिए बड़े-बड़े पत्थरों की सीढ़ियाँ बनी हुई है, जो शायद 250 के लगभग है l   जहाँ ये बड़े पत्थरों की सीढ़ियाँ ख़त्म होती है, वहीँ पर जूते रखने का स्थान है l   यहाँ से निचे आने का रास्ता अलग है, जो थोड़ा घुमावदार है l   यहाँ से मुख्य मन्दिर जाने के लिए दांई ओर कुछ और सीढ़ियाँ चढ़ कर हम मन्दिर के अंदर जा पहुंचे l    लोग लाइन में लगे थे, मगर भीड़ बहुत नहीं थी l   हम लोगों के पीछे एक महिला चल रही थी, अभी हम मन्दिर में प्रवेश करने ही वाले थे, कि वह चीखती हुई हमे धकेल कर सीधे मन्दिर में पहुँच गई l   पता चला उस पर माता आ गई है l    हमने माँ कलिका को प्रणाम कर धन्यवाद किया l    यहाँ काले पत्थर की माँ की एक पिंडी है, जिसकी सिर्फ आँखे नजर आती है, बाकि भाग कपडे से ढका हुआ है l   बाँई ओर भोलेनाथ अपनी तपस्या में लीन है जबकि बाँई ओर श्री गणेश जी विराजमान है l
                                 यहाँ एक और अजीब बात पता चली कि यहाँ जो नारियल प्रसाद के रूप में मन्दिर में चढ़ता है, वह वापिस नहीं मिलता, और न ही उसे घर ला सकते हैं l   क्योंकि नारियल माँ कलिका को नहीं वहां स्थापित शनि देव को चढ़ाया जाता है l   और शनि देव को चढ़ा हुआ प्रसाद घर को नहीं ले जाते, ऐसी मान्यता है l अब हमने सोचा जब वापिस नहीं ला सकते, तो जरूर ये वापिस दुकानों में जाता होगा l    जहाँ से भक्त इसे खरीद कर फिर मन्दिर में चढ़ा जाते होंगे, और यह सिलसिला निरन्तर चलता रहता होगा l    यह विचार आते ही मन ही मन मैं मन्दिर कमेटी और दुकानदारों को कोस रहा था l    मन्दिर से बाहर आ कर जूते पहन कर, जब हम वापिस दुसरे वाले रास्ते से आ रहे थे, तो वहां नारियल का बहुत बड़ा ढेर देखा, और नारियल स्टैंड का बोर्ड भी l    कुछ लोग वहां से नारियल ले कर एक जगह फोड़ कर उसका प्रसाद वहीँ पर खा रहे थे l   घर कोई नहीं ले जा रहा था l
                                      अब तक 1.00 बजने वाला था, भूख भी लग रही थी, मगर यहाँ हमारे मतलब का खाना नहीं था l    तो हमने उड़न खटोला पकड़ कर निचे उतरने का विचार किया l   मगर ये क्या यहाँ तो बहुत भारी भीड़ थी, जो धीरे-धीरे सरक रही थी l    लगभग एक घंटा हमे लाइन में खड़े रहना पड़ा, शायद रोप-वे में कुछ खराबी आ गई थी l 2.00 बजे हम मांची में अपनी गाड़ी के पास पहुंचे l    अगला पड़ाव था चंपानेर, मगर भूख भी लग रही थी l
                                               (चंपानेर में क्या देखा यह अगले लेख में)


                                                                        बैठने से पहले

                                                                             बैठने के बाद


                            पैदल रास्ते में कुछ पुरातन निर्माण : फोटो उड़न खटोले से लिया गया


                                                           चित्र रोपवे की साईट से


                                        सामन ढोने के लिए अलग से बना रोपवे


                                                   रोपवे से उतरते ही इनके भी दर्शन हुए


                                             रोपवे के बाँई ओर शौचालय के साथ ही बना मंदिर


                                                   दुधिया तालाब : पर यहाँ गधों की भरमार


                                                            सुपार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर


                                                              ताले में बंद भगवान


            पावागढ़ की सबसे अच्छी बात : यहाँ भीख मांगने वाले तंग नहीं करते, आराम से फोटो ले सकते है


                                                          नागकन्या : स्वागत मुद्रा में


                                         एक-एक फूट ऊँची सीढ़ी : घुटनों की कठिन परीक्षा


                                              माँ महाकालिका : चित्र, गूगल महाराज की दयादृष्टि


                                                                     पैदल रास्ता


                                                     दुधिया तालाब : मेरी नजर से


                                                 पहली बार किसी मंदिर में यह कक्ष देखा


                                                      जुगाड़ : जो समझ नहीं आया

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